सितारा गुल!

   ♦  लाजार लागिन     

      किसी जमाने की बात है- वह जमाना न मेरा था, न आपका था, न किसी और का. तब एक वैज्ञानिक था. खगोल शास्त्री. उसका नाम था अहमद. इस अहमद के बारे में सुना जाता था कि उसने ऐसा तरीका खोज लिया है, जिससे आकाश के किसी भी सितारे को गुल किया जाता सकता है- बेशक, बहुत ही ज़रूरत हो तो.

     जब इसकी खबर उस प्रदेश के सुलतान के कान तक पहुंची, तो उसने आज्ञा जारी कर दी कि अहमद को हमारे सामने ह़ाजिर किया जाये.

     अहमद को ह़ाजिर किया गया. ‘क्या तू ही वह आदमी अहमद है, जो कि सुनते हैं कि सितारों को बुझा सकता है?’ सुलतान ने पूछा.

     ‘हां, जहांपनाह! मैं ही वह अहमद हूं.’ मगर ‘सुनते हैं’ की कोई बात नहीं. मैं सचमुच आकाश के सितारों को बुझा सकता हूं- बेशक, बहुत जरूरी हो तो।

     ‘तो अच्छी बात है.’ सुलतान बोला- ‘ज़रा उस सितारे को बुझाकर दिखा, उस सितारे को.’ और सुलतान ने आसमान में उंगली घोंप दी.  

     ‘परवर-दिगार!’ अहमद एकदम सफेद पड़ गया और बोला- ‘बिना कारण एक सितारे को क्यों नष्ट करा रहे हैं आप. यों भी बहुत ही ज़रूरी हो, तभी यह किया जा सकता है.’

     ‘क्या कहा? क्या मेरी इच्छा बहुत ज़रूरी नहीं है? उसे इसी क्षण बुझा दे. नहीं तो तेरा सिर धड़ से अलग कर दिया जायेगा.’

     अब चारा ही क्या था! अहमद पहरेदारों के साथ दौड़ा-दौड़ा घर गया और अपने यंत्र ले आया, और यंत्रों के साथ कुछ खुटर-पुटर करने के बाद उसने निवेदन किया- ‘ओ दुनिया के सबसे विवेकी बादशाह! वैज्ञानिकों और विद्वानों के परम मित्र! आपकी इच्छा अनुसार वह तारा बुझा दिया गया है.’

     सुलतान के नज़र उठाकर आसमान में ताका, मगर सितारा तो उसी तरह चमक रहा था और चारों तरफ उजली किरणें फेंक रहा था.

     ‘अरे धूर्त! पाखंड़ी! अपने सुलतान का मज़ाक उड़ाना चाहता है तू!’

     ‘नहीं माई-बाप!’ अहमद उसके कदमों में लेटता हुआ चिल्ला उठा- ‘मेरा सिर मत कटवाइये. मुझे एक बात स्पष्ट करने का अवसर दीजिये.’

     ‘अब तो तू परलोक में अपनी बात स्पष्ट करना. दोजख के कुत्ते!’

     अहमद का सिर कलम कर दिया गया और कटे सिर को भाले में खोंपकर सारे शहर में घुमाया गया, ताकि सभी अहमदों को ऐसी नसीहत मिल जाये, जिसे वे जीवन-भर न भूलें.

      इसके बाद दस साल बीत गये, पचास साल, सौ साल.

     लोगों को न उस सुलतान की याद रह गयी, जिसने अहमद का सिर क्यों कटवाया.

     सौ साल और बीत गये, फिर दो सौ और तीन सौ. उसके ऊपर बयालीस साल, चार दिन दो घंटे और सैंतीस मिनिट और गुजर गया. खगोलशास्त्रियों ने नज़रें ऊंची करके आसमान में देखा. लीजिये, वह सितारा नदारद था!

     दौड़े-दौड़े वेधशाला में गये, उन्होंने दूरबीनों में से झांककर देखा. सितारा सचमुच नदारद था.

     उस कभी के बुझे हुए सितारे के प्रकाश को पृथ्वी पर पहुंचने में पूरे चार सौं बयालीस साल, चार दिन, दो घंटे और सैंतीस मिनिट लगे थे.

     अब तो आप समझ गये न?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *