Category: चिंतन

हास्य का मनोविज्ञान

♦  जगन्नाथ प्रसाद मिश्र   > मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो हंस सकता है. अन्य प्राणी हंस नहीं सकते. हास्य द्वारा आनंद-प्रकाश की क्षमता मनुष्य के प्रति विधाता की एक बहुत बड़ी देन है. इसीसे सृष्टि के आदिकाल से…

नैतिक मूल्य मनुष्यता की पहचान हैं

♦  सोनी वार्ष्णेय   > असंतोष, अलगाव, उपद्रव, आंदोलन, असमानता, असामंजस्य, अराजकता, आदर्श विहीनता, अन्याय, अत्याचार, अपमान, असफलता अवसाद, अस्थिरता, अनिश्चितता, संघर्ष, हिंसा… यही सब घेरे हुए है आज हमारे जीवन को. व्यक्ति में एवं समाज में साम्प्रदायिकता, जातीयता, भाषावाद, क्षेत्रीयतावाद,…

धर्म का मतलब

♦  विवेकानंद   > अपने सहयोगी स्वामी ब्रह्मानंद को लिखे एक पत्र में स्वामी विवेकानंद ने उन्हें धर्म के वास्तविक रूप का सार समझाया था. उस पत्र के कुछ अंश. अल्मोड़ा 9 जुलाई, 1897 बहरमपुर में जैसा काम हो रहा है…

ताल्सताय को लिखे पत्र का एक अंश

♦  मैक्सिम गोर्की          … आपके बनाये मेरे पोर्ट्रेट और मेरे बारे में आपके कृपापूर्ण और सुंदर शब्दों के लिए धन्यवाद. मैं यह तो नहीं जानता कि मैं अपनी किताबें से बेहतर हूं या नहीं, मगर इतना जरूर…

द्रोपदी के कितने पति?

♦  डॉ. मुंशीराम शर्मा           इस समय महाभारत-काव्य का जितना विस्तार है, उतना उसके मूल निमार्ण के समय नहीं था, इस तथ्य से आजकल के सभी विद्वान सहमत हैं. ऐसी अवस्था में यह मान लेना असंगत न…