♦ आनंद गहलोत >
‘सुख’ ‘अर्थवाला’ ‘आराम’ फ़ारसी शब्द है या संस्कृत शब्द है या दोनों भाषाओं की मिलीजुली सम्पत्ति? ‘विश्रांत’ का अर्थ कैसे बदल गया? अगर अशुद्ध उच्चारण का दंड ‘नरक’ हो तो हम सभी ‘नरक’ या ‘नर्क’ जायेंगे
ईरान में फ़ारसी ने और भारत में उर्दू ने ‘आराम’ को लेकर इतने गगज्यादा शब्द गढ़े और संस्कृत ने अपने ही इस शब्द की इतनी उपेक्षा की कि हिंदी के मूर्धन्य कोशकारों में से कुछ ने सुख अर्थ वाले ‘आराम’ को फ़ारसी शब्द माना और बाग-उपवन अर्थवाले ‘आराम’ को संस्कृत शब्द. वैसे ‘आराम’ के बाग-उपवन वाले अर्थ को हिंदी कब का नकार चुकी है.
कालिकाप्रसाद को छोड़कर अन्य प्रमुख हिंदी कोशकारों की दृष्टि में ‘आराम’ शब्द का भगवद्गीता में व्यवह्नत ‘सुख’ अर्थ ओझल रहा; जिसे आधुनिक फ़ारसी भाषा की पूर्वज अवेस्ता भाषा ने शायद महाभारत काल में गीता के युग में ही अपना लिया था.
यह भी हो सकता है कि वैदिक ‘रम्’ (आनंदित होना, रमण करना) धातु से ईरान और भारत में एक साथ ‘आराम’ शब्द ने जन्म लिया ‘सुख’ अर्थ में.
भगवद्गीता के अध्याय 3 श्लोक 16 में श्रीकृष्ण कहते हैं- ‘हे पार्थ (अर्जुन)! इंद्रियसुखों में रमण करनेवाला व्यर्थ ही जीता है.’ ‘अधायुरिंद्रियारामो मोघं पार्थ सा जीवति.’
गगज्यादातर हिंदी कोशकारों ने ‘आराम’ से फ़ारसी से उर्दू-हिंदी में आये ‘सुख’ अर्थ के इतने गगज्यादा शब्द देखे कि एक क्षण को भी उन्हें नहीं लगा कि संस्कृत में भी इस शब्द का यही मुख्य अर्थ था.
फ़ारसी भाषा ने हमें आराम बैठने के लिए ‘आरामकुर्सी’ दी. सोने-विश्राम करने के लिए शयनागार, विश्रामालय के बदले ‘आरामगाह’ शब्द दिया. आलस्यप्रिय (आलसी) काहिल, सुखेच्छ व्यक्तियों के लिए ‘आरामतलब’, ‘आरामपसंद’ दिया. सुखदायी के लिए ‘आरामदेह’ शब्द दिया. ‘आरामदेह’ शब्द की देखादेखी हिंदी ने ‘आरामदायी’ और ‘आरामदायक’ शब्द पिछले पचास वर्ष में गढ़ डाले हैं. ज्ञानमंडल के ‘बृहत् हिंदी कोश’ में ये शब्द नहीं है.
(फ़रवरी, 2014)