(मंगेश पाडगांवकर के निधन से मराठी कविता को एक नया चेहरा देने वाला समर्थ रचनाकार उठ गया है. उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप प्रस्तुत है उनकी एक कविता, जिसका हिंदी में अनुवाद स्वर्गीय अनिल कुमार ने किया था.)
मैंने देखे कांच के संत
भूस की आत्मा भरे हुए,
नींद की शब्द गोलियों के प्रसिद्ध ठेकेदार
रेशमी पहनकर प्रवचन करते हुए;
सामुदायिक विस्मृति उगाने वाली आध्यात्मिक वाणी
अमुकानंद, तमुकाचार्य, फलांशास्त्राr.
मैंने देखी उनकी आध्यात्मिक सभा में
सुख का डायरिया भोग रही तुंदिल औरतें,
बच्चा न हो सकने के कारण दीन बनी बाइयां,
महाबलेश्वर के आलीशान होटल में
कम्पनी के एक्सपेन्स अकाउंट में
स्टेनो के साथ भाड़े पर सोने वाला कर्तव्यनिष्ठ एक्जिक्युटिव,
उंगली के नाखून लगातार कुतरनेवाला कारकून
पांच पीढ़ियों की हीनता का कूबड़ निकला हुआ,
रिक्त भयभीतों के भी भक्तिधुंद समूह
हरेक के हाथों में, भक्त सटोरिया सेठजी द्वारा
छापकर फोकट में बांटे गये अमुकानंद के आध्यात्मिक प्रवचन.
मैं बचपन में दादी से पूछा करता था,
‘दादी, देव कैसा होता है?’
धकधक जलते चूल्हे पर भाकरी ठोकते हुए
कहा करती थी मेरी अशिक्षित दादी-
‘तू पेट भर जीमता है मंगेश तो देव पा लेती हूं.’
फरवरी 2016