कुलपति उवाच ब्राह्मण कौन है? के. एम. मुनशी शब्द-यात्रा विचरण करते पशु-पक्षी (भाग-2) आनंद गहलोत पहली सीढ़ी महानता का रहस्य म्यूरिएल मेंद आवरण-कथा सम्पादकीय ‘नहि मानुषात् श्रेष्ठतरं हि किंचित्’ अच्युतानंद मिश्र त्रासदी धर्म को न समझने की कैलाशचंद्र पंत…
Category: पिछले अंक
अप्रैल 2013
मात्र 39 वर्ष की छोटी-सी आयु में स्वामीजी विश्व को जो दृष्टि दे गये वह मनुष्य को समझने-समझाने की दृष्टि थी. धर्म की उनकी व्याख्या में जहां एक ओर मनुष्यता के नये शिखरों को छूने की बात थी, वहीं धर्म…
मार्च 2013
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते….’ का जाप करने वाला हमारा समाज वस्तुतः नारी को एक भोग्या अथवा वस्तु के रूप में ही देखता है. आज जीवन में हर क्षेत्र में नारियां उपलब्धियों के शिखर छू रही हैं, लगातार स्वयं को प्रमाणित कर…
फरवरी 2013
गंगा, यमुना तथा सरस्वती का संगम मात्र तीन नदियों का संगम नहीं है, यह आस्था श्रद्धा और आदर्शों-मूल्यों का भी संगम है. महाकुम्भ इस संगम को आकार भी देता है और सार्थकता भी. पता नहीं वह कैसा विश्वास है जो…
जनवरी 2013
भरत मुनि के रस-सिद्धांत अथवा मम्मट द्वारा की गयी रसों की व्यवस्था-व्याख्या को हम जीवन के लिए बोझिल मानकर भले ही नकार दें, पर रस को जीवन से निष्कासित करके जीवन को पूरी तरह समझा नहीं जा सकता. रस और…