मनुष्य सीमित, पृथक इकाई नहीं है (अध्यक्षीय) मई 2016

भारत में रहस्यवाद, वास्तविक न सही पर आध्यात्मिक अनुमानों में या कम से कम इसकी दर्ज अभिव्यक्ति में, मानव परिवार की अन्य शाखाओं से पहले का है. ज़्यादातर आध्यात्मिक समस्याओं को, जिनका आज के साधक सामना कर रहे हैं, भारत के प्राचीन ऋषियों ने पहले ही जान लिया था और उसके लिए समाधान भी विकसित कर लिया था. भारत में रहस्यवादी धर्मशास्त्राsं के अधिकांश सिद्धांतों को अक्सर गहन विश्लेषणात्मक कौशल और व्यापक पैमाने पर बहुत पहले ही तैयार कर लिया गया था. यह वास्तव में दिलचस्प बात है कि दिव्य आत्मिक ज्ञान और मनुष्य की आकांक्षाओं से उत्पन्न सभी बड़ी समस्याओं का सामना भारत के प्रारम्भिक संतों ने किया था. असल में ऐसा लगता है कि मनुष्य की आध्यात्मिक प्रतिभा ने पहले ही प्रागैतिहासिक भारत में अपना पूर्ण विकास प्राप्त कर लिया था क्योंकि प्राचीन ऋषियों ने रहस्यमय अनुभवों के अपने विश्लेषण और तथ्यों के व्यवस्थापन दोनों में पूर्णता तक पहुंचने की एक व्यवस्था प्राप्त की थी.

अधिकांश धर्मों की प्रवृत्ति यदि यह बताना न होती कि उनके सिद्धांत पूर्णतः मौलिक हैं, तो शायद रहस्यवाद की जांच-परख भारतीय रहस्यवादी ईश्वर-मीमांसा तक ही सिमट कर रह जाती.

भारत की विभिन्न प्रणालियों के बीच, योग की विचारधारा, रहस्यमय अध्ययन के क्षेत्र की सबसे बड़ी प्रतिनिधि है, जिसका मुख्य उद्देश्य आध्यात्मिक सिद्धांतों के साथ मानव आत्मा का संयोग करना है. अध्यात्मिक योग दर्शन और रहस्यमय मिलन के उसके तरीकों का महान हिंदू परंपरा के मोक्ष के सिद्धांत के साथ सामंजस्य है.

सामान्य तौर पर कहा जाय तो इसकी शुरुआत इस प्रस्तावना से होती है कि मुक्ति या मिलन का अंतिम लक्ष्य हमसे बहुत दूर या बाहरी उद्देश्य नहीं है, बल्कि मनुष्य के हृदय में अंतर्निहित स्थाई अवस्था है, और योग अध्यात्म के इस पहलू को भी बताता है कि मोह और अज्ञानता के कारण ही मनुष्य में इस मिथ्या धारणा ने घर कर लिया है कि वह सीमित और अलग इकाई है, न कि एक आध्यात्मिक वास्तविकता का एक पक्ष.

ईश्वर से लेकर मनुष्य और सूक्ष्म जंतु तक के लिए संपूर्ण जीवन में एकता का जो विचार है, जो रहस्यवाद की आधारशिला है, उस पर विशेष रूप से उपनिषदों ने ज़ोर दिया है. यह तत्त्वमीमांसा के सार की रुक्षता और वैदिक कालीन कर्मकांडों के बीच की शृंखला का मार्गदर्शन करता है. सभी व्यक्तिगत गुणों को सीमित कर और सभी व्याख्याओं से ऊपर उठकर एक उदात्त क्षेत्र में उसे खोजने की मांग करता हैö ‘यह सबकुछ ब्रह्म है… यह स्वयं हृदय की गहराइयों में है, सबसे छोटे बीज के जंतु से भी छोटा,  यह स्वयं मेरे हृदय कक्ष में है, पृथ्वी से भी अधिक विशाल है, स्वर्ग से अधिक विचित्र, इस समस्त दुनिया से भी बड़ा है.’ ये आध्यात्मिक अभिव्यक्ति के सबसे पुराने स्मारक हैं.

श्री ननी पालखीवाला ने वर्तमान पीढ़ी के अधिकांश लोगों को उस गधे जैसा बताया है जो सोने की ईंट की बोरियां ढोता है, और उस वक्त का इंतज़ार करता है जब वे उसकी पीठ से उतारी जाएंगी. उनकी तुलना गलत नहीं है.

(अध्यक्ष, भारतीय विद्या भवन)

मई 2016

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