साक्षरता और समाज
विनोद दास
मूल्य : 125/-
किताबघर प्रकाशन (नयी दिल्ली)
पुस्तक में साक्षरता की महिमा और सम्बंधित सामाजिक द्वंद्वों और इसके प्रसार में लेखकों, संस्कृतिकर्मियों, जनसंचार माध्यमों की भूमिकाओं, तत्सम्बंधी सांस्कृतिक उपभोक्तावादी ऊहापोहों, त्री साक्षरता के महत्त्व जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों को पहचानने का प्रयास किया गया है. साथ ही उन कारणों को भी चिह्नित किया गया है जिनके कारण साक्षरता का आलोक देश की धूसर और मटमैली झुग्गियों-झोपड़ियों में अभी तक नहीं पहुंच पाया है. समय, समाज और शिक्षा के ताने-बाने पर केंद्रित यह निबंध-संग्रह ताज़गी से भरा एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है.
उसके इंतज़ार में
हरमन चौहान
मूल्य : 125/-
निधि प्रकाशन, उदयपुर(राजस्थान)
यह पुस्तक लेखक की पंद्रह लोक- कथाओं का संग्रह है. ये लोक कहानियां नहीं हैं बल्कि लोगों की कहानियां हैं जो रचनाकार ने स्वयं देखी और अनुभव की हैं. अपने समय की समस्याओं, सामाजिक स्वरूपों को प्रकट करती ये कहानियां ग्रामीण एवं आंचलिक जीवन के सत्यों से हमारा साक्षात्कार कराती हैं. भाषागत सरलता, सुबोधमयता एवं रवानी कथाओं को आम पाठक के लिए रसग्राह्य बनाती हैं.
शब्द का विचार पक्ष
कैलाशचंद्र पंत
मूल्य : 200/-
साहित्य संगम,
इलाहाबाद (उ.प्र.)
यह पुस्तक छोटे-बड़े 38 लेखों का संग्रह है जो व्यक्तित्त्व, विचार, विधा और भाषा के साथ-साथ हमारे समय की चुनौतियों, चेतनाओं और चिंताओं का सम्यक विश्लेषण करते हैं. पुस्तक विचार के लिए उकसाती, चिंतन की नयी भूमि तलाशने के लिए प्रेरित करती है, सामयिकता के मोह बंधनों या प्रतिबंधों को अपनी तर्कशक्ति से काटने की दिशा देती पाठक के अंदर एक वैचारिक आंदोलन की तरह उतरती है.
वैकल्य
डॉ. शिरीष गोपाल देशपांडे
अनुवादः रमेश यादव
मूल्य : 80/-
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान,
मराठी से अनूदित यह उपन्यास कुष्ठरोग की समस्या पर आधारित है. समाज में प्रचलित अंधविश्वासों को मिटाने के उद्देश्य से लिखा गया यह उपन्यास, दो महापुरुषों के बीच के मौन संघर्ष की गाथा है जो शात्रीय दृष्टिकोण और सामाजिक दृष्टिकोण के बीच गहरी खाई और करुणा को व्यक्त करता है. समाज के उस वर्ग को जानने-समझने और उसके प्रति अपने दायित्व का ज्ञान कराने वाला यह उपन्यास क्षीण होती मानवीय संवेदना को परिपुष्टि प्रदान करता है.
चेतना का आत्मसंघर्ष
डॉ. कन्हैयालाल नन्दन
भारतीय संस्कृति सम्बंध परिषद् (नयी दिल्ली)
मूल्य- 300/- रुपये
400 पृष्ठों की यह पुस्तक, हिंदी के अनेक ख्यातिलब्ध रचनाकारों के 109 विचारपूर्ण लेखों का महत्त्वपूर्ण संग्रह है. लेखों को राष्ट्रबोध, हिंदी सुरभि, हिंदी आयाम, हिंदी की दूसरी दुनिया, हिंदी का जनपद, हिंदी स्मृति, विश्व में हिंदी, पुस्तकों का प्रकाशन संसार तथा कृति स्मृति(कुछ कालजयी कृतियां) जैसे नौ भागों में विभाजित किया गया है. पुस्तक हिंदी भाषा और साहित्य के विषय में नवीन विचारों से युक्त है जो आम पाठक, विद्वानों, हिंदी प्रेमियों तथा शोध-छात्रों के लिए बहुपयोगी है.
अहल्या का राम दर्शन
पुष्पारानी गर्ग
दिशा प्रकाशन, त्रिनगर (दिल्ली)
मूल्य- 130/-रुपये
पुष्पा रानी गर्ग का यह दूसरा खंडकाव्य महर्षि गौतम की पत्नी अहल्या के जीवन प्रसंग पर आधारित है. भारतीय नारी की व्यथा-कथा, उसका त्याग, समर्पण और सहनशीलता का जीवंत प्रतिबिम्ब इस काव्य में मिलता है. इस मार्मिक कथा को लेखिका ने पूरी संवेदना व काव्य कौशल से प्रस्तुत किया है. सरिता की तरह सहज प्रवाहित कथा की भाषा, शिल्प व रचना, सुगठित, सहज व सौंदर्यपूर्ण है तथा प्रकृति चित्रण भी बड़ा सजीव व मन को छूनेवाला है.
बिहार के पारम्परिक नाटय़
ओमप्रकाश भारती
उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (इलाहाबाद)
मूल्य – 300/-रुपये
नाटय़ विधा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ ही यह पुस्तक बिहार की प्राचीन एवं वर्तमान नाटय़ कला की विभिन्न विधाओं का परिचय कराती है. बिहार के नटुआ नाच, जट-जटिन प्रदर्शन की झांकी, किरतनिञा, सहलेस नाच, हुड़ुक नाच और विदेसिया की रोचक जानकारी के साथ इनके आकर्षक छायाचित्र भी इस पुस्तक में हैं. अर्थकेंद्रित आधुनिकता के इस दौर में लुप्तप्राय होते पारम्परिक लोक नाटय़ों पर आधारित यह पुस्तक, लेखक का सराहनीय प्रयास है.
बहत्तर मील
अशोक वटकर
अनुवाद- सुलभा कोरे
क्षितिज इंटरनेशनल, मुम्बई
मूल्य- 160/- रुपये
यह उपन्यास बचपन में सातारा से कोल्हापुर तक की तीन दिनों की यात्रा के दौरान, लेखक के बालमन पर अंकित होनेवाले जीवन के हृदय-विदारक अनुभवों की कथा है. लेखक बड़ी कुशलता से यह बताने में कामयाब हुआ है कि समाज की सामूहिक चेतना मरती जा रही है. पाठकों को अंदर तक झकझोर देने वाले इस उपन्यास की नायिका राधाक्का के जीवन की दुखभरी दास्तान को पाठक लम्बे समय तक भूल नहीं पाते हैं, जो उपन्यास की बड़ी विशेषता है.