Category: संस्मरण

मां हमें खास होने का अहसास कराती

बड़ों का बचपन ♦  चार्ली चैप्लिन  >   हम समाज के जिस निम्नतर स्तर के जीवन में रहने को मज़बूर थे वहां ये सहज स्वाभाविक था कि हम अपनी भाषा-शैली के स्तर के प्रति लापरवाह होते चले जाते,लेकिन मां हमेशा…

अंतिम प्रणाम

♦  नारायण दत्त  >   अभावों और असुविधाओं से जूझते हुए अपने व्यक्तित्व को अपने हाथों गढ़ना और जीवन-पथ पर अविचल भाव से आगे बढ़ते जाना आदमी के आत्मबल को सूचित करता है. मेरे मित्रों और सहकर्मियों में श्री गिरिजाशंकर…

नहीं मां, मैं अभी नहीं सोऊंगा

बड़ों का बचपन ♦   लियो टॉल्स्टॉय  >    बचपन के सुख दिन, जो कभी नहीं लौटेंगे! क्या कभी कोई उसकी स्मृतियां भुला सकता है? उसके बारे में सोचते ही मेरा मन आज भी उल्लसित हो उठता है, आत्मा में एक नूतन…

पिता चाहते थे मैं कलेक्टर बनूं

बड़ों का बचपन ♦  ए.पी.जे. अब्दुल कलाम  >   मेरा जन्म मद्रास राज्य (अब तमिलनाडु) के रामेश्वरम कस्बे में एक मध्यम वर्गीय तमिल परिवार में हुआ था. मेरे पिता जैनुलाबदीन की कोई बहुत अच्छी औपचारिक शिक्षा नहीं हुई थी और न…

फर्श पर बनाया था पिताजी का चित्र

बड़ों का बचपन  ♦  आर. के. लक्ष्मण  >   मुझे याद नहीं पड़ता कि ड्राइंग के अलावा और कुछ करना चाहा था मैंने. बच्चा था तब भी, फिर कुछ बड़ा होने पर भी, कॉलेज में पढ़ने वाले युवा के रूप…