उजाले के प्रति आस्था और विश्वास का यह स्वर वस्तुतः जीवन के प्रति उस लगाव की प्रतिध्वनि है, जो सांसों को परिभाषित भी करता है, और परिमार्जित भी. रात जब बहुत लम्बी हो जाती है तो भोर के उजाले के आने की आहट होने लगती है. कितनी भी लम्बी क्यों न हो, रात आखिर रात ही तो होती है. खत्म तो उसे होना ही है. पर जो अंधेरे आज जीवन पर आच्छादित होते लग रहे हैं, उनके खत्म होने की एक शर्त है. यह अंधेरे अज्ञान के भी हैं और उस प्रमाद के भी जिसके चलते हमने उन मूल्यों और आदर्शों की अनदेखी कर दी जो जीवन को सार्थक बनाते हैं. आचार्य तुलसी ने जीवन को अर्थ देनेवाले, इन्हीं मूल्यों, आदर्शों की स्थापना के लिए अणुव्रत के रूप में एक आंदोलन चलाया था. स्वतंत्रता प्राप्ति के संघर्ष की समाप्ति के साथ ही उस राजनैतिक स्वतंत्रता को एक नैतिक आधार देने की आवश्यकता को उन्होंने महसूसा.
कुलपति उवाच
यांत्रिक बनाती शिक्षा
के.एम. मुनशी
शब्द यात्रा
कोठी में कमरे
आनंद गहलोत
पहली सीढ़ी
दीवा जलाना कब मना है?
हरिवंशराय बच्चन
आवरण-कथा
सम्पादकीय
सभ्यता की बुनियाद हैं नैतिक मूल्य
कैलाशचंद्र पंत
परम्पराओं का मंथन गढ़ता है हर युग के मूल्य
विजय किशोर मानव
निर्विकल्प नैतिकता के साधक
आलोक भट्टाचार्य
उजाले में अंधेरों की तलाश के विरुद्ध अंधकार में दीपक
आचार्य महाश्रमण
मानवधर्म का प्रतीक अणुव्रत
आचार्य तुलसी
आध्यात्मिक आंदोलन
जयप्रकाश नारायण
अणुव्रत और मूल्यों की खोज
आचार्य महाप्रज्ञ
धारावाहिक आत्मकथा
सीधी चढ़ान (इक्कीसवीं किस्त)
कनैयालाल माणिकलाल मुनशी
नोबेल कथा
एक सपने की मौत
सीग्रिद उंडसेत
व्यंग्य
हिन्दी साहित्य में भ्रष्टाचार का योगदान
शशिकांत सिंह ‘शशि’
आलेख
हजारों रोशनियों का सपना
नंद चतुर्वेदी
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ज्योति का गतिपथ
परिचय दास
हमें स्वयं को परिभाषित करना है
प्रो. रमेशचंद्र शाह
सार्थक लेखन का ईमानदार आग्रही
रमेश नैयर
गांधीगिरी मनुष्यता को संकटों से बचाएगी
धर्मपाल अकेला
दिव्य प्रवाह से अनंत तक
मैलविल डी मैलो
गुजरात का राजकीय पुष्प ः गेंदा
डॉ. परशुराम शुक्ल
तुम बिल्कुल हम जैसे निकले
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मन में आया था वह पुस्तक चुरा लूं…
अभिमन्यु अनत
किताबें
कहानियां
कभी न समाप्त होने वाली कहानी
यू. आर. अनंतमूर्ति
वसीयत
मालती जोशी
कविताएं
अणुव्रत गीत
सूर्यभानु गुप्त
दीवाली ने…
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संघमित्रा मिश्रा
ग़ज़ल
ज़हीर कुरेशी
समाचार
भवन समाचार
संस्कृति समाचार
4 comments for “अक्टूबर 2014”