राजाजी और मुनशी (अध्यक्षीय) अप्रैल 2016

तीस के दशक के प्रारम्भ में गांधीजी के नेतृत्व में चलाये जानेवाले स्वतंत्रता संग्राम से मुनशी जी गहरे जुड़े थे. उस समय एक निष्ठावान समर्थक के रूप में उनको स्वीकार किया जा चुका था और वे आंदोलन के अग्रणी की भूमिका निभा रहे थे. वे जानते थे कि आज़ादी अब दूर नहीं है. उनका हृदय शाश्वत मूल्यों के क्षीण होने को लेकर अधिक चिंतित था और वे उसे रोकने के लिए प्रयासरत थे. महात्मा गांधी से आशीर्वाद लेकर उन्होंने ‘भवन’ की स्थापना की. उस दौर में कुछ अन्य भी नेता थे जो मुनशीजी के इस सराहनीय प्रयास में उत्साहपूर्वक अपनी हर सम्भव और सक्रिय सहायता दे रहे थे. सरदार वल्लभभाई पटेल और राजाजी उनमें प्रमुख थे.

राजाजी एक बड़े असाधारण नेता थे. मुनशी जी ने उन्हें अपनी अंतरात्मा की आवाज़ कहा था. मुनशी जी को अपने हर कार्य में राजाजी का पूर्ण समर्थन, सक्रिय सहयोग व मार्गदर्शन प्राप्त होता था. इसी के चलते उन दोनों के बीच एक आपसी तालमेल स्थापित हो गया था कि जब राजाजी ने स्वतंत्रत पार्टी की स्थापना की तो मुनशी जी तुरंत उससे जुड़ गये.

ब्रिटिश शासन के दौरान मूल्यों के अभाव और सतत गिरावट को लेकर राजाजी प्रत्यक्ष रूप से चिंतित थे. वे अपने देशवासियों को हाथ की हथेली की तरह पहचानते थे. वे दूरदर्शी थे और भविष्यसूचक दृष्टि से सम्पन्न व्यक्ति थे. इसके चलते वे आने वाले समय में देश क्या आकार लेगा इसका आकलन कर लेने में सक्षम थे. और वह भी मुनशी जी द्वारा ‘भवन’ की स्थापना के सोलह वर्ष पूर्व.

1922 में तीन माह की सामान्य कैद के दौरान जेल में वे डायरी लिखते थे. उसमें उन्होंने लिखा था- ‘हम सबको जानना चाहिए कि स्वराज से तत्काल, और मैं समझता हूं, एक लम्बे अर्से तक बेहतर सरकार या जनता की खुशी नहीं मिल जायेगी.

जैसे ही हमें आज़ादी मिलेगी चुनावों और उनमें भ्रष्टाचार, अन्याय, धन की शक्ति और निरंकुशता, और प्रशासन की अक्षमता जीवन को नरक बना देगी. तब लोग खिन्न होकर पूर्व शासन व्यवस्था की ओर देखेंगे, जो उन्हें तुलनात्मक दृष्टि से अधिक प्रभावशाली शांतिपूर्ण और ईमानदार शासन लगेगा.

लाभ जो मिलेगा वह केवल यही कि एक जाति के रूप में हम अपमान और पराधीनता से मुक्त होंगे. आशा निर्भर है इस पर कि शिक्षा के कारण हमारे नागरिकों में बचपन से ही ईश्वर का भय और प्रेम विकसित होगा. इसमें सफल होने पर ही स्वराज का अर्थ आनंद हो पाएगा. अन्यथा इसका अर्थ होगा अन्याय और अर्थ की निरंकुशता.’

(अध्यक्ष, भारतीय विद्या भवन)

अप्रैल 2016

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