अक्टूबर 2012

Oct 2012 Cover 1 & 4गांधी जैसे व्यक्तित्व की चमक समय के साथ धुंधलाती नहीं, समय के पत्थर पर घिस-घिस कर और रंग लाती है. आज यदि गांधी प्रासंगिक हैं तो इसलिए कि उन्होंने अपने सत्य के प्रयोगों  से समय को एक दिशा दी थी और गति भी. कोई ज़रूरी नहीं कि आज हम गांधी के उन प्रयोगों को दुहराने के बारे में सोचें. ज़रूरी यह है कि हम गांधी के कृतित्व और विचारों की कसौटी पर अपने आज को कसें और यह आकलन करें कि हमारे कल के लिए गांधी-दर्शन कितना सार्थक है. कतई ज़रूरी नहीं कि हम गांधी को समाधान मानकर आगे बढ़ें, पर यह ज़रूरी है कि हम इस बारे में सोचें कि क्या सचमुच गांधी हमारे आज के प्रश्नों का उत्तर हो सकते हैं? सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह, शुचिता आदि का जो संदेश गांधी ने दिया था क्या वह बदलती दुनिया की ज़रूरतों के लिए उपयोगी हो सकता है? इन्हीं सवालों के साथ जुड़ा है यह सवाल भी कि गांधी क्यों जब तब याद आते हैं? ऐसे सवालों के जवाब तलाशने का मतलब है गांधी के विचारों को फिर से तोलना. ‘नवनीत’ के इस अंक में कुल मिलाकर ऐसी ही एक कोशिश की गयी है. गांधी देवता नहीं थे, मनुष्य थे. उनके कृतित्व या व्यक्तित्व को एक महामानव की दृष्टि से ही आंका जा सकता है. उन्हें देवता बनाना वस्तुतः स्वयं को उस कसौटी पर खरा उतरने की शर्त से बचाना ही है, जो मनुष्यता की एक चुनौती बनकर हमारे सामने खड़ी है.

 

कुलपति उवाच

आसुरी सम्पत्ति का आकर्षण
के. एम. मुनशी

शब्द-यात्रा

‘मां’ के पिताजी और ‘पिता’ की मां
आनंद गहलोत

पहली सीढ़ी

वस्तु-चेतना
प्रकाश परिमल

आवरण-कथा

सम्पादकीय
बापू भारत की ‘लोकवादी सूरत’ गढ़ते
रामशरण जोशी
शायद उन्हें निकालकर पछता रहे हैं हम
सुदर्शन आयंगार
‘अब आप सब गांधी हैं…’
गिरिराज किशोर
आज का एक ठीक कदम पर्याप्त है
अनुपम मिश्र
…और गांधी-जिन्ना की आंखें नम हो गयीं
गोपालकृष्ण गांधी
गांधीवाद रहे न रहे
महात्मा गांधी

मेरी पहली कहानी

अंगूठी
यशपाल

60 साल पहले

सातवीं थैली
बर्नड-द-बोतो

आलेख

बटो
कृष्णबिहारी मिश्र
कलाकार
हकु शाह
बिहार और हरियाणा का राज्यवृक्ष ‘पीपल’
डॉ. परशुराम शुक्ल
नमस्कार देवदारु
नारायण दत्त
पंक्ति कभी पूर्णता नहीं देतीघेरा कभी अपूर्ण नहीं होता
रमेश थानवी
एक पागल बीमारी का इलाज
सुधांशु भूषण मिश्र
पहला मुकदमा
महात्मा गांधी
आप चाहें तो इसे जल-गीता कह सकते हैं!
अरविंद मोहन
किताबें

महाभारत जारी है  

पहले मेरे प्रश्नों का उत्तर दो…
प्रभाकर श्रोत्रिय

व्यंग्य

मेरे असत्य के प्रयोग
यज्ञ शर्मा
कलुआ बना कालनेमी
शशिकांत सिंह ‘शशि’

धारावाहिक उपन्यास

कंथा (अंतिम किस्त)
श्याम बिहारी श्यामल

कविताएं

कुछ कविताएं
स्नेहमयी चैधरी
दो ग़ज़लें
भवेश दिलशाद
दशहरा
सूर्यभानु गुप्त
करतब
हरि मृदुल
जंगल संस्कृति
मणिका मोहिनी

कहानियां

सेल्फ-हीलिंग
सुधा
अप्प दीपो भव
दिनेश थपलियाल
पत्थर…
संतोष मालवीय ‘प्रेमी’

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