(रेहाना जब्बारी का संदेश उनकी मां के नाम)
रेहाना जब्बारी के बारे में दुनिया को पहली बार 2007 में पता चला. तब उनकी उम्र महज 19 साल थी. उन्हें हत्या के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था. रेहाना का कहना था कि ईरान के खु]िफया मामलों के मंत्रालय के पूर्व कर्मचारी 47 वर्षीय मुर्तज़ा अब्दुलाली सरबंदी ने उनका बलात्कार करने की कोशिश की थी और वो अपना बचाव भर कर रही थीं. रेहाना को बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपील की गयी. प्रयास किये गये. सोशल मीडिया पर उन्हें मौत की सज़ा से बचाने के लिए अभियान चलाया गया. लेकिन सब बेअसर रहा. 2007 से 2014 तक चले इस मुकदमे के बाद शनिवार, 2 अक्टूबर, 2014 को रेहाना को तेहरान की एक जेल में फांसी दे दी गयी. रेहाना ने कुछ महीने पहले अपनी मां के नाम एक संदेश भेजा था जिसे उन्होंने अपनी वसीयत भी बताया था. नेशनल काउंसिल ऑ़फ रेज़िसटेंस ऑफ ईरान ने उस संदेश का अंग्रेज़ी अनुवाद उपलब्ध कराया है. यह हिंदी अनुवाद उसी के आधार पर किया गया है.
प्यारी शोले
मुझे आज पता चला कि अब मेरी किसास (इरान का बदले का दण्ड) की बारी आ गयी है. मुझे इस बात का दुख है कि आपने मुझे यह क्यों नहीं बताया कि मैं अपनी ज़िंदगी की किताब के आखिरी पन्ने तक पहुंच चुकी हूं. आपको नहीं लगता कि मुझे ये जानना चाहिए था? आप जानती हैं कि मैं इस बात से कितनी शर्मिंदा हूं कि आप दुखी हैं. आपने मुझे आपका और अब्बा का हाथ चूमने का मौका क्यों नहीं दिया?
दुनिया ने मुझे 19 बरस जीने का मौका दिया. उस अभागी रात को मेरी हत्या हो जानी चाहिए थी. उसके बाद मेरे जिस्म को शहर के किसी कोने में फेंक दिया जाता, और कुछ दिनों बाद पुलिस आपको मेरी लाश की पहचान करने के लिए मुर्दाघर ले जाती और वहां आपको पता चलता है कि मेरे साथ बलात्कार भी हुआ था. मेरा हत्यारा कभी पकड़ा नहीं जाता क्योंकि हमारे पास उसके जितनी दौलत और ताकत नहीं है. उसके बाद आप अपनी बाकी ज़िंदगी गम और शर्मिंदगी में गुज़ारतीं और कुछ सालों बाद इस पीड़ा से घुट-घुट कर मर गयी होतीं और यह भी एक हत्या ही होती.
लेकिन उस मनहूस हादसे के बाद कहानी बदल गयी. मेरे शरीर को शहर के किसी कोने में नहीं बल्कि कब्र जैसी एविन जेल, उसके सॉलिटरी वार्ड और अब शहर-ए-रे की जेल जैसी कब्र में फेंका जायेगा. लेकिन आप इस नियति को स्वीकार कर लें और कोई शिकायत न करें. आप मुझसे बेहतर जानती हैं कि मौत ज़िंदगी का अंत नहीं होती.
आपने मुझे सिखाया है कि हर इन्सान इस दुनिया में तज़ुर्बा हासिल करने और सबक सीखने आता है. हर जन्म के साथ हमारे कंधे पर एक ज़िम्मेदारी आयद होती है. मैंने जाना है कि कई बार हमें लड़ना होता है. मुझे अच्छी तरह याद है कि आपने मुझे बताया था कि बघ्घी वाले ने उस आदमी का विरोध किया था जो मुझपर कोड़े बरसा रहा था लेकिन कोड़ेवाले ने उसके सिर और चेहरे पर ऐसी चोट की जिसकी वजह से अंतत उसकी मौत हो गयी. आपने कहा था कि इन्सान को अपने उसूलों को जान देकर भी बचाना चाहिए.
जब हम स्कूल जाते थे तो आप हमें सिखाती थीं कि झगड़े और शिकायत के वक्त भी हमें एक भद्र महिला की तरह पेश आना चाहिए. क्या आपको याद है कि आपने हमारे बरताव को कितना प्रभावित किया है? आपके अनुभव गलत थे. जब ये हादसा हुआ तो मेरी सीखी हुई बातें काम नहीं आयीं. अदालत में हाज़िर होते वक्त ऐसा लगता है जैसे मैं कोई क्रूर हत्यारा और बेरहम अपराधी हूं. मैं ज़रा भी आंसू नहीं बहाती. मैं गिड़गिड़ाती भी नहीं. मैं रोई-धोई नहीं क्योंकि मुझे कानून पर भरोसा था.
लेकिन मुझपर यह आरोप लगाया गया कि मैं जुर्म होते वक्त तटस्थ बनी रही. आप जानती हैं कि मैंने कभी एक मच्छर तक नहीं मारा और मैं तिलचट्टों को भी उनके सिर की मूंछों से पकड़कर बाहर फेंकती थी. अब मैं एक साजिशन हत्या करने वाली कही जाती हूं. जानवरों के संग मेरे बरताव की व्याख्या मेरे लड़का बनने की ख्वाहिश के तौर पर की गयी. जज ने यह देखना भी गंवारा नहीं किया कि घटना के वक्त मेरे नाखून लंबे थे और उनपर नेलपॉलिश लगी हुई थी.
जजों से न्याय की उम्मीद करने वाले लोग कितने आशावादी होते हैं! किसी जज ने कभी इस बात पर सवाल नहीं उठाया कि मेरे हाथ खेल से जुड़ी महिलाओं की तरह सख्त नहीं हैं, खासतौर पर मुक्केबाज़ लड़कियों के हाथों की तरह. और ये देश जिसके लिए आपने मेरे दिल में मुहब्बत भरी थी, वो मुझे कभी नहीं चाहता था. जब अदालत में मेरे पर सवाल-जवाब का वज्र टूट रहा था और मैं रो रही थी और अपनी ज़िंदगी के सबसे गंदे अल्फ़ाज़ सुन रही थी तब मेरी मदद के लिए कोई आगे नहीं आया. जब मैंने अपनी खूबसूरती की आखिरी पहचान, अपने बालों, से छुटकारा पा लिया तो मुझे उसके बदले ग्यारह दिन तक तन्हा-कालकोठरी में रहने का इनाम मिला.
प्यारी शोले, आप जो सुन रही हैं उसे सुनकर रोइएगा नहीं. पुलिस थाने में पहले ही दिन एक बूढ़े अविवाहित पुलिस एजेंट ने मेरे नाखूनों के लिए मुझे चोट पहुंचायी. मैं समझ गयी कि इस दौर में सुंदरता नहीं चाहिए. सूरत की खूबसूरती, ख्यालों और ख्वाबों की खूबसूरती, लिखावट, आंखों और नज़रिये की खूबसूरती और यहां तक कि किसी प्यारी आवाज़ की खूबसूरती भी किसी को नहीं चाहिए.
मेरी प्यारी मां, मेरे विचार बदल चुके हैं, इसके लिए आप ज़िम्मेदार नहीं हैं. मेरी बात कभी खत्म नहीं होने वाली और मैंने इसे किसी को पूरी तरह दे दिया है ताकि जब आपकी मौज़ूदगी और जानकारी के बिना मुझे मृत्युदंड दे दिया जाए तो उसके बाद इसे आपको दे दिया जाए. मैंने आपके पास अपने हाथों से लिखी इबारत धरोहर के रूप में छोड़ी है.
हालांकि, मेरी मौत से पहले मैं आपसे कुछ मांगना चाहती हूं, जिसे आपको अपनी पूरी ताकत और कोशिश से मुझे देना है. दरअसल बस यही एक चीज़ है जो अब मैं इस दुनिया से, इस देश से और आपसे मांगना चाहती हूं. मुझे पता है आपको इसके लिए वक्त की ज़रूरत होगी. इसलिए मैं आपको अपनी वसीयत का हिस्सा जल्द बताऊंगी. आप रोयें नहीं और इसे सुनें. मैं चाहती हूं कि आप अदालत जायें और उनसे मेरी दरख्वास्त कहें. मैं जेल के अंदर से ऐसा खत नहीं लिख सकती जिसे जेल प्रमुख की इजाज़त मिल जाए, इसलिए एक बार फिर आपको मेरी वजह से दुख सहना पड़ेगा. मैंने आपको कई बार कहा है कि मुझे मौत की सज़ा से बचाने के लिए आप किसी से भीख मत मांगिएगा, लेकिन यह एक ऐसी ख्वाहिश है जिसके लिए अगर आपको भीख मांगनी पड़े तो भी मुझे बुरा नहीं लगेगा.
मेरी अच्छी मां, प्यारी शोले, मेरी ज़िंदगी से भी प्यारी, मैं ज़मीन के अंदर सड़ना नहीं चाहती. मैं नहीं चाहती कि मेरी आंखें और मेरा नौजवान दिल मिट्टी में मिल जाए. इसलिए मैं भीख मांगती हूं कि मुझे फांसी पर लटकाये जाने के तुरंत बाद मेरे दिल, किडनी, आंखें, हड्डियां और बाकी जिस भी अंग का प्रतिरोपण हो सके उन्हें मेरे शरीर से निकाल लिया जाए और किसी ज़रूरतमंद इन्सान को तोहफे के तौर पर दे दिया जाए. मैं नहीं चाहती कि जिसे मेरे अंग मिलें उसे मेरा नाम पता चले, वो मेरे लिए फूल खरीदे या मेरे लिए दुआ करे. मैं सच्चे दिल से आपसे कहना चाहती हूं कि मैं अपने लिए कब्र भी नहीं चाहती, जहां आप आयें, मातम मनायें और गम सहें. मैं नहीं चाहती कि आप मेरे लिए काला लिबास पहनें. मेरे मुश्किल दिनों को भूल जाने की आप पूरी कोशिश करें. मुझे हवाओं में मिल जाने दें.
दुनिया हमें प्यार नहीं करती. इसे मेरी ज़रूरत नहीं थी. और अब मैं इसे उसी के लिए छोड़कर मौत को गले लगा रही हूं. क्योंकि खुदा की अदालत में मैं इंस्पेक्टरों पर मुकदमा चलावाऊंगी, मैं इंस्पेक्टर शामलू पर मुकदमा चलवाऊंगी, मैं जजों पर मुकदमा चलवाऊंगी और देश के सुप्रीम कोर्ट की अदालत के जजों पर भी मुकदमा चलवाऊंगी जिन्होंने ज़िंदा रहते हुए मुझे मारा और मेरा उत्पीड़न करने से परहेज नहीं किया. दुनिया बनाने वाले की अदालत में मैं डॉक्टर फरवंदी पर मुकदमा चलवाऊंगी, मैं कासिम शाबानी पर मुकदमा चलवाऊंगी और उन सब पर जिन्होंने अनजाने में या जान बूझकर मेरे संग गलत किया और मेरे हक को कुचला और इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि कई बार जो चीज़ सच नज़र आती है वो सच होती नहीं.
प्यारी नर्म दिल शोले, दूसरी दुनिया में मैं और आप मुकदमा चलाएंगे और दूसरे लोग अभियुक्त होंगे. देखिए, खुदा क्या चाहते हैं. मैं तब तक आपको गले लगाये रखना चाहती हूं जब तक मेरी जान न निकल जाए. मैं आपसे बहुत प्यार करती हूं.
व्sहाना
(जनवरी 2016)