Category: विधाएँ

शब्द अपने अर्थ पाने को आतुर  –    श्रीराम परिहार

ललित-निबंध आंख खुली तो पुष्प को अभ्यर्थना की मुद्रा में पाया. द्वार पर खड़ी गाय आशीर्वाद देती-सी लगी. सूर्य प्राची से निकला और असंख्य स्रोतों से ऊर्जा का वर्णन होने लगा. पक्षियों के पंखों पर आकाश उतर आया. नदी सकपकाकर…

असहमति और स्वतंत्रता  –   अमर्त्य सेन

दृष्टिकोण बाइस अगस्त, 1934 की बात है. तब मैं एक साल का भी नहीं हुआ था. मेरे चाचा ज्योतिर्मय सेनगुप्ता ने बर्दवान जेल से मेरे पिता को एक चिट्ठी भेजी थी. उन्होंने मेरा हाल-चाल पूछा था और मेरे ‘अमर्त्य’ नाम…

नीलू  –   शरणकुमार लिंबाले

दलित-कथा मेरी वेदनाओं से लदी देह पिघलने लगी थी. मेरी देह के दो आंसू बन गये. मेरे पदचाप अग्निशामक वाहक की तरह सिसक रहे थे. मैं बस्ती की दिशा में बढ़ रहा था. आवाज़ की दूरी पर भीमनगर था. इस…

अछूत की शिकायत  –   हीरा डोम

कविता (सितम्बर 1914 में ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित भोजपुरी की इस कविता को हिंदी दलित-साहित्य की पहली कविता माना जाता है.) हमनी के रात-दिन दुखवा भोगत बानी, हमनी के सहेबे से मिनती सुनाइब। हमनी के दुख भगवनओं न देखताजे, हमनी…

कोई खतरा नहीं  –   ओमप्रकाश वाल्मीकि

कविता शहर की सड़कों पर दौड़ती-भागती गाड़ियों के शोर में सुनाई नहीं पड़ती सिसकियां बोझ से दबे आदमी की जो हर बार फंस जाता है मुखौटों के भ्रम जाल में जानते हुए भी कि उसकी पदचाप रह जायेगी अनचीन्ही नहीं…