शब्द शक्ति (अध्यक्षीय) मार्च 2016

हमें याद है जवाहरलाल नेहरू का प्रसिद्ध भाषण ‘नियति से साक्षात्कार’ जो उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के अवसर पर दिया था. वह इतना जबर्दस्त, सटीक और जीवंत रूप में था कि वह हमारी याद में हमेशा रहेगा. उन शब्दों में आज भी वही जादू और मोहित कर लेने वाला गुण है.

सफल व्यक्तियों में जो गुण होते हैं उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है सटीक संवाद-कौशल. वे सूचनाओं की तह तक पहुंच जाने और जो कुछ सीखा है उसे दूसरों तक पहुंचा देने की दृष्टि से बहुत प्रतिभाशाली होते हैं. वे तथ्यों सहित अपने अतिमहत्त्वपूर्ण सुझावों को लोगों तक सही और सटीक शब्दों के माध्यम से पहुंचाते हैं.

सफलता का एक मापदंड यह है कि आप शब्दों को कितने सही और सटीक ढंग से व्यक्त कर सकते हैं. जैसा कि हम सब उस समय को याद कर सकते हैं जब शब्द हमें जादू की तरह लगते हैं. हमें वह भी समय याद है जब हमारी बातचीत बुरी तरह से गड़बड़ा जाती है. शब्द दीवार हो सकते हैं लेकिन वे पुल का काम भी करते हैं. आवश्यक है कि हम शब्दों का उपयोग लोगों को जोड़ने के लिए करें, तोड़ने के लिए नहीं.

भाषा में कुशलता, दक्षता और प्रवीणता प्राप्त करना, अपनी बात को ठीक ढंग से लोगों तक पहुंचाने के लिए सटीक शब्दों के उपयोग की क्षमता गायन सीखने या किसी वाद्य यंत्र को बजाना सीखने के समान ही होती है. इसके लिए आवश्यकता है असाधारण प्रयास और अभ्यास की; और साथ ही होनी चाहिए रचनात्मक, खोजी, आकांक्षी और जिज्ञासु बुद्धि.

सभी को मनीषा के स्तर तक ज्ञानार्जन करना चाहिए जो स्वयं को तो सशक्त बनाये ही सक्षम संवाद क्षमता के माध्यम से औरों को भी क्षमता दे.

जब संवाद रचनात्मक, उपयोगी और आदर्श भावनाओं के अनुरूप होता है, हमारे संवाद का कथ्य उत्साहवर्धक, रचनात्मक और मंत्रमुग्ध कर देने वाला होता है, तब हम धीरे-धीरे प्रभुता और लघुता के बीच की दूरी को कम करते हैं.

ईश्वर ने मनुष्य को रचनात्मक और चिंतन क्षमता के आशीर्वाद के लिए चुना ताकि मनुष्य स्वयं को ऊपर उठा सके और ईश्वरीय ज्ञान के सागर में गोते लगा सके. एक अच्छे भाषण में चार गुण होने चाहिए- सारं अर्थात अर्थवत्ता, सुष्टम अर्थात सुंदरता, मधुः अर्थात मधुरता और मितम् अर्थात संक्षिप्तता.

(अध्यक्ष, भारतीय विद्या भवन)

मार्च 2016

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