शुद्ध अर्थात ब्राह्मण स्वभाव वाले मनुष्य में देव, द्विज, ज्ञानी और विशेषकर अपने गुरू के प्रति पूज्य भाव होता है. विद्वान और मुमुक्षु के प्रति नम्रता का आचरण, जो सच्ची संस्कारिता का वास्तविक लक्षण है- उसमें होता है. वह बोलता है, तब सत्य बोलता है, किंतु कठोरता से नहीं बोलता. वह मन में कुविचार को स्थान नहीं देता और स्वभाव से शांत और स्वस्थ होता है. उसकी वाणी और व्यवहार में संयम होता है. दृष्टि में सर्वात्मभाव होता है.
उसे अपने प्रत्येक कर्म को सम्पूर्ण बनाने की इच्छा होती है, अतएव वह कर्म के फल के प्रति आसक्ति नहीं रखता. अपने हिस्से में आया हुआ नियत कर्म प्रतिकूल होने पर भी वह अटल रहकर अपना काम करता रहता है. कार्य और अकार्य के बीच का भेद वह समझ सकता है. कड़वे, खट्टे, नमकीन, गरम, तीखे और रुक्ष का स्वाद वह पहचानता है. इसीलिए उसे ज्ञान होता है कि वह किस काम को करने योग्य है. इसी प्रकार, अपने स्वभाव के कारण अपने ऊपर आरूढ़ मर्यादाओं का भान भी उसे होता है. अपने समस्त कर्त्तव्यों की जानकारी उसे होती है और उनका पालन करने के लिए वह अपना जीवन अर्पित कर देता है.
(कुलपति के.एम. मुनशी भारतीय विद्या भवन के संस्थापक थे.)
फरवरी 2016