♦ मैक्सिम गोर्की
… आपके बनाये मेरे पोर्ट्रेट और मेरे बारे में आपके कृपापूर्ण और सुंदर शब्दों के लिए धन्यवाद. मैं यह तो नहीं जानता कि मैं अपनी किताबें से बेहतर हूं या नहीं, मगर इतना जरूर जानता हूं कि हर लेखक को, जो कुछ वह लिखता है, उससे ऊपर और बेहतर होना चाहिए. क्योंकि- आखिर किताब है क्या? एक महान किताब भी शब्दों की महज काली और मृत छाया है और सत्य के प्रति एक इंगति मात्र है, जबकि आदमी जीवित ईश्वर का मंदिर है. और मैं समझता हूं कि पूर्णता, सत्य और न्याय प्राप्ति की अखंड साधना का नाम ही ईश्वर है इसीलिए बुरा आदमी भी अच्छी किताब से बेहतर है.
मैं इस बात का पूरी तरह कायल को चुका हूं कि समूची (धरती) पर आदमी से बेहतर कोई दूसरी चीज नहीं है और मैं यह कहना चाहता हूं कि जीवित सिर्फ आदमी रहता है, बाकी सारी चीजें महज खयाल हैं. मैं हमेशा से आदमी का पुजारी रहा हूं और रहूंगा, सिर्फ इतना नहीं जानता कि इस आस्था की अधिक-से-अधिक समर्थ अभिव्यक्ति कैसे करूं?
(मई 2071)