नवम्बर 2014

COVERसारी योजनाओं, कार्यक्रमों, वादों, दावों के बावजूद आज भी देश के, कम से कम ग्रामीण भारत के सरकारी स्कूलों में न बच्चों के बैठने के लिए पर्याप्त व्यवस्था है, न पीने के लिए पानी, न शौचालय. शिक्षा के नाम पर खानापूर्ति होती है. मिड डे मील के लालच में स्कूलों में आये बच्चे पढ़ने के लिए बैठते ही नहीं, यह शिकायत गलत नहीं है, पर इस सवाल का जवाब कौन देगा कि स्थिति ऐसी बनी कैसे?

शिक्षा के नाम पर हो रहे इसी तमाशे के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में भी निजी स्कूलों की संख्या लगातार बढ़ रही है. अभिभावक सोचते हैं, भारी फीस देकर बच्चों को ‘अ से अनार’ के बजाये ‘ए फॉर एप्पल’ सिखाएंगे तो उनका भविष्य बन जाएगा. यह कोई नहीं सोच रहा कि वर्तमान कैसे बेहतर बनायें. जिन पर यह सोचने की ज़िम्मेदारी है, वे अपने सोच की सीमाओं को विस्तार ही नहीं देना चाहते. शिक्षा के क्षेत्र में यह सब जो हो रहा है, किसी से छिपा नहीं है, पर बीमारी का इलाज पत्तों पर दवा छिड़क कर किया जा रहा है, जबकि ज़रूरत जड़ों को दवा देने की है. प्राथमिक कक्षाओं में अंग्रेज़ी माध्यम की वकालत करने वाले यह समझना ही नहीं चाहते कि बस्ते के बढ़ते बोझ की तरह ही बच्चों के दिमागों पर पड़ने वाला बोझ भी शिक्षित बनाने की प्रक्रिया को धीमा ही नहीं करता, शिक्षा के उद्देश्यों को भी धूमिल कर देता है.

कुलपति उवाच

आधुनिक शिक्षा का शाप
के.एम. मुनशी

शब्द यात्रा

दूर की दूरदर्शिता (भाग-1)
आनंद गहलोत

पहली सीढ़ी

बच्चे स्कूल जा रहे हैं…
निदा फाजली

आवरण-कथा

सम्पादकीय
चट्टानों के पार जाने वाली रात
कृष्ण कुमार
हम पहली के बच्चे हैं…
उषा शर्मा
भाषा परायी तो आशा कैसी?
रमेश थानवी
बाराखड़ी विधाता बांचे
केदार कानन
प्रारम्भिक शिक्षा का डगमग सफर
उषा बापना
अज्ञान भी ज्ञान है
विनोबा
शिक्षा सामाजिक दायित्व है
राजीव देहेजिया, सुजाता बिसारिया
अंग्रेज़ी माध्यम मुसीबत बन गया
महात्मा गांधी

धारावाहिक आत्मकथा

सीधी चढ़ान (बाइसवीं किस्त)
कनैयालाल माणिकलाल मुनशी

नोबेल कथा

तुम मुझे पसंद हो
सिंकलेर लुइस

व्यंग्य

शिक्षा का शर्तिया उद्धार
यज्ञ शर्मा

आलेख

आसमान को ऊंचा करने के लिए
अमृता प्रीतम
गांधी गुरु नहीं थे, नेहरू शिष्य नहीं थे, फिर भी…
इंद्रनाथ चौधुरी
बचपन बचाने की नोबेल मुहिम
बच्चों के अधिकार यानी हमारे भविष्य की गारंटी
सुधारानी श्रीवास्तव
राजू आइ.ए.एस. हो गया
डॉ. राजेंद्र भारूड
पांडिचेरी का राज्य पुष्प नागलिंगा
डॉ. परशुराम शुक्ल
भाऊ समर्थ ने रेखाओं और शब्दों को जिया
चंद्रमोहन दिनेश
हिन्दू क्यों हूँ
अरुणेंद्रनाथ वर्मा
फूलों वाले देश के एक बच्चे की पीड़ा
विद्यार्थी चटर्जी
चिट्ठी पाकिस्तान से
राजनीति का अंतिम नायक
रमेश जोशी
यादें, क्षति, पहचान, तलाश… और नोबेल
ओरलियन ब्रीडन
किताबें

कहानियां

रिवाइवल
गोपाल शर्मा
घर लौटने के लिए
जुनै माव्ल्यानोव

कविताएं

एक बच्चे का आज़ादी-गीत
सूर्यभानु गुप्त
बच्चे तो बच्चे हुए
राजनारायण चौधरी

समाचार

भवन समाचार
संकति समाचार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *