बचपन के सुख दिन, जो कभी नहीं लौटेंगे! क्या कभी कोई उसकी स्मृतियां भुला सकता है? उसके बारे में सोचते ही मेरा मन आज भी उल्लसित हो उठता है, आत्मा में एक नूतन ऊंचाई का अनुभव होने लगता है. याद आता…
Category: आत्मकथांश
मां हमें खास होने का अहसास कराती – चार्ली चैप्लिन
लेकिन मां हमेशा अपने परिवेश से बाहर ही खड़ी हमें समझाती और हमारे बात करने के ढंग, उच्चारण पर ध्यान देती रहती, हमारा व्याकरण सुधारती रहती और हमें यह महसूस कराती रहती कि हम खास हैं. हम जैसे-जैसे और अधिक…
ऐसे पढ़ाई की थी मैंने – हेलन केलर
जब गिलमैन स्कूल में मेरा दूसरा साल शुरू हुआ तो मैं आशा से भरी हुई थी और सफल होने का मेरा दृढ़ निश्चय था. लेकिन शुरू के कुछ सप्ताहों में ही मुझे अनपेक्षित परेशानियों का सामना करना पड़ा. श्री गिलमैन इस…
मानवता जन्मजात गुण नहीं है
एक जर्मन सम्पादक ने मुझे लिखा कि मैं मन और व्यक्तित्व के विकास के बारे में लिखूं. इसमें आत्मकथा का भी थोड़ा-सा पुट रहे. मैं इस विचार से ही रोमांचित हो गया. शायद यह मेरी संतानों या उनकी भी संतानों…
मुकाबला ईश्वर से था…
क्यायह कयामत का दिन है? ज़िंदगी के कई वे पल, जो वक्त की कोख से जन्मे और वक्त की कब्र में गिर गये, आज मेरे सामने खड़े हैं… ये सब कब्रें कैसे खुल गयीं? और ये सब पल जीते-जागते कब्रों…