आवरण-कथा काश मैं वसंत ऋतु के दूसरे माह की पूर्णिमा की चांदनी में फूल रहे साकुरा तरु के नीचे अपनी अंतिम सांस लेता. (‘शिन कोकिन वाका-शु’ में संकलित) दिलचस्प बात यह है कि साकुरा के वृक्ष के नीचे अंतिम…
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यह जो वसंत है! – पूरन सरमा
आवरण-कथा प्रकृति का शृंगार और मनुष्य का उल्लास है वसंत. माघ शुक्ल पंचमी से मौसम जैसे करवट लेता हो. हवा भले चुभती हो लेकिन धूप चटकने लगती है और देह को रास आने वाला मलयानिल सनन-सनन की आवाज़ में इधर…
वसंत को ये क्या क्या होने लगा? – विजय किशोर मानव
आवरण-कथा मन गाने को है, उम्र का कोई फर्क नहीं, सबके भीतर कुछ बज-सा उठता है. हवा में राग-रंग जैसे घुल से गये हों. आधुनिक शब्द-बिम्बों से लबरेज गीतों से कहीं अधिक, मस्ती में डुबोते हैं लोकगीत. लोकगीतों में मादक…
वसंत के बीजों पर डाका पड़ा है – ध्रुव शुक्ल
आवरण-कथा लगता है कि सारा जीवन ग्रीष्म से शुरू होकर वसंत तक यात्रा करने जैसा है. ग्रीष्म ऋतु नया जन्म लेने की तैयारी के लिए ही धरती पर आती है. संवत्सर की शुरुआत इसी ऋतु से होती है जब सूर्य…
मन की बात कहने का माध्यम
– रमेश थानवी जयपुर, 22 मई 2014 प्रिय मोना राहुल बर्मन, लो, वादे के अनुसार पहला पत्र. देर तो हुई है. मगर यह पत्र अब तुरंत पत्र के रूप में. Just instant. हाथों हाथ पहुंचाने के जाब्ते के साथ. पत्राचार…