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निर्भयता का पाठ – नवनीत हिंदी https://www.navneethindi.com समय... साहित्य... संस्कृति... Mon, 03 Nov 2014 06:37:15 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.1 https://www.navneethindi.com/wp-content/uploads/2022/05/cropped-navneet-logo1-32x32.png निर्भयता का पाठ – नवनीत हिंदी https://www.navneethindi.com 32 32 निर्भयता का पाठ https://www.navneethindi.com/?p=1120 https://www.navneethindi.com/?p=1120#respond Mon, 03 Nov 2014 06:37:15 +0000 http://www.navneethindi.com/?p=1120 Read more →

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♦  डॉ. प्रभाकर माचवे    

       बचपन की सबसे ‘तीव्र याद’ पानी में डूबने की और मां द्वारा बचाये जाने की है. शायद पांच बरस का था मैं. तब हम रतलाम में रहते थे, जहां त्रिवेणी नाम का एक कुंड था. वहां मां के साथ गया और सीढ़ियां रपटीली होने से फिसलकर पानी में गिर गया. बाद में होश नहीं. मां कहती थी कि मैं मरने से बच गया. आज मां भी नहीं है, पर सोचता हूं कि मृत्यु से इतनी अजान उम्र में साक्षात्कार क्यों हुआ? और बच भी गया तो क्या उपलब्ध कर लिया. मन के भीतर कहीं गहरे पानी का डर समा गया. बहुत बाद तैरना सीखने की कोशिश की, पर हर वक्त लगा कि कोई भीतर से पाताल की ओर खींचकर ले जा रहा है. पानी के लिए प्रबल आकर्षण बना रहा, पर प्रच्छन्न भय भी. तब से पंच-महाभूत की सत्ता के आगे प्रणाम करता हूं. पश्चिम वालों की तरह प्रकृति-विजय के नाम पर मैं प्रकृति और मनुष्य के मौलिक अहिंसक सम्बंध को कभी नहीं भूल सका. साहित्य या कला की शक्ति पंच-महाभूतों की तरह सूक्ष्म और विराट होती है. वह मृत्यु की ओर ले जा सकती है, वह मृत्यु से तार भी सकती है. मेरी मां ने मुझे यही सिखाया था, आज भी कोशिश करता हूं कि अपने भीतर बसे महाभूतों से भय न करूं. उन पर विजय पाने का यत्न करूं. जैसे आप-अनल-अनिल-आकाश-ऊर्वी, वैसे ही काम-क्रोध-लोभ-मोह-मत्सर.

(मई  2071)

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