नीरव गीत

♦    पॉल गैलिको      

     कुरूप तन एवं उजले मन वाले कलाकार, अबोध ग्रामबाला और हिम-प्रदेश के पक्षी के सुकुमार सम्बंधों की काव्यमयी कथा, द्वितीय विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि पर.

     ग्रेट मार्श याना बड़ा दलदल एसेक्स के समुद्र-तट पर गांव चेमबरी और घोंघे पकड़ने वाले सैक्सन मछुओं के प्राचीन पुरवा विकेलड्राथ के बीच में पड़ता है. इंग्लैंड के आखिरी बचे-खुचे जंगली इलाकों में से यह एक है. घास-फूल से ढंका नीचा मैदान और आधी जलमग्न चरागाहें, जो विक्षुब्ध समुद्र के समीप जाकर खारी जमीन और कच्छों में बदल गयी हैं.

     ज्वार के पानी के नालों, मुहानों और छोटी-छोटी नदियों के कारण यह सारी गीली जमीन जगह-जगह से कटी हुई है और ज्वार-भाटे के समय सांस लेती हुई-सी प्रतीत होती है. यह बिलकुल निर्जन और बियाबान स्थान है, जो दलदल में रहने वाले तरह-तरह के पक्षियों के कूजन और क्रंदन के कारण और भी सुंदर बन गया है. इंसानों की यहां  बिलकुल बस्ती नहीं है, न कहीं इंसान दिखाई देते हैं. हां, उन इक्के-दुक्के चिड़ीमारों या स्थानीय घोंघा-मछुओं की बात छोड़ दीजिए.

     सलेटी, नीला और हल्का हरा यहां के रंग हैं. लम्बी सर्दियों में जब आसमान में बदली छायी होती है, समुद्र-तट और दलदल धुंधले रंगों से भर जाते हैं. परंतु कभी-कभी सूर्योदय और सूर्यास्त के समय आसमान और जमीन दोनों लाल और सुनहरी दीप्ति से सुलग भी उठते हैं.

     छोटी-सी नदी एल्डर की एक घुमावदार शाखा के साथ-साथ एक लम्बी प्राचीन समुद्री दीवार चली गयी है- चिकनी, मजबूत और साबुत. यह बढ़ते समुद्र से जमीन को बचाने के लिए बनाया गया बंद था. यह इंग्लिश चैनल से तीन मील दूर स्थित एक खारे दलदल में अंदर तक चली गयी है और वहां से फिर उत्तर को मुड़ जाती है. उस कोने पर यह टूट-फूट गयी है और उस दरार में से होकर समुद्र अंदर घुस आया है और जमीन, दीवार और बाकी जो कुछ भी वहां था, उस पर कब्जा जमा बैठा है.

     भाटे के समय एक उजड़े प्रकाश-स्तंभ के खंडहरों के काले और टूटे पत्थर और एक बल्ली दिखाई देते हैं. कभी यह प्रकाश-स्तंभ समुद्र के किनारे पर था और एसेक्स-तट पर जहाजों का मार्गदर्शन करता था. वक्त गुजरने के साथ जमीन और समुद्र आगे पीछे हो गये और इसकी उपयोगिता समाप्त हो गयी.

     इधर कुछ समय से यह फिर आबाद हो गया था. इसमें एक एकांत प्रेमी आकर रहने  लगा था. उसका शरीर अष्टावक्र जैसा था, मगर उसका हृदय वन्य और प़ीडित जीवों के प्रति प्रेम से सराबोर था. देखने में वह करूप था, परंतु वह अपार सौंदर्य की सृष्टि किया करता था. और यह किस्सा उसी के बारे में और एक बच्ची के बारे में सुनाया जाता है, जो उसके परिचय में आयी और जिसने उसकी भोंडी काया से परे, उसकी आत्मा को देखा-जाना.

     आसानी से सिलसिले में जुड़ जाने वाली कहानी नहीं है यह. इसे कई स्रोतों से और कई आदमियों से बीनकर जुटाया गया है. इसका कुछ हिस्सा ऐसे लोगों से छोटे-छोटे खंडों में प्राप्त हुआ है, जिन्होंने भयंकर और हिंसात्मक दृश्य देखे हैं. बात यह है कि समुद्र ने उस स्थल को हथिया लिया है और उस पर अपना तरंगमय कंबल फैला दिया है और वह विशाल सफेद पंछी, जिसके डैनों के छोर काले थे और जिसने सारी कथा आदि से अंत तक देखी थी, उत्तरी देशों के उसी अंधकार-भरे बर्फीले मौन में वापस लौट गया है, जहां से वह आया था.

     सन 1930 के वसंत में फिलिप रायडर एल्डर के मुहाने पर उस उजड़े प्रकाश-स्तंभ में आ बसा. उसने प्रकाश-स्तंभ और आस-पास की कई एकड़ दलदली खारी जमीन खरीद ली थी.

     सारे साल वह वहां अकेला ही रहता था और अपना काम किया करता था. वह पक्षियों और प्रकृति का चितेरा था और किन्हीं कारणों से समाज से विरक्त हो गया था. इनमें से कुछ कारण तो तब देखने को मिल जाते थे, जब वह पखवारे में एक बार रसद खरीदने चेमबरी गांव में जाता था, जहां लोग उसके तुड़े-मुड़े शरीर और गहरे लाल चेहरे को संदेह-भरी नज़रों से देखते थे. बात यह थी कि वह अपंग था, पतला-दुबला था और उसका हाथ कलाई के पास से यों मुड़ा हुआ, जैसे पक्षी का पंजा हो.

     जल्दी ही वे लोग उसकी छोटी, किंतु सशक्त अटपटी आकृति के अभ्यस्त हो गये और उन्होंने उसका नाम ‘प्रकाश-स्तंभ वाला’ अजीब चितेरा रख दिया था.

     शारीरिक विरूपता प्रायः मनुष्यों को मानव-द्वेषी बना देती है. रायडर द्वेष नहीं करता था, वह तो मनुष्य से, पशु-पक्षियों से और समूची प्रकृति से बहुत प्यार करता था. उसका हृदय करुणा और सद्भाव से भरा हुआ था. उसने अपने लूलेपन को जीत लिया था, मगर वह उस दुतकार को नहीं जीत पाया, जो उसे अपनी विरूपता के कारण झेलनी पड़ती थी. जिस चीज ने उसे बरबस एकांतवासी बना दिया था, वह यह थी कि उसे अपने उमड़ते हुए स्नेह-सौजन्य का कहीं से भी प्रतिदान नहीं मिला था. औरतों को उससे घिन-सी होती थी. पुरुष उससे स्नेह करने लगते , अगर वे उससे परिचित हो पाते. मगर इसका प्रयत्न किया जा रहा है, यही अनुभूति ही रायडर को चोट पहुंचाने लगती थी, और वह उस आदमी से बचने लगता था.

     जब वह ग्रेट मार्श में आया, सत्ताईस वर्ष का था. जब उसने निश्चय किया कि जिस दुनिया में मैं और सब आदमियों की तरह हिस्सा नहीं बंटा सकता, उससे अलग हो जाना ही ठीक है, तब तक वह काफी घूम चुका था और बहादुरी के साथ लड़ चुका था. कलाकार की समस्त संवेदनशीलता और स्त्राr-सदृश कोमलता के बावजूद वह पूरा मर्द था.

     इस एकांत वासस्थल में उसके साथ उसके पंछी ते, चित्र थे, किश्ती थी. सोलह फुट लंबी उसकी अपनी एक किश्ती थी, जिसे वह गजब की दक्षता से चलाता था. एकांत में, जहां कोई देखने वाला न हो, वह अपने तुड़े-मुड़े हाथ से आसानी से नाव खेता था और हवा जब शरारत पर उतर आती, तो गुब्बारे की तरह फूले हुए पाल को संभालने के लिए अपने मजबूत दांतों का भी उपयोग करता था.

     वह नालों और मुहानों में से नाव चलाता हुआ समुद्र में चला जाता और कई-कई दिन तक गायब रहता, और फोटो खिंचने या चित्र बनाने के लिए पक्षियों की नयी जाति की तलाश किया करता. और वह जाल से उन्हें पकड़ने में भी सिद्धहस्त हो गया था. पकड़े हुए पक्षियों  को लाकर वह अपने पालतू पक्षियों के साथ मिला देता, जिनके लिए उसने अपनी चित्रशाला के पास एक बाड़ा बना दिया था, और यह बाड़ा अब एक पक्षी शरणस्थल का केंद्र-बिंदु बन गया था.

     वह कभी किसी पक्षी पर गोली नहीं चलाता था और चिड़ीमारों को अपनी जायदाद के पास फटकने तक नहीं देता था. वह समस्त जंगली जीवों का मित्र था और जंगली जीव उसकी मैत्री का प्रतिदान देते थे.

     उसके बाड़े में वे बत्तखें थीं, जो प्रतिवर्ष अक्टूबर में आइसलैंड और  स्पिट्सबर्गन के तटों से डैने हिलाती हुई अपनी विशाल टोलियों से आसमान को अंधकारमय  बनाती हुई और अपने पंखों की सनसनाहट से हवा को भरती हुई उड़ती आती थीं- भूरे शरीर, गुलाबी पैर और सफेद सीनेवाली बार्नेकल बत्तखें, जिनकी गर्दनें काली होतीं और अनेक जातियों की जंगली बत्तखें भी.

     कुछ के डैने कतर दिये जाते, ताकि वे हर साल सर्दियों के आरम्भ में आने वाले जंगली पक्षियों के लिए इस बात का संकेत हों कि यहां भोजन और शरण-स्थल उपलब्ध है.

     कई सौ पक्षी आते और अक्टूबर से लेकर वसंत के आरम्भ तक सारी सर्दियां उसके पास बिताते, और फिर उत्तर की ओर प्रवास कर जाते, हिमरेखा के एकदम पास स्थित अपनी प्रसव-भूमियों में पहुंचने के लिए.

     रायडर इस खयाल से बड़ा संतोष पाता था कि जब तूफान चल रहे हों, भयंकर ठंड पड़ रही हो और भोजन दुर्लभ हो, या जब शिकारियों की बंदूकों के धड़ाके हो रहे हों, तब भी उसके पक्षियों को कोई खतरा नहीं है. और उसने इन सैकड़ों सुंदर जंगली जीवों को अपने शरणालय और अपनी बाहों के संरक्षण में समेट लिया था, और वे उसे पहचानते थे, उसका विश्वास करते थे.

     वसंत में वे उत्तर की पुकार पर उड़ जाते, मगर हिम-ऋतु में आकाश को अपने क्रेंकार से भरते हुए लौट आते, पुराने प्रकाश-स्तंभ का चक्कर लगाते और जमीन पर उतरकर फिर से उसके अतिथि बन जाते. पिछले साल के परिचय के कारण वह भी इन पक्षियों को आसानी से पहचान जाता.

     और इससे रायडर को बड़ी खुशी होती, क्योंकि उसे पता था कि इन पक्षियों की चेतना में कहीं उसके अस्तित्व और उसके शरणस्थल के ज्ञान का अंकुर छिपा हुआ है, यह ज्ञान उनका अंग बन गया है और धूमिल आकाश और ठंडी हवाओं के आगमन के साथ वह बिना भूलचूक उन्हें वापस उसके पास भेज देगा.

     इसे छोड़कर उसके हृदय और आत्मा का दूसरा प्रिय कार्य था, उस प्रदेश और उसके जीवों के चित्र अंकित करना. रायडर के रचे ज्यादा चित्र अब शेष नहीं हैं. उसने उन्हें बड़े परिग्रह-भाव के साथ जमाकर रखा था, सैकड़ों चित्र प्रकाश-स्तंभ में और उसके ऊपर के कोठारों में एक पर एक चिन रख थे. वह उनसे संतुष्ट नहीं था, क्योंकि कलाकार के रूप में वह तनिक भी समझौता करने को तैयार नहीं था.

     परंतु जो चंद चित्र बाजार तक पहुंच सके, ‘मास्टरपीस’ है. दलदल में प्रतिबिंबित प्रकाश और रंग, उड़ान की अनुभूति, नरकुलों को झुकाती हुई प्रातःकालीन पवन में सीना तानकर उड़ते पक्षियों की अदा- यह सब उनमें भरा हुआ है. वह चित्र खींचता था एकांत का और नमक से लदी ठंड का, दलदलों की शाश्वतता का, जंगली जीवों का, प्रातःकालीन उड़ानों का, घबराहट में उड़ान भरते पक्षियों का और रात को चांद में छिपती हुई पक्षियों की उड़ती छायाओं का.

     रायडर के ग्रेट मार्श आने के बाद एक बार नवम्बर की एक दोपहर को एक बच्ची समुद्री दीवार की राह प्रकाश-स्तंभ पर आयी. उसकी बाहों में कोई चीज थी.

     वह बारह वर्ष से ज्यादा बड़ी नहीं थी, पतली, मैली-कुचैली, घबरायी हुई और चिड़िया की तरह सहमी हुई, मगर धूल-मिट्टी के नीचे विलक्षण रूप से सुंदर, जैसे कि दलदल की परी हो. वह विशुद्ध सैक्सन नस्ल की थी- बड़ा अस्थि-पंजर, उज्जवल रंग, बड़ा सिर, जिसके अनुरूप अभी शेष शरीर को बढ़ना था, और गहरी कासनी रंग की आंखें.

     उसे उस कुरूप आदमी से बहुत डर लग रहा था, जिससे वह मिलने आयी थी. बात यह थी कि रायडर के बारे में किस्से फैलाने लगे थे और स्थानीय चिड़ीमार उससे चिढ़ते कि वह उनके खेल में अड़चन डाल रहा है.

     मगर जिसको वह बाहों में भरकर लायी थी, उसकी आवश्यकता उसके भय से भी बड़ी थी. बात यह थी कि दलदल में ही कभी कहीं कान में पड़ी यह बात उसके बाल-हृदय में बसी हुई थी कि प्रकाश-स्तंभ में रहने वाले राक्षस को कोई जादू मालूम है, जिससे वह घायल जीवों को स्वस्थ कर सकता है.

     उसने पहले कभी रायडर को नहीं देखा था और उसकी पदचाप सुनकर चित्रशाला के द्वार पर प्रकट हुई भूत-सी आकृति को देखकर उसे मारे भय के भाग जाने की इच्छा हुई थी, परंतु वह उसे घूरती खड़ी रही, जैसे घबराया हुआ कोई दलदली पक्षी अगले क्षण उड़ जाने को तैयार हो.

     मगर रायडर जब बोलने लगा, उसकी आवाज गहरी और करुणापूर्ण थी.

     ‘क्या बात है बच्ची?’

     वह खड़ी रही, फिर सहमते-सहमते आगे बढ़ी. उसने बांहों में जो चीज थाम रखी थी, वह एक बड़ा-साद सफेद पक्षी था. और वह बिलकुल निश्चल था. उसकी सफेदी पर लहू के धब्बे लगे हुए थे, और लड़की के चोगे पर भी, जहां उसने पक्षी को थाम रखा था.

     लड़की ने पक्षी को उसकी बांहों में थमा दिया. ‘यह मुझे पड़ा हुआ मिला जी. इसे चोट लगी है. अभी जिंदा है न जी?’

     ‘हां-हां, मेरा तो यही खयाल है. अंदर आओ, बच्ची अंदर आओ.’

     पक्षी को उठाये हुए रायडर भीतर गया और उसे मेज पर रख दिया, जहां वह बड़ी निर्बलता के साथ हिला-डुला. बच्ची की उत्सुकता ने उसके भय को दबा दिया. लड़की पीछे-पीछे चलकर कमरे में पहुंची. कमरा कोयले की आग के कारण सुखद रूप से गर्म था, दीवारों पर मढ़े हुए बहुत-सारे चित्रों के कारण चमक रहा था और अजीब-सी, अच्छी-सी महक से भरा हुआ था.

     पक्षी फड़फड़ाया. अपने साबुत हाथ से रायडर ने उसके एक विशाल, सफेद डैने को फैलाया. उसका छोर काला था और बड़ा खूबसूरत लगता था.

     रायडर आश्चर्य से देखता रहा और बोला- ‘बच्ची! तुम्हें यह कहां से मिला?’

     ‘दलदल में जी. वहां चिड़ीमार आये थे. यह क्या है जी?’

     ‘यह कनाडा की हिम-बत्तख है. मगर यह यहां कैसे आ पहुंची?’

     इस नाम का बच्ची के लिए जैसे कोई मतलब नहीं था. उसकी गहरी कासनी आंखें, जो चेहरे पर जमी गर्द में से चमक रही थीं, चिंता से भरपूर थीं और घायल पक्षी पर टिकी हुई थीं.

     वह बोली- ‘क्या आप इसे चंगा कर देंगे जी?’

     ‘हां-हां, रायडर बोला- ‘हम कोशिश करेंगे. आओ, तुम्हें मदद करनी होगी.’

     एक अलमारी पर कैंची, पट्टी और खपच्चियां रखी हुई थीं. वह गजब का दक्ष था पंजेनुमा हाथ से काम करने में भी अत्यंत कुशल.

     उसने कहा- ‘ओह, बेचारी को गोली मारी गयी है. इसका पैर टूट गया है और डैने का छोर भी. देखो, हम इसके बड़े पर काट देंगे, ताकि पट्टी बांधी जा सके. मगर वसंत-ऋतु में पर फिर निकल आयेंगे और यह उड़ने लायक हो जायेगी. हम डैने को शरीर के साथ सटाकर पट्टी बांध देंगे, जिससे यह जुड़ जाये. फिर बेचारी टांग के लिए खपच्ची तैयार करेंगे.’

     बच्ची भय को भूलकर, मुग्ध-सी होकर उसे काम करते देख रही थी. मुग्ध वह इस लिए भी थी कि पक्षी की टूटी टांग पर खपच्ची बांधते समय रायडर उसे बड़ी गजब की कहानी सुनाता जा रहा था.

     बत्तख छोटी उम्र की थी, एक वर्ष से ज्यादा की नहीं. वह समुद्र पार बहुत दूर के एक देश में जनमी थी. वह देश भी इंग्लैंड के ही हाथ में है. बर्फ और ठंडी हवा से बचने के लिए दक्षिण की ओर उड़ते हुए यह बहुत बड़े तूफान में फंस गयी. तूफान ने इसे पकड़ लिया और उधर-उधर-उठाना-पटकना शुरू किया. बड़ा भयंकर तूफान था- इसके विशाल डैनों से भी ताकतवर, सभी चीजों से ज्यादा ताकतवर. कई दिन, कई रात तक उसने इसे अपनी पकड़ में रखा और यह बेचारी इसके सिवा कुछ नहीं कर सकती थी कि उसके साथ-साथ उड़ती जाये. अंत में जब तूफान खत्म हो गया, इसकी सहज-बुद्धि इसे फिर से दक्षिण की ओर ले चली. अब यह और ही किसी देश में थी और इसके चारों ओर अजीबो-गरीब पक्षी थे, जिन्हें इसने पहले कभी नहीं देखा था. आखिरकार, इस कठिन परीक्षा से थकीहारी यह भला सा दिखने वाले हरे-भरे दलदल में उतरी ही थी कि शिकारी की गोली आकर इसे लगी.

     ‘राह भूली राजकुमारी का कैसा बुरा स्वागत!’ रायडर ने किस्सा खत्म करते हुए कहा- ‘हम इसे राह भूली राजकुमारी कहा करेंगे.’ और कुछ दिनों में यह काफी अच्छी हो जायेगी. देखो तो,’ उसने जेब में हाथ डाला और मुट्ठी-भर अनाज निकाला. हिम बत्तख ने अपनी गोल-गोल पीली आंखें खोलीं और उन्हें चुगना शुरू किया.

     बालिका आनंद से हंस उठी और फीर अचानक ही भय से उसकी सांस थम गयी, जैसे वह वहां पर है, इसका उसे अचानक ही पूरा भान हुआ हो, और बिना एक भी शब्द बोले वह मुड़ी और दरवाजे में से बाहर आ गयी.

     ‘ठहरो, ठहरो तो!’ रायडर चिल्लाया, और द्वार तक गया और वहीं खड़ा रहा. लड़की समुद्री दीवार पर भाग रही थी. मगर उसकी आवाज़ पर वह रुकी और उसने मुड़कर पीछे देखा.

     ‘तुम्हारा नाम क्या है, बच्ची?’

     ‘फ्रिथ.’

     ‘अच्छा! मेरा ख्याल है ‘फ्रिथा’ होगा.’ तुम रहती कहां हो?

     ‘विकेलड्राथ में मछुओं के साथ.’ उसने गांव का नाम ठेठ सैक्सन लहजे में बोला था.

     ‘क्या तुम कल या परसों यह देखने इधर नहीं आओगी कि राजकुमारी की हालत कैसी है?’

     वह रुकी. भय से उड़ान भरने से पहले क्षणार्ध को निश्चल खड़े जंगली जल-पंखियों की याद हो आयी रायडर को उसे देखकर. साथ ही उसकी पतली आव़ाज़ उसके कानों में पड़ी- ‘हां.’

     और फिर लड़की भाग गयी, उसके सुनहरे बाल उसके पीछे झंडे की तरह लहरा रहे थे.

     हिम-बत्तख बड़ी तेज़ी से स्वस्थ होने लगी और सर्दियों के मध्य तक वह बाड़े में लंगड़ाकर चलने भी लग गयी, गुलाबी पैरों वाली जंगली बत्तखों के साथ. वह बार्निकल बत्तखों के बजाय इनके साथ रहना ज्यादा पसंद करती थी. और उसने रायडर की आवाज पर दाना चुगने के लिए आना भी सीख लिया था.

     और वह बच्ची फ्रिथा या फ्रिथ, अब अक्सर ही आ जाया करती थी. वह चकित और मुग्ध थी इस अजीब, सफेद राजकुमारी पर, जो समुद्र पार के दूर देश से आयी थी, जहां की मिट्टी गुलाबी थी. यह बात कि वहां की जमीन गुलाबी है, उसने रायडर के दिखाये नक्शे से जानी थी. नक्शे पर उन्होंने इसी पक्षी के कनाडा से एसेक्स के गेट मार्श तक आने का तूफानी रास्ता भी उंगली से खिंचा था.

     फिर,सर्दी भर प्रकाश-स्तंभ में खा-पीकर मुटिया गयी, गुलाबी पैरों वाली बत्तखों की एक टोली को अपने प्रजनन-क्षेत्रों की जोरदार आवाज सुनाई दी. वे अलस-भाव से उड़ने लगी. और आकाश में अधिकाधिक चौड़े वर्तुल बनाती हुई ऊंचे-ही-ऊंचे चढ़ती चली गयीं. हिम-बत्तख भी उन्हीं के संग थी, उसकी सफेद काया और काले छोर वाले डैने वसंत की धूप में चमक रहे थे. इत्तिफाक से उस समय फ्रिथ प्रकाश-स्तंभ पर ही थी. उसकी चीख पर रायडर चित्रशाला से भागा-भागा वहां आया.

     ‘देखो-देखो!… राजकुमारी! क्या वह भी चली जा रही है?’

     रायडर ने आसमान में आंखे गड़ा दीं और ऊंचे चढ़ते हुए छोटे-छोटे धब्बों को देखा! ‘हां,’ वह सहज ही फ्रिथ के से लहजे में बोल रहा था- ‘राजकुमारी अपने घर जा रही है. सुनो, वह हमें अलविदा कह रही है.’

     मेघ रहित आकाश से गुलाबी पैरों वाली बत्तखों की करुण ध्वनि आ रही थी और उनसे भी ऊपर हिम-बत्तख की ऊंची आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी. धब्बे उत्तर की ओर मुड़ चले, और अंग्रेज़ी के वी अक्षर (V) की आकृति में उड़ते हुए अदृश्य हो गये.

     हिम-बत्तख की विदाई के साथ फ्रिथ का प्रकाश-स्तंभ पर आना भी बंद हो गया. रायडर ने एकाकीपन का अर्थ फिर नये सिरे से सीखा.

     उस साल गर्मियों में उसने अपनी स्मृति के आधार पर एक चित्र बनाया- पतली-दुबली, धूल से सनी एक लड़की, जिसके सुनहरे बाल नवम्बर की तूफानी हवा में अस्तव्यस्त उड़ रहे हैं और जिसने अपनी बांहों में एक घायल सफेद पक्षी को उठा रखा है.

     अक्टूबर के मध्य में चमत्कार हुआ. रायडर बाड़े में खड़ा अपने पक्षियों को चुग्गा खिला रहा था. धूमिल हवा उत्तर से पूर्व की ओर बह रही थी और चढ़ते ज्वार में जमीन उसांसे ले रही थी. हवा और समुद्र की ध्वनियों के ऊपर उसने एक स्पष्ट और ऊंचा स्वर सुना. वह नजरें ऊंची करके संध्या-कालीन आकाश में ताकने लगा. उसे पहले एक छोटा-सा धब्बा दिखाई दिया, फिर सफेद-काले पंखों वाला एक सपना प्रकाश-स्तंभ के चारों ओर एक बार मंडराया और यथार्थ बनकर बाड़े में उतर आया और दाना मांगने उसकी ओर इस तरह चला आया, जैसे कि कभी यहां से गया ही नहीं था. यह हिम-बत्तख ही थी. इसमें संदेह की तनिक भी गुंजाइश नहीं थी. रायडर की आंखों में आनंद के आंसू उमड़ पड़े. कहां चली गयी थी? यह क्या सचमुच अपने घर कनाडा चली गयी थी? नहीं, उसने गुलाबी पैरों वाली बत्तखों के संग ग्रीनलैंड या स्पिट्सबर्गन में गर्मियां गुजारी होंगी. उसे यह स्थान याद रहा और यहां वह लौट आयी.

     अगली बार जब रायडर रसद लेने चेमबरी गया, पोस्ट मास्टरनी के पास यह संदेश छोड़ आया, जिस पर ज़रूर वह चकित हुई होगी. उसने कहा था- ‘विकेलड्राथ के मछुओं के साथ रहने वाली फ्रिथ से कहना कि ‘राहभूली राजकुमारी’ लौट आयी है.’

     तीन दिन बाद फ्रिथ- पहले से लंबी, बाल अब भी मैले और बिखरे हुए- शरमाती, सकुचाती हुई सी प्रकाश-स्तंभ पर हाजिर हो गयी ‘राहभूली राजकुमारी’ से मिलने.

     समय बीत चला. उसका गुजरना ग्रेट मार्श में ज्वार की ऊंचाई से, मौसम की मंद गति से पक्षियों की उड़ान से, पहचाना जाता था, और रायडर उसे मापता था हिम-बत्तख के आगमन और प्रस्थान से.

     बाहर दुनिया उफन रही थी, गड़गड़ा रही थी और शीघ्र ही एक विस्फोट होने वाला था, दुनिया विनाश के कगार पर पहुंच जाने वाली थी. लेकिन अभी रायडर पर उसकी छाया नहीं पड़ी थी, और न फ्रिथ पर. उन्होंने एक लय बांध ली थी, हालांकि बच्ची अब बड़ी होती जा रही थी. जब हिम-बत्तख प्रकाश-स्तंभ पर होती, तब फ्रिथ भी आया करती उसे देखने, और रायडर से बहुत-सी बातें सुनने-सीखने. वे रायडर की किश्ती में सैर करते. लगातार बढ़ते जा रहे पक्षी उपनिवेश के लिए वे मुर्गाबियां पकड़ते और उनके लिए नये दडबे और बाड़े बनाते. रायडर से उसने दलदल पर उड़ने वाले सभी पक्षियों की बातें जानीं. कभी-कभी वह रायडर के लिए खाना पका देती और उसने रंग मिश्रित करना भी सीख लिया.

     लेकिन जब गर्मियों में हिम-बत्तख अपने घर लौट जाती, तो जैसे उन दिनों के बीच कोई दीवार खड़ी हो जाती और वह प्रकाश-स्तंभ पर आना बंद कर देती. एक साल हिम-बत्तख नहीं लौटी. रायडर का दिल टूट गया हो. उसे ऐसा लगा, जैसे सब कुछ समाप्त हो गया हो. सारी सर्दियों और अगली गर्मियों में वह आवेशपूर्वक चित्र बनाने में डूबा रहा और एक बार भी उसने बच्ची को नहीं देखा. लेकिन शरद-ऋतु में आकाश में एक बार फिर वही परिचित स्वर गूंज उठा और वह काठी पर पहुंच चुका था, आसमान से ठीक उसी तरह रहस्यमय ढंग से उतर आया, जैसे कि वह एक दिन रवाना हुआ था. आनंद से भरा रायडर नाव में बैठकर चेमबरी गया और पोस्टमास्टरनी के पास संदेश छोड़ आया.

     अजीब बात थी. संदेश देने के बाद पूरा एक महीना बीत गया, तब कहीं फ्रिथ प्रकाश-स्तंभ पर आयी. रायडर चौंक उठा और समझ गया कि अब वह बच्ची नहीं रह गयी है.

     जिस साल हिम-बत्तख लौटी नहीं थी, उसके बाद से उसकी गैरहाजिरी की अवधि छोटी-ही-छोटी होती चली गयी. वह इतनी पालतू हो गयी थी कि रायडर के पीछे-पीछे चला करती और जब वह चित्र बना रहा होता, तो स्टूडियो में भी चली आती.

     सन 1940 के वसंत में पक्षी जरा जल्दी ही ग्रेट मार्श से कूच कर गये. दुनिया आग में सुलग रही थी. बमबार विमानों की सन्नाहट और जमीन पर गिरते बमों के धड़ाकों से पक्षी डर गये थे. मई की पहली तारीख को वे समुद्री दीवार पर कंधे-से कंधा सटाये खड़े थे और गुलाबी पैरों वाली बत्तखों और बार्नेकल बत्तखों की आखिरी टोली को शरण-स्थल से उड़ान भरते देख रहे थे. फ्रिथ लम्बी, छहरी, हवा जैसी उन्मुक्त और निहायत खूबसूरत थी, और रायडर गहरा सुर्ख, विरूप, अपने भारी-भरकम दढ़ियल  सिर को आसमान में ऊंचा उठाये बत्तखों की पांतों का पीछा करता हुआ.

     ‘फिलिप, देखो!’ फ्रिथ बोल उठी.

     रायडर ने उसकी दृष्टि का अनुसरण किया. अब हिम-बत्तख ने उड़ान भरी थी. उसके विशाल डैने फैले हुए थे, मगर वह नीचे उड़ रही थी और एक बार तो उनके इतने निकट से गुजरी कि क्षण-भर को उसके काले छोर वाले डैने उन्हें सहलाते हुए-से महसूस हुए उन्हें उसकी तेज उड़ान की हवा का स्पर्श हुआ. एक बार, दो बार, उसने प्रकाश-स्तंभ का चक्कर काटा, और फिर कटे डैने वाली बत्तखों के बीच बाड़े में उतर गयी और दाना चुगने लगी.

     ‘वह जा नहीं रही है,’ फ्रिथ बोली. उसकी आवाज़ में विस्मय-भर था, जैसे निकट से उड़ते हुए पक्षी ने उस पर कोई जादू फेर दिया हो. ‘राजकुमारी अब यहीं रहेगी.’

     ‘हां,’ रायडर बोला, और उसकी भी आवड़ज में कंपकंपी थी- ‘वह यहीं रहेगी. अब कभी भी यहां से जायेगी नहीं. राहभूली राजकुमारी अब’ ‘राहभूली’ नहीं रह गयी है. यही अब उसका घर है-  अपने आप पसंद किया हुआ घर.’

     पक्षी ने फ्रिथ पर जो जादू फेरा था, वह एकाएक टूट गया. और फ्रिथ को सहसा भान हुआ कि वह भयभीत है और जो चीजें उसे भयभीत कर रही थीं, वे रायडर की आंखों में थीं- कामना, एकाकीपन, और उनके बीच की वे सब गहरी, उबलती, अन-बोली बातें.

     रायडर के आखिरी शब्द फ्रिथ के मस्तिष्क में अपने आप गूंज रहे थे, जैसे उसने फिर से उन्हें कहा हो- ‘यही अब उसका घर है, अपने आप पसंद किया हुआ.’ फ्रिथ के सहज-बोध के कोमल तंतुओं ने रायडर को टटोला और उन बातों का संदेश उस तक पहुंचा दिया, जिन्हें अपनी विरूपता के अहसास के कारण ही वह कह नहीं पाता था. रायडर की आवाज से फ्रिथ को अवश्य तसल्ली मिलती, मगर रायडर की चुप्पी और उनके बीच की अनबोली चीजों की शक्ति ने उसके भय को बढ़ा दिया था. उसके भीतर की नारी उससे कह रही थी कि यहां से भाग चलो, उसके सामने ऐसी कोई चीज थी, जिसे वह अभी समझने में असमर्थ थी.

     फ्रिथ ने कहा- ‘मुझे…मुझे जाना है. नमस्ते! मुझे खुशी है, राजकुमारी अब यहीं रहेगी. अब तुम उतने अकेले नहीं रह जाओगे.’

     वह मुड़ी और तेजी से चल पड़ी, और रायडर का गहरी उदासी के साथ बोला हुआ ‘अलविदा, फ्रिथ’ घास की सरसराहट के ऊपर से गुजरकर उसके कानों में इस तरह पहुंचा, जैसे उन शब्दों का भूत हो. काफी दूर जा चुकने के बाद उसने पीछे मुड़कर देखा. रायडर अभी भी समुद्री दीवार पर खड़ा था, आकाश की यवनिका पर एक काला धब्बा-सा.

     फ्रिथ का भय अब शांत हो चुका था. भय की जगह कोई और चीज उभर आयी थी- कुछ गंवा बैठने की अनुभूति, जिसने उसे क्षण-भर के लिए स्थिर कर दिया, इतनी पैनी थी यह भावना. फिर, पहले की अपेक्षा वह धीरे-धीरे चलने लगी, आसमान में उंगली की तरह उठे हुए प्रकाश-स्तंभ और उसके नीचे खड़े अदमी से दूर, और दूर.  

     फ्रिथ जब प्रकाश-स्तंभ पर वापस आयी, तीन सप्ताह से ज्यादा बीत चुके थे. मई समाप्त हो चली थी और दिन भी ढल गया था लम्बी सुनहरी गोधूलि वेला में, जो पूर्वी आकाश में उग आये चंद्रमा की रजतधारा के लिए अपना आसन काली करने लगी थी.

     प्रकाश-स्तंभ की ओर कदम बढ़ाते हुए वह सोच रही थी कि उसे पता लगाना है कि क्या हिम-बत्तख सचमुच वहीं रह गयी, जैसे कि रायडर ने कहा था. हो सकता है, अंत में वह उड़ ही गयी हो. परंतु समुद्री दीवार पर उसके कदम दृढ़ता से पड़ रहे थे और कभी-कभी अनजाने में ही वह अपनी चाल तेज कर देती थी.

     फ्रिथ को रायडर की लालटेन की पीली रोशनी घाट के पास दिखाई दी और वहीं रायडर भी मिला. उसकी पाल वाली किश्ती चढ़ते ज्वार के पानी पर आहिस्ते-आहिस्ते डोल रही थी और वह उसमें रसद चढ़ा रहा था- पानी, भोजन, ब्रांडी की बोतलें, दूसरे उपकरण और एक अतिरिक्त पाल. जब फ्रिथ के आने की आहट पाकर वह पीछे की ओर मुड़ा, तो फ्रिथ ने देखा कि वह तो एकदम पीला पड़ गया है, मगर उसकी सदा शांत और निश्चल रहने वाली गहरी काली आंखें औत्सुक्य से चमक रही हैं और परिश्रम के कारण वह तेजी से सांस ले रहा है.

     अकस्मात फ्रिथ संत्रस्त हो उठी. हिम-बत्तख उसके चित्त से गायब हो गयी. ‘फिलिप, तुम चले जा रहे हो क्या?’

     रायडर काम करते-करते रुका और उसका स्वागत किया. उसके मुखड़े पर ऐसा कुछ था- कोई चमक, कोई भाव-जो फ्रिथ ने पहले कभी नहीं देखा था.

     ‘फ्रिथ, मुझे खुशि है कि तुम आ गयीं. हां, मुझे जाना होगा. छोटी-सी यात्रा है. मैं  फिर लौट आऊंगा.’ सदा मृदु रहनेवाली उसकी आवाज़ भर्रायी हुई थी, भीतर दबाकर रखी हुई चीजों के कारण.

     फ्रिथ बोली- ‘कहां जाना है तुम्हें?’

     अब रायडर के मुंह से शब्द लड़खड़ाते हुए निकले. उसे डन्कर्क जाना है. इंग्लिश चैनल के पार, सौ मील दूर. अंग्रेज़ी सेना वहां फंस गयी है, पता नहीं कब जर्मन आकर उसका खात्मा कर दें. बंदरगाह में आग लग गयी है, हालत एकदम भयंकर है. जब रायडर रसद आदि लेने गांव गया तो उसने यह सब सुना. सरकार की अपील पर चेमबरी से लोग किश्तियां, डोंगियां, मोटरबोट और जो भी तैरने वाली चीजें हाथ लगीं, उन्हें लेकर चैनल के पार जा रहे हैं, सैनिकों को तट से उठाकर पानी में खड़े जल-पोतों और युद्धपोतों तक पहुंचाने के लिए. ये जलपोत जर्मनों की गोलाबारी के कारण तट तक नहीं पहुंच पा रहे हैं.

     फ्रिथ ने सब कुछ सुना, उसे लगा कि जैसे उसका दिल अंदर-ही-अंदर मरता जा रहा है. रायडर कहे जा रहा था कि वह अपनी छोटी-सी किश्ती में चैनल पार कर सकेगा. किश्ती में एक समय छः आदमी बैठ सकते हैं, सटकर बैंठें तो सात भी. तट से जलपोतों तक कई फेरे लगा सकेगा.

     लड़की कच्ची उम्र की थी, निपट देहाती और अभिव्यक्तिहीन. उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि युद्ध क्या होता है, फ्रांस में क्या हुआ था, या फंसे हुए सैनिकों का क्या अभिप्राय होता है, मगर उसके शरीर का लहू कह रहा था, इसमें खतरा है.

     ‘फिलिप, तो क्या तुम्हें जाना ही होगा? फिर तुम लौट नहीं पाओगे. इसकी क्या ज़रूरत है?’

     अब रायडर ने समझाना शूरू किया, जैसे उसके दिल का ज्वर उतर गया था, उसने उसकी समझ में आ सके, ऐसे शब्दों में सारी बात समझायी.

     वह बोली- ‘सैनिक समुद्र के किनारे घिर गये हैं फ्रिथ, शिकार किये जा रहे पक्षियों की तरह, उन घायल पक्षियों की तरह, जिन्हें हम उठाकर शरण-स्थल में लाते थे. उनके ऊपर से फैलाद के उकाब, चील और शिकरे उड़ रहे हैं और इन फौलादी शिकारी से बचने के लिए वहां कोई आश्रय-स्थल नहीं है. कई बरस पहले तुम जो ‘राहभूली राजकुमारी’ ढूंढ़कर मेरे पास लायी थीं, जिसका हम दोनों ने इलाज किया था, उसी की तरह ये लोग तूफान में फंसे हुए और परेशान है. उन्हें मदद की ज़रूरत है, प्यारी, ठीक उसी तरह जैसे हमारे जंगली जीवों को मदद की ज़रूरत रही है. इसलिए मुझे जाना ही होगा. यह ऐसा काम है, जो मैं कर सकता हूं. हां, कर सकता हूं. एक बार, कम-से-कम एक बार, मैं मर्द बन सकता हूं, अपना हिस्सा अदा कर सकता हूं.’

     फ्रिथ फटी आंखों से रायडर को देख रही थी. वह कितना बदल गया था! पहली ही बार उसने देखा कि वह बदसूरत, अटपटा या विरूप नहीं है, बल्कि बहुत सुंदर है. उसकी आत्मा में उथल-पुथल मची हुई थी. वह ये बातें कहना चाहती थी, मगर कैसे कहा जाये, नहीं जानती थी.

     ‘मैं भी तुम्हारे साथ आऊंगी, फिलिप!’

     रायडर ने ना में सिर हिलाया. ‘तुम किश्ती में होगी, तो एक सैनिक को तट पर ही छोड़ आना पड़ेगा, फिर दूसरे को, फिर तीसरे को… मुझे अकेला ही जाना होगा.’

     उसने रबर का कोट पहना और रबर के बूट और किश्ती में सवार हो गया. उसने हाथ हिलाया और चिल्लाकर कहा- ‘अलविदा! मेरे लौटने तक पक्षियों की देखभाल करती रहोगी, न फ्रिथ?’

     फ्रिथ का भी हाथ उठा विदा देने के लिए, मगर आधा ही उठा.‘भगवान तुम्हारी रक्षा करें,’ वह ठेठ सैक्सन लहजे में बोली- ‘मैं पक्षियों की देखभाल करूंगी. भगवान भला करे, फिलिप!’

     रात हो गयी थी. चांद की एक फांक, तारे और उत्तरी आभा आकाश में रोशनी छिड़क रही थी. फ्रिथ समुद्री दीवार पर खड़ी रही और ज्वार में चढ़े हुए मुहाने में किश्ती को परे खिसकते देखती रही. अकस्मात उसके पीछे अंधकार में से पंखों की फड़फड़ाहट सुनाई दी, कोई चीज उसके पास से हवा में उड़ गयी. उस रोशनी में उसने हिम-बत्तख के सफेद डैनों,काले छोरों और आगे को निकले हुए सिर को देखा.

     सफेद पाल और सफेद पक्षी उसे देर तक दिखाई देते रहे.

     ‘उनकी रक्षा करना!… उनकी रक्षा करना!’ फ्रिथ बुदबुदायी. अंत में जब वे दोनों आंखों से ओझल हो गये, तो वह मुड़ी और धीरे-धीरे, सिर झुकायें खाली प्रकाश-स्तंभ की ओर लौट चली.

     अब आगे कथा की शृंखला टूट जाती है. उसका एक टुकड़ा यहां उन लोगों की जबानी पेश है, जैसा कि ईस्ट चैपल के एक ताड़ीखाने में उन्होंने सुनाया था.

     ‘बत्तख, बदजात बत्तख! भगवान बचाये.’ लंदन राइफल्स का सिपाही पोटोन कह रहा था.

     ‘बकवास!’ तभी टेढ़ी टांगों वाला एक तोपची बोल पड़ा.

     ‘सचमुच बत्तख थी. जाक ने भी उसे देखा. वह ससुरी डन्कर्क के सारे धुएं और धूल में से उड़ती हुई आ पहुंचती थी. वह एकदम सफेद थी और उसके डैनों के कुछ हिस्से काले थे. और ससुरी हमारे सिर पर मुए बमबार जहाजों की तरह मंडराने लगी. जाक बोला- ‘भैया, गये हम काम से. बत्तख है. चर्चिल साहब का संदेशा लायी है कि भैया जंग कैसी लग रही है! यह सगुन है, सगुन! बच्चा, हम बच जायेंगे.’

     ‘हम लोग डन्कर्क और लापैनी के बीच बैठे हुए थे, जैसे कबूतर छज्जे पर बैठे हों, और इंतजार कर रहे थे कि साले जर्मन आकर हमें भून डालें! और भाई, खूब भूना उन्होंने हमें. दुश्मन हमारी पीठ पीछे, बगल में और सिर पर सब कहीं था. और तोपों से और हवाई जहाजों से हम पर गोले और बम बरसा रहा था. तट से आधे मील हम रेत पर पड़े थे, क्योंकि जहाज तक पहुंचने का कोई तरीका नहीं था. तभी एक स्टुका (जर्मन हवाई जहाज) ने आकर जहाज के पास एक बम गिराया. पानी का फव्वारासा हवा में उछला, जैसे लंदन के बीगीचे में उछला करता है. देखने लायक नज़ारा था!’

     ‘फिर एक जंगी जहाज आया और एक-एक गन स्टुका पर तान दी, जैसे कह रहा हो, खबरदार! मगर तभी एक जर्मन जहाज टपक पड़ा जाने कहां से, और उसने एक बम गिराया जंगी जहाज पर. लो, छपाक-से सारा जहाज उछला और डूबने से पहले खूब जला, होली की तरह. सारे तट पर काला-पीला धुंआं और बदबू भर गयी. और उस में से यह मुई बखत्त आकर मंडराने लगी.’

     ‘फिर एक किश्ती दिखाई दी, मजे से तैरती हुई. कौन आ रहा है? एक सिविलियन चिल्लाया. किश्ती जर्मनों की मशीनगन की बौछार में से बढ़ती चली आ रही थी. अभी घंटे-भर पहले जर्मनों ने एक मोटर-बोट का काम तमाम किया था. मगर किश्ती में पेट्रोल तो था नहीं, जो जल उठे या फट पड़े. वह गोलियों और गोलों के बीच से राह बनाती हुई चली आ रही थी.’

     ‘जब किश्ती पास आयी, तो हमने देखा, उसमें लाल-सुर्ख-सा एक आदमी है, दढ़ियल, मुड़े हाथ और कुब्ब वाला. उसने काली दाढ़ी के बीच चमकते दोंतों से रस्सी पकड़ रखी थी और वह हमें इशारे से बुला रहा था. जाक बोला- ‘भैया, बस हो गया बंटाढार. शैतान आ पहुंचा है, शैतान! ज़रूर उसे गोली लग चुकी होगी.’

     ‘मैंने कहा, बकवास! मुझे तो यह शैतान के बजाय ईसा मसीह दिखाई दे रहा है. वह आदमी किश्ती से इशारा कर रहा था कि सात जने आ जाओ. हमारा अफसर चिल्लाया- भगवान तेरा भला करे भाई! और हमसे कहा- सबसे किनारे पर बैठे सात आदमी चढ़ जाओ किश्ती में. हम पानी में से चलकर किश्ती तक पहुंचे. वह थक गया था. फिर भी उसने मेरा कालर पकड़ कर मुझे ऊपर खिंच लिया और बोला-आ जाओ भैया अंदर… अब अगला आदमी!’

     ‘और सच, वह काफी ताकतवर था! उसने छोटा-सा पाल चढ़ाया, जो मशीनगन की गोलियों से छीदकर छलनी बन गया था. फिर वह बोला- ‘भाइयों, अगर तुम्हारे दोस्त आ पहुंचे, तो किश्ती की तली में लेट जाना . लो, अब हम चल दिये. वह किश्ती के दुम्बाल में बैठ गया और दांतों में व पंजे कैसे हाथ में रस्सी पकड़े और दायें में डांड तामे बड़ी सफाई से किश्ती खेने लगा, तट पर से आते गोलों के बीच से. और ससुरी बत्तख हमारे सिरों पर चक्कर काट रही थी और जर्मन हवाई जहाज बार-बार छापा मार रहे थे. और वह बत्तख देवदूत की तरह हमारे सिर पर घूम रही थीं. डांड चला रहा आदमी दांतो में रस्सी थामे ही बीच-बीच में सिर ऊपर करके उस पर मुस्कराता जैसे जीवन-भर से उनकी जान-पहचान हो.’

‘उसने हमें जहाज ‘केंटिश मेड’ पर पहुंचा दिया, फिर मुड़कर दूसरे फरे के लिए चल पड़ा. सारी दोपहर सारी रात वह फेरे लगाता ही रहा. जलते डन्कर्क की रोशनी में सब कुछ दिखाई दे रहा था. पता नहीं, उसने कितने फेरे लगाये, मगर उसने, टेमस याट क्लब के एक मोटर-बोट ने और पूल से आये एक लाइफ-बोट ने हम सबको नरक में से निकालकर जहाज पर पहुंचा ही दिया. और हमारा एक भी आदमी मरा नहीं.’

     ‘जब सब-के-सब आ गये, तो हम चल पड़े. 200 आदमियों के लिए बनाये गये जहाज में हम 700 लोग चढ़े हुए थे. और जब हम चलने लगे, तो उसने हाथ हिलाकर हमें विदा दी और कीश्ती डन्कर्क की ओर मोड़ दी. उसके साथ वह बत्तख भी चल दी किश्ती पर मंडराती हुई. रोशनी और धुएं में वह देवदूत की तरह चमक रही थी. सवेरे हम सही-सलामत अपने वतन पहुंच गये.’

     ‘हमें पता ही नहीं चला कि छोटी-सी किश्ती वाले उस आदमी का क्या हुआ, या वह कौन था! बड़ा भला आदमी था बेचारा!’

     ‘बत्तख भी बड़ी भली थी.’ तोपची बोला.

     ब्रूक स्ट्रीट में जलसेना के अफसरों के एक क्लब में जलसेना का निवृत्त अफसर, 65 वर्षीय कमांडर कीथ ब्रल-आउडबर डन्कर्क के अनुभव सुना रहा था. उसे सवेरे चार बजे सोते से जगाकर एक खस्ता हाल ‘टाग की’ कमान सौंपी गयी थी. टन के साथ टेम्स नदी के कई बजरे बांधकर उसने चैनल के आर-पार चार फेरे लगाये थे और सैनिकों को इस पार पहुंचाया था. चौथे फेरे में टग की चिमनी उड़ा दी गयी और एक पार्श्व में भी छेद हो गया. फिर अभी वह डोवर आ ही पहुंचा.

     एक और अफसर उसकी बात सुन रहा था, जिसका ट्रालर जहाज डन्कर्क में डुबा दिया गया था. वह बोल पड़ा- ‘क्या आपने भी वह जंगली बत्तख वाला किस्सा सुना था? सारे डन्कर्क तट पर उसी की चर्चा थी आप तो जानते ही हैं, ये किस्से कैसे घड़ लिये जाते हैं. सैनिकों में विश्वास फैल गया था कि जो भी उसे देख ले, वह बच जायेगा.’

     ब्रिल-आउडनर ने उत्तर दिया- ‘जंगली बत्तख नहीं, मैंने तो पालतू बत्तख देखी थी. अजीब संयोग था. एक ढंग से करुण भी. यों हमारे लिए तो शुभ ही था. लीजिए सुनाता हूं. मेरा तीसरा फेरा था. छःबजे के करीब हमने एक खस्ता हाल किश्ती देखी, उसमें एक आदमी या मुर्दा दिखाई दे रहा था और पक्षी किश्ती के डंडे पर बैठा हुआ था. जब पास पहुंचे, तो हमने अपना ‘टग’ जरा-सा घुमाया, ताकि उसे ठीक से देख सकें. हे भगवान! यह तो एक आदमी था. गोलियों से छिदा हुआ, बुरी तरह. उसका मुंह पानी तक लटक आया था. और वह पक्षी बत्तख था, पालतू बत्तख.’

     ‘हम और नज़दीक गये. मगर जब हमारे जवान उस आदमी को उठाने लगे, बत्तख गुस्से में मरकर डैनों से वार करने लगी. हमारे जवान उसे परे खदेड़ नहीं सके.’

     ‘तभी नौजवान केटरिंग, जो मेरे साथ था, जोर से चिल्लया और दायीं ओर इशारा करने लगा. पास ही एक बड़ी-सी सुरंग तैर रही थी. जर्मनों की सौगात! अगर हम उसी दिशा में आगे बढ़े होते, तो उससे हमारी भिड़ंत हो जाती. हमने अपने आखिरी बजरे को उससे सौ गज दूर निकल जाने दिया, फिर मेरे जवानों ने राइफल से गोली मारकर उसे उड़ा दिया.’

     ‘जब हमने फिर टूटी किश्ती की ओर नज़र फेरी, तो वह जा चुकी थी. धमाके के आघात से समुद्र में गर्क. आदमी और किश्ती दोनों. शायद उसने अपने को किश्ती से बांध रखा था. बत्तख ऊपर उड़ रहीं थी और चक्कर काट रही थी तीन बार उसने चक्कर काटा, जैसे कि हवाई जहाज सलामी देते हैं. बड़ी अजीब-सी अनुभूति हुई. फिर वह पश्चिम की ओर उड़ गयी. किस्मत की बात थी कि हम किश्ती को देखने गये थे. और कैसे विचित्र संयोग है कि आप भी बत्तख के बारे में पूछ बैठे.’

     फ्रिथ अकेली ही ग्रेट मार्श का प्रकाश-स्तंभ में रहकर पंखकटे पंक्षियों की देख-भाल करती रही और जाने किस चीज की प्रतीक्षा करती रही. शुरू के दिनों में वह समुद्री दीवार पर घूमा करती थी, राह देखा करती थी, हालांकि वह जानती थी कि वह सब व्यर्थ है. फिर वह प्रकाश-स्तंभ के कोठारों में घूमती रही, जिनमें रायडर के चित्रों के ढेर थे. चित्र, जिनमें रायडर ने इस बियाबान प्रदेश और उसमें रहने वाले अद्भुत, सुंदर उड़ते जीवों के प्रत्येक ‘मूड’ को अंकित किया था.

     उन चित्रों में उसे वह तस्वीर भी मिली, जिसमें उसने वर्षों पहले, स्मृति के आधार पर उसे अंकित किया था, जब वह निरी बच्ची थी और तेज हवा में सहमती-झिझकती उसके द्वार पर आयी थी, एक घायल पक्षी को सीने से चिपकाये.

     उस चित्र और उसमें अंकित चीजों ने फ्रिथ को इतना विलोड़ित कर दिया, जैसा पहले कभी नहीं हुआ था. रायडर ने अपनी आत्मा इस चित्र में उड़ेल दी थी. कितनी विचित्र बात थी, यही एकमात्र चित्र था, जिसमें उसने हिम-बत्तख… वह राहभूल जंगली जीव, जो तूफान में फसकर देशांतर से चला आया था और जिसने दोनों को मित्र बनाया और जो उसके पास यह संदेश लेकर लौटा कि तुम रायडर को फिर कभी न देख पाओगी.

     हिम-बत्तख सिंदूरी रंग के पूर्वी आसमान से उतरकर प्रकाश-स्तंभ की प्रदक्षिणा करे और आखिरी अलविदा कहे, उसके बहुत पहले ही फ्रिथ अपनी रगों में बहते प्राचीन रक्त की शक्ति से समझ चुकी थी कि रायडर वापस नहीं लौटेगा.

     सो जब एक सूर्यास्त के समय उसने आकाश में वही चिरपरिचित, ऊंची ध्वनि सुनि, तो उसके हृदय में क्षण-भर को भी झूठी आशा नहीं जागी. जैसे इस क्षण को वह बहुत बार जी चुकी थी.

     दौड़ती हुई वह समुद्री दीवार पर पहुंची और उसने अपनी आंखें इंग्लिश चैनल की ओर नहीं मोड़ीं, बल्कि आसमान की ओर फेरीं, जिसके सुलगते मेहराब में से हिम-बत्तख सीधी नीचे उतर रही थी. तब उस दृश्य, उस ध्वनि और चहूं ओर छाये हुए सूनेपन ने उसके हृदय के सारे बांध तोड़ दिये और उसके प्रेम की सचाई उमड़ पड़ी और अश्रुधाराओं में बह निकली.

     जंगली जीव, जंगली जीव को बुला रहा था. उसे ऐसा लगा कि वह भी हिम-बत्तख के साथ उड़ रही है, उसके साथ सांध्य आकाश में विचर रही है और रायडर का संदेश सुन रही है.

     आकाश और धरती उस संदेश से गूंज रहे थे.‘फ्रिथ! फ्रिथ! फ्रिथ मेरी प्रियतमा! अलविदा, मेरी प्रियतमा!’ काले छोर वाले सफेद डैने उस संदेश को उसके हृदय पर पटक रहे थे और उसका हृदय उत्तर दे रहा था- ‘फिलिप, मैं तुम्हें प्यार करती हूं.’

     क्षण-भर को फ्रिथ को ऐसा लगा कि हिम-बत्तख पुराने बाड़े में उतर आयेगी, क्योंकि पंख-कटी बत्तखें उसके स्वागत में शोर मचाने लगी थीं. मगर हिम-बत्तख जरा नीचे आकर फिर ऊपर चली गयी और चौड़े होते घेरे में प्रकाश-स्तंभ की प्रदक्षिणा करके फिर ऊपर चढ़ने लगी.

     उसे निहारते हुए फ्रिथ को हिम-बत्तख नहीं, बल्कि रायडर की आत्मा नजर आयी, जो सदा के लिए प्रस्थान करने के पूर्व उसे विदा दे रही थी.

     अब फ्रिथ उसके साथ उड़ नहीं रही थी, बल्कि धरती पर खड़ी थी. उसने आसमान में अपनी बांहें उठायीं और पंजों के बल खड़े होकर कहा- ‘भगवान भला करे, भगवान भला करे फिलिप!’

     फ्रिथ के आंसू थम चुके थे. बत्तख के अदृश्य हो जाने के भी बहुत देर बाद तक वह खड़ी रही. तब वह भीतर गयी और उसने वह चित्र ढूंढ़ निकाला, जिसमें रायडर ने उसे अंकित किया था. चित्र को सीने से लगाये वह पुरानी समुद्री दीवार की राह अपने घर की ओर चल पड़ी.

     उसके बाद कई हफ्तों तक रोज रात को फ्रिथ प्रकाश-स्तंभ पर आती और पंख-कटे पंक्षियों को दाना खिलाती. एक दिन अल-स्सवेरे एक जर्मन पायलट ने उस परित्यक्त प्रकाश-स्तंभ को कोई सैनिक इमारत समझ लिया. फौलादी चील प्रकाश-स्तंभ पर झपटी और उसकी व उसमें स्थित सब चीजों की धज्जी उड़ाकर चली गयी.

     उस सांझ जब फ्रिथ वहां आयी, तो टूटी दीवारों में से होकर समुद्र वहां घुस आया था और छा गया था. उस निपट सूनेपन को तोड़ने के लिए कुछ भी नहीं रह गया था वहां. किसी दलदली मुर्गाबी की वहां फटकने की हिम्मत नहीं हो रही थी. केवल निडर सामुद्रिक पक्षी वहां उड़ रहे थे और मर्सिया पढ़ रहे थे.

( फरवरी  1971 )

 

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