मार्गदर्शक ज्योति

कुलपति के. एम. मुनशी

कुलपति के. एम. मुनशी

सत्य का अर्थ सर्वदा एक ही मत रखना नहीं है. ज्यों-ज्यों दृष्टि-बिंदु विशाल बनता है, सत्य बदलता रहता है. ऐसे समय एक ही अभिमत को पकड़े रहना, असत्य बन जाता है. सर्वदा एक ही मत बनाये रखना कोई सद्गुण नहीं है. यह असत्य के विषय में छोटे विचारवालों द्वारा बनायी गयी धारणा है. जो व्यक्तित्व निरंतर विकसित हो रहा हो, जहां अविराम परिवर्तन हो रहा हो, वहां निश्चित विचार या आचार हो ही नहीं सकता. मनुष्य को जो सत्य प्रतिक्षण दिखलाई पड़े, उसके प्रति श्रद्धावान बने रहने की निष्ठा यदि उसमें कायम रहे, तो विधान की एकता-स्थिरता- वास्तविक दृष्टि से, बार-बार उतार डालने वाली सांप की केंचुली ही है.

सत्य परस्मैपदी नहीं, आत्मनेपदी है. उसका आधार अधिकांश स्वानुभव होता है. मैं इस समय जो कुछ मानता हूं, वही बोलूं, तो मैं सत्यनिष्ठ कहा जाऊंगा. आप मुझसे भिन्न मत रखते हो और सत्यनिष्ठ हो, यह हो सकता है क्योंकि यह सम्भव है कि आपका प्रत्यक्ष अनुभव या अनुमान मुझसे भिन्न हो. इसलिए प्रत्येक मनुष्य का सत्य भिन्न होता है.

सत्य की खोज करने वाले मनुष्यों को, अपने को हुए सत्य-दर्शन के अनुसार चलने में ही सत्य दिखलाई पड़ा है. सत्य विश्वव्यापी है; इस अर्थ में कि सब उसे खोजते हैं और सब उसका सम्मान करते हैं. सत्य, समस्त शुद्ध बुद्धि के प्रयत्नों की मार्गदर्शक ज्योति है. ‘मुझे सत् तत्त्व का अनुभव हो गया है’, मनुष्य के मन में ऐसा विश्वास हो जाना ही उसका सत्य है.

(कुलपति के. एम. मुनशी भारतीय विद्या भवन के संस्थापक थे)

(January 2013)