महात्मा गांधी को चिट्ठी पहुंचे

पत्र-व्यंग्य

– हरिशंकर परसाई

यह चिट्ठी महात्मा मोहनदास करमचंद गांधी को पहुंचे. महात्माजी, मैं न संसद सदस्य हूं, न विधायक, न मंत्री, न नेता. इनमें से कोई कलंक मेरे ऊपर नहीं है. मुझमें कोई ऐसा राजनीतिक ऐब नहीं है कि आपकी जय बोलूं. मुझे कोई पद भी नहीं चाहिए कि राजघाट जाऊं. मैंने आपकी समाधि पर शपथ भी नहीं ली.

आपका भी अब भरोसा नहीं रहा. पिछले मार्च में आपकी समाधि पर मोरारजी भाई ने भी शपथ ली थी और जगजीवन बाबू ने भी. मगर बाबूजी रह गये और मोरारजी प्रधानमंत्री हो गये. आखिर गुजराती ने गुजराती का साथ दिया!

जिन्होंने आपकी समाधि पर शपथ ली थी, उनका दस महीने में ही ‘ज़िंदाबाद’ से ‘मुरदाबाद’ हो गया. वे जनता से बचने के लिए बाथरूम में बिस्तर डलवाने लगे हैं. मुझे अपनी दुर्गति नहीं करानी. मैं कभी आपकी समाधि पर शपथ नहीं लूंगा. उसमें भी आप टांग खींच सकते हैं.

आपके नाम पर सड़पें हैं- महात्मा गांधी मार्ग, गांधी पथ. इन पर हमारे नेता चलते हैं. कौन कह सकता है कि इन्होंने आपका मार्ग छोड़ दिया. वे तो रोज महात्मा गांधी रोड पर चलते हैं.

इधर आपको और तरह से अमर बनाने की कोशिश भी हो रही है. पिछली दीवाली पर दिल्ली के जनसंघी शासन ने सस्ती मोमबत्ती सप्लाई करायी थी. मोमबत्ती के पैकेट पर आपका फोटो था. फोटो में आप आर.एस.एस. के ध्वज को प्रणाम कर रहे हैं. पीछे डॉक्टर हेडगेवार खड़े हैं.

एक ही कमी रह गयी. आगे पूरी हो जायेगी. अगली बार आपको हाफ पैंट पहना दिया जायेगा और भगवा टोपी पहना दी जायेगी. आप मजे में आर.एस.एस. के स्वयंसेवक के रूप में अमर हो
सकते हैं. आगे वही अमर होगा, जिसे जनसंघ करेगा.

कांग्रेसियों से आप उम्मीद मत कीजिए. यह नस्ल खत्म हो रही है. आगे गड़ाये जानेवाले कालपात्र में एक नमूना कांग्रेस का भी रखा जायेगा, जिससे आगे आनेवाले यह जान सकें कि पृथ्वी पर एक प्राणी ऐसा भी था. गेंडा तो अपना अस्तित्व कायम रखे है, पर कांग्रेसी नहीं रख सका.

मोरारजी भाई भी आपके लिए कुछ नहीं कर सकेंगे. वे सत्यवादी हैं. इसलिए वे अब यह नहीं कहते कि आपको मारने वाला गोडसे आर.एस.एस. का था.

यह सभी जानते हैं कि गोडसे फांसी पर चढ़ा, तब उसके हाथ में भगवा ध्वज था और होंठों पर संघ की प्रार्थना- नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि. पर यही बात बताने वाला गांधीवादी गाइड दामोदरन नौकरी से निकाल दिया गया है. उसे आपके मोरारजी भाई ने नहीं बचाया.

मोरारजी सत्य पर अटल रहते हैं. इस समय उनके लिए सत्य है प्रधानमंत्री बने रहना. इस सत्य की उन्हें रक्षा करनी है. इस सत्य की रक्षा के लिए जनसंघ का सहयोग ज़रूरी है. इसलिए वे यह झूठ नहीं कहेंगे कि गोडसे आर.एस.एस. का था. वे सत्यवादी हैं.

तो अब महात्माजी, जो कुछ उम्मीद है, बाला साहेब देवरस से है. वे जो करेंगे, वही आपके लिए होगा. वैसे काम चालू हो गया है. गोडसे को भगतसिंह का दर्जा देने की कोशिश चल रही है. गोडसे ने हिंदू राष्ट्र के विरोधी गांधी को मारा था.

गोडसे जब भगतसिंह की तरह राष्ट्रीय हीरो हो जायेगा, तब तीस जनवरी का क्या होगा? अभी तक यह ‘गांधी निर्वाण दिवस’ है, आगे ‘गोडसे गौरव दिवस’ हो जायेगा. इस दिन कोई राजघाट नहीं जायेगा. फिर भी आपको याद ज़रूर किया जायेगा.

जब तीस जनवरी को गोडसे की जय-जयकार होगी, तब यह तो बताना ही पड़ेगा कि उसने कौन-सा महान कर्म किया था. बताया जायेगा कि इस दिन उस वीर ने गांधी को मार डाला था. तो आप गोडसे के  बहाने याद किये जायेंगे. अभी तक गोडसे को आपके बहाने याद किया जाता था.

एक महान पुरुष के हाथ से मरने का कितना फायदा मिलेगा आपको? लोग पूछेंगे- यह गांधी कौन था? जवाब मिलेगा- वही जिसे गोडसे ने मारा था.

एक संयोग और आपके लिए अच्छा है. 30 जनवरी 1977 को जनता पार्टी बनी थी. 30 जनवरी जनता पार्टी का जन्म-दिन है. अब बताइए, जन्म-दिन पर कोई आपके लिए रोयेगा? वह तो खुशी का दिन होगा.

आगे चलकर जनता पार्टी पूरी तरह जनसंघ हो जायेगी. तब 30 जनवरी का यह महत्त्व होगा- इस दिन परमवीर राष्ट्रभक्त गोडसे ने गांधी को मारा. इस पुण्य के प्रताप से इसी दिन जनता पार्टी का जन्म हुआ, जिसने हिंदू राष्ट्र की स्थापना की.

आप चिंता न करें, महात्माजी! हमारे मोरारजी भाई को न कभी चिंता होती है, न वे कभी तनाव अनुभव करते हैं. चिंता क्यों हो उन्हें? किसकी चिंता हो? देश की? नहीं. उन्होंने तो ऐलान कर दिया है- राम की चिड़िया, राम के खेत! खाओ री चिड़िया, भर-भर पेट! तो चिड़िया खेत खा रही है और मोरारजी को कोई चिंता, कोई तनाव नहीं है.

बाकी भी ठीक चल रहा है. आप जो लाठी छोड़ गये थे, उसे चरणसिंह ने हथिया लिया है.

चौधरी साहब इस लाठी को लेकर जवाहरलाल नेहरू का पीछा कर रहे हैं. जहां नेहरू को पा जाते हैं, एक-दो हाथ दे देते हैं. जो भी नेहरू नीतियों की वकालत करता है, उसे चौधरी आपकी लाठी से मार देते हैं.

उस दिन चंद्रशेखर ने कहीं कह दिया कि नेहरू की उद्योगीकरण की नीति सही थी और उससे देश को बहुत फायदा हुआ है.

चरणसिंह ने सुना तो नौकर से कहा- अरे, लाना गांधीजी की लाठी!

लाठी लेकर चौधरी चंद्रशेखर को मारने निकल पड़े. बेचारे बचने के लिए थाने गये तो थानेदार ने कह दिया- पुलिस चौधरी साहब की है. वे आपको मार रहे हैं, तो हम नहीं बचा सकते.

आप हरिजन वगैरह की चिंता मत कीजिए. हर साल कोटा तय रहता है कि इस साल गांधी जयंती तक इतने हरिजन मरेंगे. इस साल ‘कोटा’ थोड़ा बढ़ा दिया गया था, क्योंकि जनता पार्टी के नेताओं ने राजघाट पर शपथ ली थी.

उनकी सरकार बन गयी. उन्हें शपथ की लाज रखनी थी. इसीलिए हरिजनों को मारने का ‘कोटा’ थोड़ा बढ़ा दिया गया. खुशी है कि कोटे से कुछ ज़्यादा ही हरिजन मारे गये.

आप बेफिक्र रहें, आपका यश किसी न किसी रूप में सुरक्षित रहेगा.

आपका

एक भक्त

 (जनवरी 2016)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *