सबसे अधिक बिक्री वाला उपन्यास

♦  सुखबीर द्वारा प्रस्तुत       

     12 फरवरी, 1963. न्यूयार्क की जैकलीन सूसन नामक टेलिविजन अभिनेत्री ने टाइपराइटर पर कागज चढ़ाया और अपने दोनों हाथों की तीन उंगलियों से टाइप करती हुई वह एक उपन्यास लिखने लगी. उस समय न तो सूसन, न अन्य कोई व्यक्ति ही जानता था कि संसार भर में सबसे तेजी से बिकने वाला उपन्यास जन्म लेने लगा है. और जब फरवरी 1966 में वह उपन्यास प्रकाशित हुआ, तो चौबिस घंटों में एक लाख प्रतियों के हिसाब से बिकने लगा.

     इस उपन्यास का नाम है ‘वैली आफ दि डाल्स’, जिसकी आज अस्सी लाख से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं. आखिर इस उपन्यास की इतनी लोकप्रियता का कारण क्या है? उसकी लेखिका के शब्दों में ही सुनिए-

     ‘यह उपन्यास इसलिए बिक रहा है कि यह एक कहानी है. इसके पात्र ऐसे लोग हैं, जो आपको सच्चे लगेंगे और जिनके दुख सुख में आप शरीक होना चाहेंगे. आप उनके बारे में बातें करेंगे और आपकी वे बातें एक मुंह से दूसरे मुंह तक पहुंचती हुई उपन्यास की चर्चा करेंगी, और जो भी उन बातों को सुनेगा, वह उपन्यास पढ़ना चाहेगा.’

     इस उपन्यास में तीन लड़कियों की कहानी है, जो अपने जीवन के लगभग बीस साल हालिवुड और ब्राडवे की फिल्मों और नाटकों की दुनिया में बिताती हैं. लेखिका के शब्दों में- ‘यह उपन्यास जो बात कहना चाहता है, बहुत स्पष्ट शब्दों में कहता है, और ऐसी हर स्त्री से कहता है, जिसने कभी ऊपर उठने, प्रसिद्धि और धन-दौलत पाने का सपना देखा और जो अंत में किसी साधारण-से व्यक्ति से शादी करके साधारण-सा जीवन बिताने लगी है.’

     ‘वैली आफ दि डाल्स’ जहां एक तरफ खूब बिका, वहीं दूसरी तरफ उसकी कटु एवं कठोर आलोचनाएं भी हुईं. ‘टाइम’ पत्रिका ने उसे ‘गंदी पुस्तक’ कहा. कई आलोचकों को अभिनेत्री जैकलीन सूसन के ‘लेखिका’ बन जाने पर हैरानी भी हुई. भाषा और शैली की दृष्टि से भी उपन्यास को भोंडा बताया गया. यहां तक कहा गया कि वह साहित्यिक तौर पर बहुत निम्न स्तर के पाठकों को ही आनंद दे सकता है और यही उसकी सफलता का सबसे बड़ा कारण है.

     सन 1943 में सूसन जब सोलह वर्ष की थी, अपना घर छोड़कर ‘थियेटर में त़ूफान लाने के लिए’ न्यूयार्क आयी थी. वह लगभग बारह साल तक अभिनेत्री के रूप में काम करती रही. सन 53 से 56 तक लगातार चार साल वह टेलिविजन की सबसे बढ़िया लिबास पहनने वाली अभिनेत्री मानी गयी.

     लेकिन वह जानती थी कि वह बहुत बढ़िया अभिनेत्री नहीं है. वह बताती है- ‘बस, गुजारे लायक ही काम था मेरा. यों, गुजारा अच्छी तरह हो जाता था!’

     ‘एक बार हमारी थियेटर-कम्पनी को कैलिफोर्निया जाना पड़ा. मैं अपने पति से दूर रहना नहीं चाहती थी. सो, मैं न्यूयार्क में ही रहकर दूसरे प्रोग्रामों में हिस्सा लेने लगी. मैं अच्छा पैसा कमा रही थी. लेकिन एक दिन जब मैं किसी होटल से निकल रही थी, तो एक छोटे-से लड़के ने मुझे देखकर ऐसा फिकरा कसा कि मुझे लगा, मैं व्यापारिक फिल्मों में काम करने वाली एक साधारण-सी अभिनेत्री हूं. अभिनेत्री बनने की कोशिश में पंद्रह साल बीत गये थे, और अंत में मैं व्यापारिक फिल्मों की अभिनेत्री बनकर रह गयी थी. तब मैंने लेखिका बनने का फैसला किया.’

     ‘इसके पहले भी मैं लिखने का प्रयत्न करती रही थी. फिल्मों की शूटिंग से लौटने पर जब मैं दो या तीन बजे घर पहुंचती, तो कुछ-न-कुछ लिखने बैठ जाती- खास तौर से कहानियां. लेकिन वे चीजें मैंने आज तक किसी को दिखायी नहीं है.फिर मैंने  जोसेफीन नामक अपनी कुतिया के बारे में एक पुस्तक लिखी. जब वह छपी, तो उसकी बहुत अच्छी समालोचना हुई. पाठकों के पत्र आये कि मैं कुछ लिखूं. सो मैंने ‘वैली आफ दि डाल्स’ उपन्यास लिखना शुरू किया.’

     ‘तब मुझे लगा कि लिखना मेरे लिए एक नशे की तरह है. यह उपन्यास मैंने पैसों के लिए नहीं लिखा. शुरू-शुरू में मुझे कुछ लोगों ने कहा भी था कि फिल्मी दुनिया की पृष्ठभूमि पर लिखी गयी पुस्तक के बिकने और प्रसिद्ध होने की सम्भावना नहीं है. लेकिन मैंने प्रसिद्ध के लिए भी यह उपन्यास नहीं लिखा. मैं बुनियादी तौर पर एक कहानीकार हूं, और कहानी कहने की खातिर ही मैंने उपन्यास लिखा.’

     ‘यह कहानी उन लोगों की है, जो मेरे दिमाग से जनमे हैं. यों उपन्यास की तीनों लड़कियों का सम्बंध हॉलिवुड की मेरिलिन मनरो, जुडी गार्लैंड और ग्रेस केली- इन तीन प्रसिद्ध अभिनेत्रियों से जोड़ा जाता रहा है और कहा जाता है कि मैंने उन तीनों की अनुकृति पर ही अपने उपन्यास की तीन मुख्य स्त्री पात्रों की सृष्टि की है. लेकिन यह सरासर गलत है.’

     फिर भी यह सवाल पैदा होता है कि इस उपन्यास की इतनी ज्यादा बिक्री का रहस्य क्या है? इसमें शक नहीं कि बहुत बड़े पैमाने पर इस किताब की विज्ञापनबाजी हुई है. ‘न्यूयार्क टाइम्स’ जैसे समाचार-पत्र में उसके पूरे पृष्ठ के विज्ञापन छपते रहे हैं, जिन पर प्रकाशक ने एक लाख डालर से ज्यादा खर्च किया है.

     उपन्यास की विज्ञापनबाजी में सूसन ने भी हिस्सा लिया है. लगभग एक सौ टेलिविजन के और दो सौ रेडियो के प्रोग्रामों में हिस्सा लेकर उसने उपन्यास की चर्चा की है. एक लोकप्रिय अभिनेत्री टेलिविजन और रेडियो पर अपने उपन्यास की चर्चा करे तो उसे सुनने वाले लाखों लोग स्वभावतः उसे पढ़ना चाहेंगे.

     सूसन ने कुछ नये तरीकों से भी उपन्यास की विज्ञापनबाजी की है. वह देश-भर में पुस्तकों की बड़ी दुकानों में जाती है. अगर उसे पता लगा कि किसी दुकानदार ने उसका उपन्यास नहीं पढ़ा है, तो वह खुद उसकी दुकान से उपन्यास खरीदती है और उस पर अपने हस्ताक्षर करके दुकानदार को उपहार के रूप में देती है. उसका कहना है कि अगर दुकानदार ने खुद पुस्तक नहीं पढ़ी, तो वह उसे पूरी सरगर्मी से नहीं बेच सकेगा.

     फिर जब कोई पुस्तक एक लाख से ज्यादा बिक जाती है, तो इसके बाद वह खुद-ब-खुद बिकने लगती है. उसकी चर्चा हर एक आदमी की जबान पर होती है, और लोग उसे खरीदे बिना नहीं रह सकते. देखा गया है कि उपन्यास खरीदने वाले ग्राहकों में अधिकांश स्त्रियां होती हैं. पुरुष प्रायः इतिहास, जीवनी आदि से सम्बंधित पुस्तकें खरीदते हैं.

     लेकिन जब कोई पुरुष अपनी पत्नी को रात-भर किसी उपन्यास से चिपकी हुई देखता है, तो वह खुद भी उस उपन्यास को पढ़ने के लिए उत्सुक हो उठता है. तब न कोई आलोचक ही उसे रोक सकता है, और न कोई और चीज उसे उपन्यास पढ़ने से हटा सकती है.  

(अप्रैल 1971)

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