पंखुड़ी एक गुलाब की

♦   डॉ. बी.पी.पाल      

      दुनिया में गुलाब पहले आया, आदमी बाद में. इतिहास की परतों में दबे-छिपे गुलाब के जीवाश्म पुरातत्त्ववेत्ताओं ने खोज निकाले हैं और उनकी राय में गुलाब की उम्र कोई तीन करोड़ वर्ष बैठती है. तभी तो असंख्य प्राचीन-अर्वाचीन पौराणिक गाथाओं, कला-कृतियों, कविताओं और संगीत-रचनाओं में गुलाब की गंध गुंथी गयी है.

     कुछ शब्द होते हैं, जिनके साथ सौंदर्य, प्रसन्नता और सुख की अनुभूतियां ऐसी जुड़ जाती हैं कि बोलते-लिखते ही साकार हो जायें. ‘गुलाब’ ऐसा ही शब्द है. चाहे आप बागबानी के शौकीन हों या न हों, पर खिले फूल देखते ही आपकी तबियत कैसी बाग-बाग हो उठती है. और बताइये तो, फूलों में गुलाब से बढ़कर और है कौन?

     जैसा कि हेयन्स ने लिखा है- ‘गुलाब की खुशबू जब से आदमी की सांसों में पहुंची, इतनी गहरी पैठती चली गयी कि उसने कल्पना पर हावी होकर उसके विचारों में जड़ें जमा लीं.’

     जंगल में उगते गुलाब को हमारे वनवासी पूर्वजों में से किसी ने जब पहली बार देखा होगा, तो क्या पता इसकी मस्त सुगंध ने ही पहली कलाकृति, पहली कविता और पहली संगीत-रचना के बीज डाले हों! अनेक आदिम जनजातियों के सामाजिक उत्सवों में, शील्प, आभूषण, कढ़ाई के नमूनों और मिट्टी के बर्तनों पर अंकित बेलबूटों में गुलाब छाया रहा है.

     गुलाब को लेकर अनेक गाथाएं चली आ रही हैं. जहां जाता है कि उस अदन के बगीचे में, जहां वर्जित सेब उगा करता था, सफेद रंग का गुलाब भी था और हौवा ने जैसे ही उसे चूमा कि शर्म के मारे उसकी पंखुड़ियां लाल हो गयीं.

     एक और कहानी में गुलाब के साथ ढाई अक्षर का वह शब्द भी जोड़ दिया गया है, जो न होता तो यह दुनिया न होती. एक खूबसूरत यूनानी बाला रोडेंथ का उसके प्रेमियों ने पीछा किया. बेचारी भागती-भागती आर्टेमिस के मंदिर में जा छिपी, जहां पवित्रता की देवी ने उसे गुलाब में बदल दिया- ऐसा गुलाब, जिसमें रोडेंथ के कपोलों की वह सलज्ज लाली झलकती थी, जो प्रशंसकों की लगातार घूरती आंखों की वजह से पैदा हुई थी.

     यूनान और रोम की पौराणिक गाथाओं में गुलाब प्रेम और सौंदर्य का प्रतीक रहा है. बाटिचेली ने अपनी सुप्रसिद्ध कलाकृति ‘वीनस का जन्म’ में हल्के नीले सागर के वक्ष से उभरती हुई देवी वीनस के साथ गुलाब को भी अमर कर दिया है. गुलाब के अंग्रेज़ी नाम ‘Rose’ के अंतिम अक्षर ‘ई’ को आगे लगा दें, तो बन जाता है ‘Eros,’ जो कि प्रेम का यूनानी देवता है.

     कहा जाता है कि गुलाब की कली अपनी पंखुड़ियां अपने प्रेमी जेफायर (पछुआ हवा का देवता) के लिए खोलती है. एक और कथा यह है कि एडोनिस के साथ अभिसार का वादा निभाने के लिए दौड़ती हुई वीनस जब एक झाड़ी के पास से गुजरी, तो पांव में कांटा चुभ गया- खून की हर बूंद लाल गुलाब बन गयी.

     मिस्र की प्राचीन देवी आइसिस की पूजा में पवित्र गुलाब की फूलमालाएं चढ़ायी जाती थीं. इस देवी से सम्बंधित मज़ेदार किस्सा एपूलियस ने ‘द गोल्डन ऍस’ (सुनहरा गधा) में दिया है. इस कहानी का नायक ल्यूशियस अपने पापों के कारण आदमी से गधा बना दिया जाता है. काफी धक्के खाने के बाद जब बेचारा सचमुच बहुत पश्चात्ताप करता है, तो देवी आइसिस उसे सपने में दर्शन देती है और कहती है कि आगामी उत्सव के समय मेरी पूजा में चढ़ायी गयी फूलमालाओं में से एक गुलाब चबा जाना. ल्यूशियस ने वही किया और गधे से फिर आदमी बन गया.

     एक यूनानी गाथा के अनुसार गुलाब गोपनीयता का प्रतीक भी है. कथा यह है कि ईरास ने सृष्टि के प्रथम गुलाब की भेंट ‘मौन के देवता’ को देते हुए विनती की कि तुम मेरी मां के गुप्त रहस्य मत खोलना. कहते हैं, इसी कारण यूनान में यह परम्परा चली कि जिस कमरे में गुप्त मंत्रणा की जानी हो, उसमें दो कलियों के साथ पूरा खिला हुआ सफेद गुलाब रख दिया जाता. इस रिवाज़ पर से लातीनी का ‘सब-रोज़ा’ मुहावरा बना, जिसका अर्थ है- अत्यंत गुप्त रूप से.

     रोम का सम्राट नीरो भी उत्कट गुलाब-प्रेमी था और उसके महल में सारे फर्श पर गुलाब की पंखुड़ियां बिछी रहती थीं. जब क्लियोपाट्रा ने अपने महल में मार्क एंटनी का स्वागत किया, तो फर्श पर घुटनों तक गुलाब की पंखुड़ियां बिछायी गयी थीं.

     यों तो हिमालय में गुलाब की कई जंगली जातियां उगती हैं, परंतु भारत में गुलाब की बागबानी का शौक बहुत बाद में आकर पनपा. बंगाल के प्रसिद्ध गुलाब-विशेषज्ञ बी.एस.भट्टाचार्जी का कहना है कि प्राचीन संस्कृत साहित्य में गुलाब का उल्लेख ‘तरुणी-पुष्प,’ ‘अतिमंजुल’ और ‘सेमंतिका’ के नाम से हुआ है. मुगल सम्राट गुलाबों के बेहद शौकीन थे. नूरजहां को तो गुलाब के इत्र का आविष्कारक माना जाता है.

     शाइरों और कवियों ने गुलाब का खूब बखान किया है. पीटर कोट्स के अनुसार शेक्सपियर ने साठ से ज्यादा उपमाओं में गुलाब का उपयोग किया है और अधिकांश प्रसंगों में उसे पूर्णता का प्रतीक माना है. हेरिक, ली, हंट, ब्लेक, कीट्स और शेली ने भी गुलाब की गीत गाये हैं. फारसी और उर्दू के शाइरों ने गुलाब और बुलबुल को प्रतीक बनाकर प्यार और पीर की अमर कविताएं रची हैं. शेख सादी की कृति गुलिस्ता का मतलब है गुलाब का बाग.

     क्रीट के नासोस नामक स्थान में ईसा से सोलह सौ साल पहले निर्मित एक राजमहल (हाउस आफ फ्रेस्कोज) के एक भित्तिचित्र में गुलाब अंकित है. इस चित्र में बने गुलाब में छह पंखुड़ियां हैं, जब कि आम तौर पर आदिम गुलाब में पांच ही होती हैं, पर इसमें शक नहीं कि है तो यह गुलाब ही, क्योंकि साथ में पत्तियां भी बनी हैं. यूनानी और रोम की प्राचीन कलाकृतियों में भी गुलाब गमकता है, पर कई बार निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि चित्रित फूल गुलाब ही है.

     पुस्तक-चित्रण में पहली बार गुलाब का इस्तेमाल चौदहवीं सदी के एक महाकाव्य ‘रोमांत द ला रोज’ की पांडुलिपि में हुआ. तब से तस्वीरों और जेवरों की डिजाइनों में गुलाब-ही-गुलाब सजे हुए हैं. शायद गुलाब के चितेरों में प्येर जोजेफ रेवोंने लाजवाब है, जिसे महारानी जोजेफ ने फूलों की ही तस्वीरें बनाने का काम दिया था. इसी तरह फौतैं ला तूर भी गुलाब चित्रित करनेवाला महान कलाकार है. अल्फेड पार्संस की गुलाब-कृतियां तो मैंने स्वयं भी देखी और सराही हैं.

     मध्ययुग से ही राजकीय और सैनिक सज्जा में गुलाब का उपयोग होता रहा है. सम्राटों के मुकुटों से लेकर नेहरूजी की जाकिट तक को सौंदर्य का यह प्रतीक सुशोभित करता रहा है. इंग्लैंड का तो यह राष्ट्रीय पुष्प ही है. बाद में कुछ अमरीकी राज्यों ने भी इसे अपने राज्यचिह्न में अंकित किया. कई रेजिमेंटों ने भी इसे अपने प्रतीक के रूप में मान लिया.

     लंकाशायर फ्यूजिलियर्स में तो वार्षिक भोज के समय गुलाब खाना होता है. यह रिवाज कोई 200 वर्ष से चला आ रहा है. हुआ यह था कि इस रेजिमेंट के सिपाहियों ने मोर्चे पर जाने से पहले पास ही के एक बाग से गुलाब तोड़कर अपनी-अपनी वर्दी में लगा लिये थे. युद्ध में रेजिमेंट विजयी रही और गुलाब उसकी विजय का प्रतीक बन गया. अनेकों देशों के डाक-टिकटों में गुलाब खिले हैं.

     अब तो गुलाब की दुनिया में भी बड़ा फर्क आ गया है. कहां वह पांच पंखुड़ियों वाला सीधा-सादा-सा गुलाब और कहां आज की विवध रंगी, तुर्श, तुनुकमिजाज और तेज-तर्रार किस्में! इंग्लैंड की एक फर्म हर साल कलम लगाने के लिए 10 लाख गुलाब रोपती है.

     बहुत दिन तक भारत के बागों में विलायती गुलाब ऐंठ दिखाते रहे, मगर अब अपने ही देश में गुलाबों की नयी-नयी किस्में ईज़ाद करने के शौकीन बढ़ते जा रहे हैं और बहुत-सी देशी किस्में विलायती गुलाबों को शर्मिदा करती हैं. विलायत में ठंड के मारे गुलाब का बुरा हाल रहता है, जबकि अपने देश के उत्तरी मैदानों में तो नवम्बर से मार्च तक का मौसम गुलाब के लिए बहिश्त है.

     मार्च में वह-वह रंग फूलते हैं कि गुलिस्तां में बहार-ही-बहार आ जाती है. बोगन-वेलिया और दूसरे पुष्पवृक्ष इसी काल में  पुष्पित होते हैं. इन्हीं दिनों गूंजता है पक्षियों का कलगान और कोयल की मदभरी तान. पर जल्दी ही ‘दीरघ दाघ निदाघ’ वसंत के रुखसारों पर शोले बरसाने लगता है और गुलाबों के साथ हम भी अगले वसंत की प्रतीक्षा करने लगते हैं.

(मार्च 1971)

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