मई 2011

May 2011 Cover fnlराजनीति को बदमाशों की अंतिम शरणस्थली बताया गया है और आज की राजनीति को देखते हुए यह कहना भी गलत नहीं लगता कि प्यार और युद्ध की तरह राजनीति में भी सबकुछ जायज़ मान लिया गया है. लेकिन ऐसा मान

लेने का अर्थ यह भी नहीं है कि राजनीति के नाम पर और राजनीति में जो कुछ हो रहा है उसे बिना कोई प्रश्न उठाये स्वीकार कर लिया जाए. राजनीति का जीवन और समाज से सीधा रिश्ता है और जनतांत्रिक व्यवस्था में तो यह भी ज़रूरी है कि राजनीति जीवन के सकारात्मक पक्ष को प्रतिबिम्बित करे और समाज की रचनात्मकता को बल प्रदान करने का माध्यम बने. ऐसा कोई भी माध्यम समाज के स्वीकृत मूल्यों-आदर्शों के प्रतिकूल आचरण करनेवाला नहीं हो सकता. लेकिन, यह दुर्भाग्य ही है कि आज राजनीति को एक ऐसा पेशा बना दिया गया है, जिसमें नैतिकता के लिए कोई स्थान नहीं रहा. मान लिया गया है कि राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कुछ भी किया जा सकता है, सबकुछ उचित है.

 

शब्द-यात्रा

दुश्मन
आनंद गहलोत

पहली सीढ़ी

संकीर्ण न मन हो, माथ रहे यह ऊंचा
रवींद्रनाथ ठाकुर

आवरण-कथा

सम्पादकीय
काश, हम वह सुनहरी किरण पकड़ पायें!
न्यायमूर्ति चंद्रशेखर धर्माधिकारी
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
रमेश नैयर
इस चुनौती को हमें स्वीकारना ही होगा
कैलाशचंद्र पंत
देश के चित्त को बदलना है
ओशो
राजनीति
शरद जोशी

मेरी पहली कहानी

मेहमान
कामतानाथ

आलेख

पिछड़ेपन का बोझा
इवान इलिच
संस्कृति की प्रासंगिकता
विद्यानिवास मिश्र
सांस्कृतिक संगम के कवि रहीम
मैनेजर पांडेय
गुरुदेव ने अपना शांतिनिकेतन बापू को सौंपा था
अमृतलाल वेगड़
गुरुदेव गये जब चीन
राकेश चौरसिया
नागालैंड और हिमाचल प्रदेश का राज्यपुष्प – बुरांस
डॉ परशुराम शुक्ल
‘इसे बड़े और बूढ़े होकर भी पढ़ना’
घनश्यामदास बिड़ला
एक पत्र नातिन के नाम
राजेंद्र शंकर भट्ट
किताबें

व्यंग्य

आओ, क्रिकेट खेलें
मुस्ताक अहमद यूसुफी
उलझा हुआ यक्ष प्रश्न
जसविंदर सिंह

उपन्यास अंश

कंथा (बारहवीं किस्त)
श्याम बिहारी श्यामल

कहानियां

सहयात्रा
वल्लूरु शिवप्रसाद
ज़िम्मेदारी
शतदल

कविताएं

दो ग़ज़लें
विज्ञान व्रत
दो गीत
प्रकाश परिमल
दो गीतिकाएं
रवींद्रनाथ ठाकुर
दो ग़ज़लें
दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
अफगानी कविताएं
वाहेद नत्रोह, रफ़त हुसैनी, लतीफ़ पेदरका

समाचार

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भवन समाचार