उत्तर प्रदेश की राजकीय मछली चितला  –   परशुराम शुक्ल

राज-मछली

चितला नोटोप्टेरिडी परिवार की शानदार मछली है. इसका वैज्ञानिक नाम है- चितला चितला. अंग्रेज़ी में इसे चाकू मछली कहते हैं. वैसे इसे इंडियन फीदरबैक, क्लाउन नाइफ फिश, फीदरबैक, हम्प्ड फीदरबैक आदि नामों से भी जाना जाता है, किंतु यह नाइफ फिश अर्थात चाकू मछली के नाम से विश्वभर में प्रसिद्ध है.

भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, लाओस, वियतनाम, थाईलैण्ड आदि देशों में पायी जाने वाली इस मछली को अलग-अलग देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. इसे बांग्लादेश में चितल, म्यांमार में नगा पे, लाओस में पा थांग और पा टांग, मलेशिया में बेलिडा, इंडोनेशिया में टॉपिस, थाईलैण्ड में प्ला हांग पान, वियतनाम में का कॉम और नेपाल में वूमा कहते हैं.

भारत में यह बंगाल, असम, बिहार, उड़ीसा, पंजाब, उत्तर प्रदेश आदि में पायी जाती है. इसे गंगा-ब्रह्मपुत्र और महानदी के घाटीवाले भागों में तथा भागीरथी, कोशी, घाघरा, गोमती, सतलज, केन, बेतवा, यमुना आदि नदियों में देखा जा सकता है. भारत में भी इसे अलग-अलग भागों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. इसे असम में कंडला, बंगाल में चितल, उत्तर प्रदेश में चितला, बिहार में मोही, उड़ीसा में पुल्ली, महाराष्ट्र में पत्ते और पंजाब में परी कहते हैं. इस मछली का एक भी नाम ऐसा नहीं है, जिससे यह पूरे भारत में जाना जाता हो, अतः इसके लिए आगे चाकू मछली का उपयोग किया जा रहा है.

ताजे पानी की इस मछली का आकार चाकू के फलक जैसा होता है, अतः इसे चाकू मछली कहते हैं. अंग्रेज़ी में इसे फेदर बैक कहते हैं, अर्थात पृष्ठ-पंख मछली. किंतु अंग्रेज़ी नाम के विपरीत इसकी पीठ का मीनपंख छोटा होता है तथा प्रमुख मीनपंख शरीर के नीचे की ओर होता है. चाकू मछली मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पायी जाती है. यह अफ्रीका के सुदूर पूर्व के ऐसे जलस्रोतों में बहुतायत से मिलती है, जहां बहुत बड़ी संख्या में जलीय पौधे हों. चाकू मछली की पांच जातियां हैं. इनमें से चार जातियां भारत और दक्षिण-पूर्वी एशिया के तालाबों, नदियों और झीलों में मिलती हैं. पांचवीं जाति उष्णकटिबंधीय अफ्रीका में जाम्बिया से लेकर कांगों तक मिलती है. अफ्रीका के पश्चिमी भागों में एक भ्रामक चाकू मछली भी पायी जाती है.

चाकू मछली नदियों के रुके हुए पानी, दलदल, दलदलवाली झीलों और ताज़े पानी के तालाबों में विशेष रूप से देखी जा सकती है. कभी-कभी यह खारे पानी की झीलों में भी मिल जाती है. दिन के समय यह विश्राम करती है. यह दिन में पानी के पौधों के भीतर सर डालकर सर थोड़ा नीचे कर लेती है अथवा घने तनों के मध्य आराम से पड़ी रहती है. एक विशिष्ट जाति की चाकू मछली तैरती-तैरती अचानक रुक सकती है और फिर शरीर में बिना कोई हलचल किये तथा बिना पीछे मुड़े नितम्ब के मीनपंख की सहायता से पीछे की ओर तैर सकती है.

चाकू मछली की शारीरिक संरचना सामान्य मछलियों की तरह ही होती है. इसकी लम्बाई लगभग 1 मीटर एवं शरीर का रंग कत्थई होता है, कुछ का हल्का और कुछ का गहरा. इसके शरीर पर गहरे रंग के धब्बे होते हैं जो हल्के कत्थई रंग की मछलियों में स़ाफ दिखाई देते हैं. इसकी पीठ धनुषाकार होती है एवं इसका शरीर अलग-बगल से चपटा होता है. इसका मुंह काफी बड़ा होता है एवं इसमें बहुत से छोटे-छोटे दांत होते हैं. ताज़े पानी की सामान्य मछलियों की तरह इसके दो नथुने होते हैं एवं प्रत्येक नथुने के पास एक-एक संस्पर्शिका होती है. चाकू मछली के जोड़ेवाले मीनपंख बहुत छोटे होते हैं. इसका प्रमुख मीनपंख नितम्ब का मीनपंख है. नितम्ब का मीनपंख पेट के पास से आरम्भ होता है और आगे चलकर पूंछ के मीनपंख से मिल जाता है. इसकी पूंछ का मीनपंख बहुत छोटा होता है

दिन के समय यह पानी के पौधों के बीच छिपी रहती है और रात में भोजन की तलाश में बाहर निकलती है. इसका प्रमुख भोजन छोटी-छोटी मछलियां हैं. चाकू मछली प्रातः तल के पास रहनेवाली मछलियों का शिकार करती है. इसके लिए यह तल के निकट तैरती रहती है और जैसे ही इसे कोई शिकार दिखाई देता है, यह उस पर झपटती है और उसे अपने मुंह में ले लेती है. इसे कभी-कभी पानी की सतह पर भी शिकार खोजते हुए देखा जा सकता है. चाकू मछली स्वजातिभक्षी भी है. इसे जब पानी अथवा कीचड़ में कोई शिकार नहीं मिलता तो यह अपनी ही जाति की नवजात एवं छोटी-छोटी मछलियों को खाना आरम्भ कर देती है.

चाकू मछली का प्रजनन बड़ा रोचक होता है. प्रजनन काल में नर और मादा दोनों नदियों, तालाबों, झीलों आदि के तल के पास मिलते हैं और प्रजनन करते हैं. इनमें नर प्रजनन के समय मादा के पास ही रहता है तथा अण्डे देने के बाद मादा को अण्डों के पास से भगा देता है. मादा चाकू मछली किसी ठोस आधार पर एक बार में लगभग 10 हजार अण्डे देती है. इसके अण्डे 5 से 6 दिन के मध्य परिपक्व होकर फूटते हैं और उनसे बच्चे निकल आते हैं. चाकू मछली के नवजात बच्चे देखने में चाकू मछली की तरह ही होते हैं, किंतु इनके शरीर पर गहरे रंग के धब्बों के साथ ही गहरे रंग की धारियां भी होती हैं. नर, अण्डों के समान बच्चों की भी सुरक्षा करता है, क्योंकि मादा चाकू मछली प्रायः अवसर मिलने पर अपने ही बच्चों को चट कर जाती है.

इसके बच्चों का बड़ी तेज़ गति से विकास होता है. ये कीड़े-मकोड़ों के लारवे और कृमि खाते हैं तथा कुछ बड़े हो जाने पर छोटी-छोटी मछलियों का भी शिकार करना आरम्भ कर देते हैं. आरम्भ में ये समूह में रहते हैं, किंतु जैसे-जैसे ये बड़े होते हैं, अकेले रहने लगते हैं. अब ये मुख्य रूप से छोटी-छोटी मछलियों को अपना आहार बनाते हैं. थाईलैण्ड में चाकू मछली का उपयोग एक स्वादिष्ट भोजन के रूप में किया जाता है. यहां के लोग चाकू मछलियों को पालते भी हैं.

चाकू मछली की सबसे बड़ी विशेषता इसकी दोहरी श्वसन प्रणाली है. यह सांस लेने के लिए अपने गलफड़ों के साथ ही अपने स्विम ब्लेडर का भी उपयोग करती है. चाकू मछली का उपयोग एक लम्बे समय से भोजन के रूप में किया जा रहा है, किंतु इसके विलक्षण श्वसन तंत्र की जानकारी जीव वैज्ञानिकों को सन् 1960 तक नहीं मिल सकी. सर्वप्रथम सन् 1960 में दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. पद्माकर ने देखा कि चाकू मछली चाहे स़ाफ पानी में हो अथवा गंदे पानी में, यह समय-समय पर हवा लेने के लिए सतह पर आती है. डॉ. पद्माकर ने यह जानने का प्रयास किया कि क्या चाकू मछली वास्तव में हवा में सांस लेती है? उनका अध्ययन महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ. डॉ. पद्माकर के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला कि स्विम ब्लेडरवाली मछलियां हवा में सांस लेती हैं.

डॉ. पद्माकर के अनुसार चाकू मछली का स्विम ब्लेडर एक फेफड़े की तरह होता है. यदि किसी चाकू मछली को पानी के भीतर रखा जाये अथवा इसे किसी तरह से बाहर की हवा न लेने दी जाये तो यह डूब जायेगी. इसे यदि तुरंत हवा लेने दी जाये तो यह पुनः स्वस्थ हो जायेगी, वरना मर जायेगी. चाकू मछली पानी के बाहर दो घण्टे तक जीवित रह सकती है.

चाकू मछली पानी के भीतर अपने स्विम ब्लेडर से अथवा गलफड़ों से सांस लेती है, यह पानी में घुली हुई आक्सीजन की मात्रा पर निर्भर करता है. पानी में आक्सीजन की मात्रा बहुत कम होने पर यह बार-बार सतह पर हवा लेने के लिए आती है. पानी में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बहुत अधिक होने पर अथवा बहुत कम होने पर भी इसके गलफड़े काम नहीं करते, अतः इसे इसी तरह सतह पर आकर सांस लेनी पड़ती है.

चाकू मछली के शरीर में विद्युत उत्पादक अंग भी होते हैं, जिनसे यह हल्की-हल्की विद्युत तरंगें छोड़ती है. इसके विद्युत उत्पादक अंगों पर अभी अध्ययन चल रहा है. आशा की जाती है कि यह पूरा होने पर चाकू मछली के सम्बंध में और भी रोचक और रोमांचक तथ्य प्रकाश में आयेंगे.

अप्रैल 2016

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