Category: विधाएँ

नरेश सक्सेना की तीन कविताएं

मढ़ी प्राइमरी स्कूल के बच्चे उनमें आदमियों का नहीं एक जंगल का बचपन है जंगल जो हरियाली से काट दिये गये हैं और अब सिर्फ़ आग ही हो सकते हैं नहीं बच्चे फूल नहीं होते फूल स्कूल नहीं जाते स्कूल…

अंतिम प्रणाम

अभावों और असुविधाओं से जूझते हुए अपने व्यक्तित्व को अपने हाथों गढ़ना और जीवन-पथ पर अविचल भाव से आगे बढ़ते जाना आदमी के आत्मबल को सूचित करता है. मेरे मित्रों और सहकर्मियों में श्री गिरिजाशंकर त्रिवेदी आत्मबल के मामले में…

आनंद दो!

एक सूफी फकीर की ख्याति सुनकर एक व्यक्ति ज्ञान-प्राप्ति के लिए उसके पास पहुंचा. वहां उसने देखा कि एक हाथ में टोकरी उठाये संत दूसरे हाथ में पक्षियों को दाना चुगाने में व्यस्त थे. वह मजे से चुगा रहे थे,…

एक अजेय चेतना – सी.वी. रामन्

यह मेरा सौभाग्य था कि मुझे आज से पचास साल पहले सितंबर 1921 में लंदन में सी.वी. रामन् से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ था. वे ध्वनि के विषय में कुछ परीक्षण करने लंदन आये थे और मैं तब लंदन…

टकराव

गाड़ी चल दी, तो उसे अपनी गड्ड-मड्ड मनः स्थिति का फिर भान हुआ. इन कुछ दिनों में सब कुछ अस्त-व्यस्त रहा था, जैसे नमकदानी के अंदर के सब खानों की चीजें आपस में रल-मिल गयी हों. वह एक-एक करके सभी…