फरवरी 2011

Feb 2011 Cover-fnlबहुचर्चित राडिया-कांड की एक सचाई यह भी है कि मीडिया की कथित मुख्यधारा ने शुरू में इसको काफी अनदेखा किया. फिर दो पत्रिकाओं ने इस मुद्दे को उछाला. इस बीच एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी हुई कि सोशल नेटवर्किंग, अर्थात ‘फेसबुक’, ‘ट्विटर’, ‘ब्लॉग’ आदि का दबाव लगातार बनता रहा. इस नये समाचार-विचार माध्यम ने मुख्यधारा के मीडिया को बाध्य कर दिया कि वह राडिया-कांड की उपेक्षा न कर सके. फलस्वरूप हमारे मीडिया का एक विवादास्पद चेहरा भी सामने आ पाया. यह बात अपने आप में महत्त्वपूर्ण है, लेकिन इसने ‘सोशल मीडिया’ के महत्त्व को भी रेखांकित किया है. बहुत थोड़े अर्से में यह सोशल नेटवर्किंग हमारी ज़िंदगी का हिस्सा बन गयी है. इंटरनेट ने यदि दुनिया को वैश्विक संदर्भ दिये तो सोशल नेटवर्किंग ने दुनिया को हमारे घर की चारदीवारी में ला दिया है.

 

शब्द-यात्रा

वजूदे  ज़न से है काइनात
आनंद गहलोत

पहली सीढ़ी

जीवन-दृष्टि
कुंवर नारायण

आवरण-कथा

दुनिया चारदीवारी में
सम्पादकीय
कहां पहुंचा रहे हैं अंतरंगता के नये पुल?
विजय कुमार
कितनी लम्बी हो सकती है
बस एक क्लिक की दूरी?
मधुसूदन आनंद
सोशल नेटवर्किंग साइट्स से जुड़ें, लेकिन सोच-समझकर
प्रकाश हिंदुस्तानी
खतरे आसमानी भी हैं और
रूहानी भी
संजय द्विवेदी
ई-मौन
जॉन नैश

मेरी पहली कहानी

यूकलिप्टस
गंगा प्रसाद विमल

आलेख

लेखन खुद को पहचानने की कोशिश है
उपेंद्रनाथ अश्क
फिसलन भरी ढलान के थोथे तर्क
गिरीश मिश्र
तीन रुपये साढ़े सात आने में ‘अंधायुग’
डॉ. धर्मवीर भारती
‘खामोश तुम्हें  देखती रहूंगी’
इमरोज़
जब आंसू सूख जाते हैं
दुर्गा भागवत
बिहार का राज्यपुष्प – कचनार
परशुराम शुक्ल
मानवीय एकता का ध्येय
आचार्य महाप्रज्ञ
…तो मेरे गीतों को सुनो
रश्मि शील
राहुलजी – अंतिम स्मृतियां
हिमांशु जोशी
वृक्ष इतने बूढ़े कैसे हो जाते हैं
डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन
हे ईश्वर
कार्तिका देवी राणे
किताबें

मुनशी सम्मान

सोनल पारिख

व्यंग्य

बुढ़ापे के सुख
गोपाल चतुर्वेदी

उपन्यास अंश

कंथा (नौवीं किस्त)
श्याम बिहारी श्यामल

कहानी

अस्तराग
कमल कपूर
सिगनल
सलाम बिन रजाक

कविताएं

मेरे गीत! निराश न होना
चंद्रसेन विराट
धन्यवाद बसंत
वेद राही
दो गीत
अश्वघोष