♦ मनमोहन सरल > अभी स्कूल में ही था कि अक्सर सुनने को मिलता, ‘बचपना छोड़ो, अब तुम बड़े हो गये हो.’ कभी बाबूजी तो कभी मम्मी और दूसरे बड़े भी. कभी कोई कहता, ‘क्या बच्चों जैसी बातें कर रहे हो?’…
Category: आवरण कथा
जी ! मैं बचपन बोलता हूं…
♦ रमेश थानवी > जी… हलो, हलो… जी मैं बचपन बोलता हूं. आपके घर से ही बोल रहा हूं. उन तमाम लोगों से बोलता हूं जो 25 के पार हो गये हैं, 55 के पार हो गये हैं या 75…
ज़रा यूं समझें बचपन को
♦ मस्तराम कपूर > एक बार चिल्ड्रेंस बुक ट्रस्ट के संस्थापक शंकर पिल्लै से मिलने और उनसे बालसाहित्य पर बातचीत करने का अवसर मिला था. उन दिनों में बाल साहित्य पर अनुसंधान कर रहा था. चूंकि बाल साहित्य से…
अमृत का सहोदर ‘रस’ मिल गया
अंत में तय हुआ कि समुद्र मथकर अमृत निकाला जाए. पहले तो वासुकि नाग अड़ गया कि वह अपनी देह की दुर्गति नहीं कराएगा. पर शिष्टमंडल में जृम्भ और सुमाली जैसे क्रूर-कर्मा दैत्य भी थे. अतः कुछ इनके डर से…
जीवन और साहित्य में रस का स्थान
आनंद प्रकाश दीक्षित बाह्य दृश्य जगत और मनुष्य के अदृश्य अंतर्जगत में शेष सृष्टि के साथ उसके सम्बंध-असम्बंध या विरोध को लेकर किये जानेवाले कर्म-व्यापार तथा होनेवाली या की जानेवाली क्रिया-प्रतिक्रिया की समष्टि चेतना का नाम है जीवन. इस द्वंद्वमय…