हमारे समय के महत्त्वपूर्ण शायर निदा फाज़ली के आकस्मिक निधन से हिंदी-उर्दू साहित्य का एक अध्याय समाप्त हो गया. उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप उन्हीं की यह कविता-
वालिद की व़फात पर
तुम्हारी कब्र पर मैं फातिहा पढ़ने नहीं आया
मुझे मालूम था
तुम मर नहीं सकते
तुम्हारी मौत की सच्ची खबर जिसने उड़ाई थी
वो झूठा था
वो तुम कब थे
कोई सूखा हुआ पत्ता हवा से हिल के टूटा था
मेरी आंखें तुम्हारे मंजरों में कैद हैं अब तक
मैं जो भी देखता हूं, सोचता हूं
वो – वही है
जो तुम्हारी नेकनामी और बदनामी की दुनिया थी
कहीं कुछ भी नहीं बदला
तुम्हारे हाथ मेरी उंगलियों में सांस लेते हैं
मैं लिखने के लिए जब भी कलम कागज़ उठाता हूं
तुम्हें बैठा हुआ अपनी ही कुर्सी में पाता हूं
बदन में मेरे जितना भी लहू है
वो तुम्हारी
लग्ज़िशो नाकामियों के साथ बहता है
मेरी आवाज़ में छुप कर तुम्हारा ज़हन रहता है
मेरी बीमारियों में तुम
मेरी लाचारियों में तुम
तुम्हारी कब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिक्खा है
वो झूठा है
तुम्हारी कब्र में मैं दफ्न हूं
तुम मुझ में ज़िंदा हो
कभी फ़ुर्सत मिले तो फातिहा पढ़ने चले आना
मार्च 2016