ब्रह्माजी के ऋभु नामक पुत्र थे. वे बचपन से ही परमार्थ तत्त्व का ज्ञाता थे. महर्षि पुलस्त्य का पुत्र निदाघ उनका शिष्य था. प्राचीन काल में महर्षि ऋभु निदाघ को उपदेश देने के लिए एक नगर में गये. ऋषि ने वहां देखा कि उस देश का राजा भारी सेना के साथ शहर में प्रवेश कर रहा है. ऋभु ने निदाघ से पूछा कि इनमें राजा कौन है? निदाघ ने कहा कि इनमें जो ऊपर बैठा है, वह राजा है और नीचे वाला हाथी.
तब ऋभु ऋषि ने कहा कि हे विप्र! आप नीचे-ऊपर शब्दों के अर्थ बतलाइये. इनकी क्रियाओं को तो सभी जानते हैं. तब सहसा ही निदाघ ऋभु ऋषि के ऊपर चढ़कर कहने लगा- अब मैं राजा के समान आपके ऊपर हूं और आप हाथी के समान मेरे नीचे हैं. तब महर्षि ऋभु ने कहा कि हे ब्राह्मन. यदि आप राजा और मैं हाथी के समान हूं, तो कृपया यह बतलाइये कि आप कौन हैं और मैं कौन हूं?
ऋभु के ऐसा कहने पर निदाघ ने ऋभु के चरण पकड़ लिये और कहने लगा कि आप ही मेरे गुरू हैं. आपके समान अद्वैत मन वाला अन्य कोई नहीं है. तब प्रसन्न होकर ऋभु ने कहा- है प्रिय! सब वस्तुओं में अद्वैतभाव रखना ही परमार्थ का सार है.
(मई 2071)
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