ब्राह्मण कौन है?

कुलपति के. एम. मुनशी

कुलपति के. एम. मुनशी

चातुर्वर्ण्य का आदर्श और व्यवहार में उसका अमल, इन दोनों का एक-दूसरे पर पारस्परिक प्रभाव हुआ है; और उन्होंने मिलकर भारत के सामाजिक विकास को दिशा दी है. श्रीकृष्ण का उपदेश  गतिशील था, इसलिए उन्होंने वर्ण का निश्चय जन्म के बदले गुण कर्म के अनुसार करने के विचार को प्रोत्साहन दिया था और ऐसा करके सामाजिक सम्बंधों की समय-समय पर नये सिरे से व्यवस्था की थी. आदर्श और व्यवहार के इस पारस्परिक प्रभाव के कारण भारतवर्ष में जो सामाजिक तंत्र उत्पन्न हुआ वह चिरस्थाई एवं शक्तिशाली है और फिर भी नये-नये संयोग के अनुसार अपने स्वरूप में परिवर्तन करने की अद्भुत शक्ति उसमें है.

चातुर्वर्ण्य की कल्पना का प्रभाव कितना हुआ, इस पर विचार करते समय यह नहीं भूलना चाहिए कि हिंदू समाज-व्यवस्था सभी युगों में विस्तार पाती आयी है. जब वह आत्मरक्षण करने गयी तभी संकुचित हुई है. जब-जब अवसर मिला तब-तब उसने अपनी प्रबल संग्राहक शक्ति का परिचय दिया है. उसने आनुवांशिक संस्कारों पर भार अवश्य दिया पर गुण का नियम स्वीकृत करने या संयोगों को अनुकूल बनाने में उसने कभी ढिलाई नहीं की. चातुर्वर्ण्य व्यवस्था का आयोजन सामाजिक तंत्र को व्यापक बनाने के लिए हुआ था, ताकि अनार्यों का समावेश भी किया जा सके.

नहुष ने युधिष्ठिर से पूछा था, ब्राह्मण किसे कहा जाए, तो युधिष्ठिर ने उत्तर दिया- जिसमें ये गुण हैं, वह ब्राह्मण है. यह गुण शूद्र में हों तो वह ब्राह्मण है और यदि ब्राह्मण में यह गुण न हो तो वह शूद्र है.

(कुलपति के. एम. मुनशी भारतीय विद्या भवन के संस्थापक थे)