हम और हमारा स्कैंडिनेविया

<  विली ब्रीनहोल्स्ट के शब्द – लियोन वान रॉय के चित्र   >

स्कैंडिनेवियाई लोग उन प्राचीन वाइकिंगों के वंशज है, जो शराब से सनी दाढ़ियां लिये दूर-दूर तक घूमते थे और अंग्रेज़ों के गांवों को फूंक डालने व चीखती-चिल्लाती युवतियों को उठा ले जाने में सिद्धहस्त थे.

     जब से राजमुकुटों का आविष्कार हुआ, तभी से डेन्मार्क, नार्वे और स्वीडन में राजतंत्र है. इन देशों में राजा कितने अधिक लोकप्रिय हैं, इसका कुछ प्रमाण वहां के प्रत्येक घर में मिल सकता है, जहां राजा-रानी के शीशे मढ़े चित्र पारिवारिक चित्रों के साथ दीवारों पर टंगे रहते हैं. प्रत्येक व्यक्ति राजा और रानी को उसके नाम से याद करता है और उनके जन्मदिन उसे कंठस्थ रहते हैं.

     स्वीडन स्कैंडिनेवियाई देशों में सबसे बड़ा है. उसे दक्षिण, मध्य और उत्तर स्वीडन में विभक्त किया जा सकता है. उपजाऊ दक्षिणी स्वीडन में रहते है तथाकथित ‘स्कानिग्स,’ जो कि स्वीडन भाषी डेन हैं. मगर न तो मध्य स्वीडन उन्हें स्वीकार करना चाहता है, न उत्तर स्वीडन, हालांकि वे दुनिया में सबसे भले आदमी हैं.

     उत्तर-स्वीडन में तथाकथित लैंपलैंडर रहते हैं- बड़े रंगीन फिरंतू लोग, कद-काठ के छोटे, भले-भोले लोग, जो तंबुओं में रहते हैं और ऐसी भाषा बोलते हैं, जिसे वे स्वयं भी मुश्किल से ही समझ पाते हैं और इसी-लिए शायद ही कभी बोलते हैं. मध्य और दक्षिण स्वीडन में उन्हें पसंद नहीं किया जाता और यह समझा जाता है कि वे दोपाया रेनडियर हैं, जो गर्मियों में अमरीकी पर्यटकों पर और सर्दियों में वृक्षों की छाल पर गुजारा करते हैं.

     मध्य स्वीडन में, जहां कि देश की राजधानी है तथाकथित स्वीड रहते हैं- या उन्हें रहना पड़ता है, क्योंकि स्कान प्रदेश या लैंपलैंड में कोई उन्हें स्वीकार करने को तैयार नहीं है.

     स्वीडिश लड़कियां ‘फ्लिकोर’ कहलाती हैं और दुनिया में सबसे सलोनी होती है. नार्वें स्कैंडिनेविया का दूसरा सबसे बड़ा देश है और जिसने भी उसे ‘मध्यरात्रि के सूर्य का देश’ कहा है. झूठ नहीं कहा है. कुछ ही हजार किलोमीटर उत्तर चले जाइए, आप चौबीसों घंटे धूप-स्नान कर सकते हैं.

     स्कैंडिनेवियाई देशों में नार्वे सबसे विरल आबादी वाला देश है. जब कि डेन्मार्क में हर वर्ग मील के पीछे 94 मनुष्य रहते हैं, नार्वे में हर पहाड़ के पीछे मुश्किल से एक चौथाई आदमी मिलेगा. इस आखिरी तथ्य से यह भी सिद्ध होता है कि नार्वे का धरातल बहुत ऊबड़-काबड़ है. नार्वे में इतने ज्यादा पहाड़ हैं कि कई पहाड़ों को तो एक पर एक जमाकर रखना पड़ा है, ताकि सबके लिए जगह निकल आये. इस तरह गाल्डहोपिग्गेन 2,500 मीटर ऊंचा हो गया है और नार्वें का सबसे ऊंचा पहाड़ बन गया है.

     मगर इससे तो रोटी नहीं जुट जाती. इसलिए नार्वेवासी जहाजरानी, वन-संवर्धन, खान-खुदाई और मत्स्योद्योग में बड़े पैमाने पर जुटे हुए हैं. नार्वे का ह्वेल मारने का जहाजी बेड़ा दुनिया में सबसे विशाल है और नार्वे के ह्वेल-मांस को सारा संसार सर्वोत्तम मानता है. सिर्फ नार्वेवासी उसे सर्वोत्तम नहीं मानते, क्योंकि युद्ध के दिनों में उन्हें केवल उसी पर गुजारा करना पड़ा था.

     नार्वे की लड़कियां ‘यंटर’ कहलाती हैं और दुनिया में सबसे सलोनी होती है.

     डेन्मार्क-स्कैंडिनेवियाई देशों में सबसे छोटा है. वह इतनाद छोटाहै कि सबके सब नक्शे 1ः500 के पैमाने पर खिंचे जाते हैं, ताकि देश कागज पर छोटा धब्बा-सा न जान पड़े. डेन्मार्क का राजा 48,00,000 प्रजाजनों और 40,000 फैरो-द्वीपवासियों पर शासन करता है. फैरो-द्वीपवासियों को सर्वयोग में इसलिए नहीं जोड़ा गया है कि बहुधा यह तय करना कठिन हो जाता है कि डेनमार्क का फैरो द्वीप पर शासन है, या फैरो द्वीप का डेन्मार्क पर शासन है.

     डेन्मार्क में बस एक ही पहाड़ है. भाटे के समय यह समुद्र-सतह से पूरे 157.5 मीटर ऊंचा उठा रहता है और इसलिए डेनिश लोगों ने विनम्रतापूर्वक इसका नाम ‘स्काई माऊंटन’ यानी आकाश पर्वत रखा है. इसकी चोटी पर से बड़ा रमणीय दृश्य देखा जा सकता है, बशर्ते आप कुर्सी लगाकर उस पर खड़े हों. डेन्मार्क की सबसे बड़ी झील इतनी विशाल है कि यदि आप उसमें डुबकी लगायें, तो उसकी पानी की सतह 12 इंच ऊंची उठ जायेगी.

     डेन्मार्क कृषिप्रधान देश है. किसी भी डेनिश कृषिक्षेत्र में आपको कृषक और उसकी पत्नी के अलावा यह पशुधन दिखाई देगा एक ट्रैक्टर, 12 गायें, 24 सूअर, 48 मुर्गे-मुर्गियां. खेती पूरी तरह यंत्रों द्वारा होती है. पहले तो किसान गाय के थनों से लटककर दूध दुहा करता था और गाय उछलती-भागती रहती थी, जब कि अब दुहने का सारा काम मशीनों से होता है.

     डेनमार्क में आपको जो रमणीकतम दृश्य देखने को मिलेगा, वह है उसके गांव. इनमें छः सात छप्पर वाले मकान, सारस का एक घोंसला, एक तलैया, एक चौपाल और उसके साथ खड़ा ध्वजस्तंभ, लाल छत वाला एक स्कूल, एक लोहाखाना और एक गिरजा होता है. गिरजे में एक पका-झुका बूढ़ा होता है, जो सूर्योदय और सर्यास्त के समय घंटा बजाया करता है.

     डेनिश लड़कियां ‘पिगर’ कहलाती हैं और दुनिया में सबसे सलोनी होती हैं.

     स्टाकहोम को ‘उत्तर का वेनिस’ या ‘उत्तर का पैरिस’ कहा जाता है, कोपनहागन ‘अनेक मीनारों का मगर’ और आस्लो ‘सुंदर दृश्यों का नगर’ के नाम से प्रसिद्ध हैं. पर्यटक यहां अनगिनत दर्शनीय चीजें देख सकते हैं, बशर्ते वे पहले किसी स्थानी आदमी से सलाह लेने की गलती न करें. अगर आप पूछने की गलती कर बैठे, तो पहले यही उत्तर मिलेगा- ‘अजी, यहां तो एक भी चीज ऐसी नहीं कि देखी जाये.’ अगर आप कह बैठें कि आपने भी यही सोचा था, तो फिर वह स्थानीय आदमी तब तक दम नहीं लेगा, जब तक आपको यह विश्वास न करा दे कि खुदा की बनायी समूची धरती पर कोई स्थान ऐसा नहीं जिसमें उसके शहर से बढ़कर मोहक दृश्य देखने को मिलते हों.

     स्कैंडिनेविया में यात्रा करने के कई उपाय हैं. तीव्रतम है एस.ए.एस. और मंदतम है अपने हाथों के बल चलना. डेन्मार्क में असंख्य रेलें, हैं जिन पर प्रायः मोटर-कोच चलती हैं, जिन्हें वहां रेल-बस कहा जाता है. सभी टेनों के प्रस्थान-काल समय सारिणियों में लिखे रहते हैं और हर स्टेशन पर लाउड-स्पीकरों से घोषणा की जाती रहती है कि कौन-सी ट्रेन कितनी ‘लेट’ है. इसमें आप 10-15 मिनिट तो जोड़ ही लीजिए.

     डेन्मार्क में दूरियां इतनी कम है कि भोजन-यान और शयन-यान तो कुछ ही मार्गों पर हैं और उनमें भी व्यर्थ ही है, क्योंकि अभी आपने एक झपकी भी नहीं ली होती या आधा खाना भी नहीं खाया होता कि आपकी मंजिल आ पहुंचती है.

     डेन्मार्क में घूमने-फिरने का सबसे लोकप्रिय साधन है साइकल. दो साल की उम्र में साइकल से आदमी का नाता जुड़ता है और मरने तक आदमी साइकल को आंख से ओझल नहीं होने देता. कोपनहागन में तो दफ्तर जाते व वहां से लौटते समय जिनकी साइकलों में पंक्चर हो जायें, उन्हें ले जाने के लिए ही ट्राली-बसें भी है. और तथाकथित ‘रश’ के घंटों में ट्रालियों में ऐसी भीड़ होती है कि केवल ड्राइवर ही उस पर चढ़ने की आशा कर सकता है.

     नार्वे में, जहां कि हम बता चुके है कि 12 लाख पर्वत है, यात्रा जरा कष्टसाध्य है. अगर आप रेल से यात्रा करें, तो दृश्यावली देखने में ज़रा कठिनाई होगी, क्योंकि आप लगभग सारे ही समय सुरंगें पार कर रहे होंगे. अन्यथा नार्वे की ट्रनें आरामदेह हैं और यकीन मानिये कि जब डेन और स्वीडिश लोग दावा करते हैं कि उन्होंने नार्वे की रेलगाड़ी के डिब्बों पर यह लिखा देखा है कि ‘32 मनुष्यों या छः घोड़ों के लिए,’ तो वे बिलकुल ईर्ष्यावश ऐसा कहते हैं. अगर सचमुच ऐसे कोई डिब्बें हो तो निश्चय ही उनमें इतनी अच्छी व्यवस्था होगी कि घोड़े उन्हें बड़ा आरामदेह पायेंगे.

     नार्वे में सबसे लोकप्रिय वाहन है मोटरकोच. और चूंकि अनेक स्थानों पर पहाड़ी सड़कें सचमुच मोटर-कोचों से ज्यादा चौड़ी हैं, सो वे सबसे सुनिश्चित यात्रा-साधन भी हैं. हां, अगर आप पेट के बल रेंगना ही पसंद करें, तो अलग बात है.

     सर्दियों में बर्फ के कारण तमाम रेलें और बसें ठप पड़ जाती हैं, तब आप स्की द्वारा यात्रा करते हैं. नार्वेवासी स्कीइंग के बड़े शौकीन हैं और बिना चोट खाये खूब स्कीइंग करते हैं. अगर किसी पहाड़ी की तलहटी में बर्फ में आपको टूटी बांह या मोच वाली टांग लिये कोई भलामानुस देखने को मिल जाये, तो यकीनन जानिये कि वह डेन्मार्कवासी होगा.

     स्वीडन में दूरियां बहुत बड़ी हैं, इस लिए प्रायः शयन-यान में यात्रा की जाती है. फलतः किसी भी स्वीडिश आदमी को इस का पता ही नहीं है कि उसका देश वास्तव में दिखता कैसा है! हां अगर उसके पड़दादा ने, जो रेलें शुरू होने से पहले जिया था, उसे बता रखा हो, तो और बात है. स्टाक होम की ट्रालियों में चढ़ना-उतरना एक सतत क्रिया है, अर्थात जब भी पीछे के दरवाजे से तीन यात्री चढ़ते हैं, तो आगे के दरवाजे से उतने ही आदमी धक्का खाकर बाहर निकल जाते हैं.

     प्रसंग उठा ही है तो यह भी कह दें कि स्वीडन यूरोप का सर्वाधिक मोटर-युक्त देश हैं. अधिकांश डेन और नार्वेजियन भी कारों की किस्तें चुका रहे हैं.

     स्कैंडिनेविया की मौसम-व्यवस्था ऐसी रची गयी है कि ग्रीष्म में गर्मी और शीतऋतु में ठंड रहती है. मगर सच-सच कहें तो बहुधा इससे उलटा भी होता है. वसंत ऋतु तीनों देशों में एक-सी सुहावनी होती है. डेन्मार्क में सदा ही बयार चलती रहती है, अक्सर इतनी मंद कि उसका आपको पता नहीं भी चलता.

     स्वीडन में एक ही साथ सबके सब मौसम देखने को मिल जाते हैं- दक्षिण में गर्मियां और उत्तर में सर्दियां. गर्मियों में वहां आपको यह चुनाव करने की पूरी छूट है कि आप घाटियों में 70 अंश की गर्मी में रहना पसंद करेंगे, या पहाड़ पर 24 फुट बर्फ में. सर्दियों में आप चुनाव कर सकते हैं कि आपको घाटियों में 24 फुट बर्फ में रहना है या पहाड़ों पर 24 फुट बर्फ में.

     स्कैंडिनेविया में जीव-जंतुओं की बहुतायत है. अपवाद है डेन्मार्क, वहां केवल कुत्ते, गायें और सूअर प्रसिद्ध हैं लिहाजा शिकारियों की हालत वहां अच्छी नहीं है. और कभी-कभी एक-आधा गाय पर वे निशाना लगा बैठते हैं और यह चीज उनके लिए बवाल बन जाती है, क्योंकि गाय वहां रक्षित प्राणी है बारहों मास. हालांकि स्कूलों में तो देश में मिलने वाले प्राणियों की लम्बी नामावली सिखायी जाती है. इनमें लोमड़ी, जंगली सूअर, खरगोश, बीवर और मूस आते हैं.

     नार्वे में सबसे लोकप्रिय प्राणी है मूस, जो इतने ऊंचे तक होते हैं कि दो मूस एक पर एक खड़े कर दिये जायें, तो उनकी ऊंचाई 24 फुट हो जायेगी. वे रहते तो पहाड़ों पर हैं, मगर सर्दियों में भोजन की तलाश में ओस्लों की सड़कों पर भी चले आते हैं. और हर रोज़ लंच में वही-का-वही भोजन खा-खाकर ऊबे हुए ओस्लो के नागरिक सदा ही उनके साथ अपना भोजन बांटकर खाने को तैयार रहते हैं.

     स्वीडन में सबसे लोकप्रिय प्राणी हैं रेनडियर और भालू. मगर भालू को तभी लोकप्रिय समझाना चाहिए, जब वह स्वयं ऐसा कहे.

     स्कैंडिनेवियाई लोग सच्चे प्रकृति-प्रेमी हैं. रविवार को उनके तमाम शहर एकदम निर्जन-निर्जीव हो जाते हैं. ओस्लो के लोग ब्लू बेरियां बीनने या स्कीइंग करने पहाड़ों पर चले जाते हैं. स्टाकहोम के नागरिक बिना कोई लक्ष्य निर्धारित किये ही शहर से निकल पड़ते हैं- शहर से जितनी तेज़ी से जितनी दूर निकल जायें, उतना ही अच्छा. कोपनहागन-वासी वनों में जा पहुंचते हैं. उनका बस एक ही उद्देश्य होता है- लेट जाना और अपने साथ गत्ते के डिब्बों में लाया हुआ खाना खाना.

     कुल मिलाकर भोजन का स्कैंडिनेवियनों के जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है, डेनों के जीवन में विशेषतः वे आपाधापी में निवाले निगलते हैं और बड़ी तेजी से खाते हैं, इस भय से कि कहीं अगला भोजन परोसा जाने तक वे इसे ख्तम ही न कर पाये हों. ऐसा न हो. सामान्यतया स्कैंडिनेवियाई लोग भोजन के साथ पानी ही पीते हैं. जब घर के लोगों के अलावा कोई खाने पर आया हो, सिर्फ तभी वे बीयर, श्नाप्स या लाल अंगूरी पीते हैं. इन अवसरों पर यह छाप डालने की पूरी-पूरी कोशिश की जाती है कि उनके यहां सदा ही भोजन के साथ बीयर श्नाप्स और लाल अंगूरी पी जाती है.

     केवल डेनिश महिलाएं भोजन के बाद मोटा सिगार पीने की जुर्रत करती हैं. नार्वें और स्वीडन की स्त्रियां धुआं नहीं बर्दाश्त कर सकतीं और इसे सांस्कृतिक दृष्टि से निम्न स्तर की चीज समझती हैं. स्कैंडिनेवियाई पुरुर्षों का तो दावा है कि ऊंची टैक्सदरों के कारण वे केवल पाइप ही पी सकते हैं. फिर भी उनकी अंदरी जेब में आप हमेशा एक सिगार पायेंगे.

     स्कैंडिनेवियाई लोगों को शराब की खास लत नहीं है. नार्वेवासी बीयर और श्नाप्स पीते है, डेन लोग श्नाप्स और बीयर पीते हैं, स्वीडन लोग बस पीते है. जब डेन तीन प्याले पी चुका है, गाना शूरू कर देता है, छः प्यालों के बाद वह धारा प्रवाह अंग्रेज़ी बोलने लगता है. नौ प्यालों के बाद वह और नहीं पीना चाहता. अगर आप बहुत आग्रह करें, तो वह बस एक प्याला और पीने को तैयार हो जायेगा. बारह प्याले पी चुकने के बाद वह आपको एक कोने में ले जायेगा और बताने लगेगा कि स्वीडन और नार्वे में लोग किस बुरी तरह पीते हैं.

     जब नार्वेवासी बारह प्याले खाली कर चुकता है, तो वह कुछ भी बताने लायक नहीं रह जाता -स्वीडनवासियों के बारे में भी नहीं. जब स्वीडनवासी तीन प्याले पी चुकेगा, आपको खाने की दावत दे बैठेगा, छः प्यालों के बाद वह आपको घरेलू नाम से बुलाने लगेगा और आपको अपने परिवार के सदस्यों में शामिल कर लेगा और अपना भाई कहेगा. बारहवीं प्याली खाली कर लेने के बाद वह रोने लगेगा,क्योंकि वह और बारह प्यालियां नहीं पी सकता.

     स्कैंडिनेवियनों की एक दिलचस्प प्रवृत्ति यह है कि जब तक कोई विशेष प्रसंग न हो, वे पाते नहीं है. और विशेष प्रसंगों में से कुछ का उल्लेख हम यहां कर दें-अगर गर्मी हो, अगर सर्दी हो, अगर आप अच्छे मूड में हों, अगर आप बेचैन हों या खराब मूड में हों, जब कोई बताये कि आप बहुत थके-मांदे दिखाई दे रहे हैं और आपको चुस्ती लाने की खातिर एक प्याली पीनी चाहिये, जब आपकी मर्जी हो आये, जब आपको लगे कि आपने बहुत वक्त से नहीं पिया, जब आप अभी-अभी पीकर हटे हों और एक प्याला और पीना चाहते हों. अन्यथा यह बात गांठ बांध लीजिए कि स्कैंडिनेवियनों का राष्ट्रीय पेय तो भूरा गुनगुना पानी है, जिसे वे काफी कहते है और जो स्वाद में गनगुने भूरे पानी जैसा ही होता है.

     स्कैंडिनेवियावासियों की संभाषण-प्रतिभा बहुत ही प्रौढ़ है. जब बोलने के लिए कोई भी विषय न रह जाये, तो मौसम अच्छा विषय है. आपको हमेशा उसकी बुराई करनी चाहिए. यह बताना वहां बहुत सामान्य समझा जाता है कि मौसम की स्थिति के कारण आपने पैंट्स के भीतर क्या-क्या कपड़े पहन रखे हैं.

     सर्दियों में तापमान 60 अंश से नीचे गया कि नहीं, स्कैंडिनेवियाई मर्द समूर की टोपियां पहन लेते हैं. इसलिए नहीं कि उन्हें ठंड लग रही होती है, बल्कि इसलिए कि इससे वे ज्यादा मर्दाने लगते हैं. स्कैंडिनेवियाई हर दम फैशन के पीछे चलते हैं. अगर दक्षिण अमरीका में इस समय ऊंचे क्रेप-सोल के जूते पहनने का फैशन है, तो स्कैंडिनेविया में भी वही फैशन हो जायेगा, भले ही दक्षिण अमरीकी अपना कद-दो-एक इंच बढ़ाने के लिए क्रेप-सोल का जूता पहन रहे हों. लम्बे से लम्बा स्वीडनवासी भी इस बारे में तनिक भी विचार नहीं करेगा. अगर न्यूयार्क द फैशन का आदेश है कि पीले सितारों वाली लाल टाई पहनी जाये, तो स्कैंडिनेविया में भी उसकी धूम मच जायेगी, भले वह आपके हुलिये पर फबे या नहीं. अगर पैरिस में स्त्रियों के ऐसे हैट शुरू हो गये हैं, जिन पर लाख के मुलम्मे वाले केले खोंसे हुए हैं, तो स्कैंडिनेवियाई पतियों को तब तक चैन नहीं पड़ेगी, जब तक वे अपनी पत्नियों को यह भयंकर हैट खरीद के लिए पैसे नहीं दे देंगे.

     स्कैंडिनेवियावासियों में स्वीडनवासी सहज ही सर्वाधिक सुवेशधारी होते हैं. वे तो सांझ का अखबार खरीदने जाना हो तो उसके लिए भी ईवनिंग सूट पहनकर निकलेंगे. नार्वेवासी और डेनों में यह बात नहीं है. वे तो सुराहीदार गर्दन वाले स्वेटर, लोफर-जैकेट और स्कीइंग के जूते पहने आपेरा में जा बैठने में भी नहीं झिझकते. यों कुल मिलाकर सभी स्कैंडिनेवियाई लोग बड़े साफ-सुथरे और सजे-संवरे रहते हैं. स्वीड लोग तो इस कदर टाठदार होते हैं कि नाई के यहां जाने के लिए भी घर से हजामत बनाकर ही निकलेंगे.

     स्कैंडिनेवियावासी पशुओं और बच्चों से बड़ा मधुर व्यवहार करते हैं- बशर्ते बच्चे पड़ोसी के न हों. वे बड़े ही सुशिक्षित होते हैं. कम-से-कम तीन कार्टून-कथाओं के ताजातर वाकयात की उन्हें खबर रहती है. स्कैंडिनेवियाई आदमी अपने टेलिविजन सेट के बिना जिंदा नहीं रह सकता. वह घंटे-दर-घंटे, रात-दर-रात उसके आगे डटा रहता है और वह भी केवल एक उद्देश्य से ताकि उन सड़े-बुसे कार्यक्रमों की अच्छी तरह आलोचना कर सके.

     स्कैंडिनेविया का युवक-वर्ग हर नयी चीज में बड़ी दिलचस्पी लेता है. दुनिया के किसी भी सभ्य-सुसंस्कृत कोने में किसी नये गायक का उदय हो और उसका उन्हें पता न लगे, यह असंभव है. और हर हफ्ते वे नवीनतम अमरीकी ‘हिट गाने कंठस्थ कर लेते हैं.’

     राजनीति में स्कैंडिनेवियाई बहुत रुचि लेते हैं. उनमें से हर कोई अपने देश के प्रधान मंत्री से अधिक अच्छी हुकूमत कर सकता है.

     सभी स्कैंडिनेवियाइयों की एक साझी खूबी है, उनकी शिष्टता. वे सदा ही औरतों को पहले ट्राली-बस में चढ़ने देंगे-अगर वे औरतें नौजवान हों और ऊंचे स्कर्ट और सुडौल टांगों वाली हों. प्रायः वे बूढ़ी औरतों के लिए अपनी सीट छोड़ देते हैं- अगर वे बैठे-बैठे उकता गये हो, यो उनके उतरने का स्थान आ गया हो. मगर स्कैंडिनेवियाई शिष्टाचार सबसे अधिक उभरकर तो तब देखने में आता है, जब दो आदमियों के सामने दो केक रखे हों और उनमें से एक छोटा और दूसरा बड़ा हो. दोनों ही ‘पहले आप, पहले आप’ कहते रहेंगे- इस आशा से कि जो भी पहले उठायेगा, शिष्टतावश छोटा केक ही उठायेगा.

     स्कैंडिनेवियाइयों का दूसरा बड़ा ही प्यारा गुण है- ईमानदारी. केवल दो किस्म की ठगी वहां सुनने में आती है- ट्राली में टिकट न लेना, जिसे वहां खेल समझा जाता है, और इन्कम टैक्स के फार्म भरते समय धोखाधड़ी, जो कि अनिवार्य आवश्यकता मानी जाती है.

     बड़े ही कुतुहली होते है स्कैंडिनेवियाई. जब तक वे अपने कपड़े नहीं बिगाड़ लेंगे, विश्वास नहीं करेंगे कि बेंच पर रंग गीला है. अगर आप किसी स्कैंडिनेवियाई के हाथ में बम थमाकर कहें कि इसे खोलने जाओगे तो जान गंवा बैठोगे, तो वह तब तक संतुष्ट न होगा, जब तक कि अपनी धज्जियां नहीं उड़वा लेगा.

     चिड़ियाघर में चिड़ियों के पिंजरे के सामने लिखा हो कि ‘खाने की कोई चीज पक्षियों को न दें’ और स्कैंडिनेवियाई के पास तुरंत पिंजरे में डालने के लिए कोई खाने की चीज न हो, तो घोर निराशा में डूब जायेगा. वह चिड़िया को खाने की चीज इसलिए नहीं देता कि वह उसे हानि पहुंचना चाहता है, बल्कि वह यह देखना चाहता है कि क्या होगा- क्या चिड़िया को हिचकियां आने लगेंगी, क्या उसका रंग बदल जायेंगा, या उसके पुछल्ले के पर झड़ने लग जायेंगे? और जब वह देखेगा कि इनमें से कुछ भी नहीं होता, उसे गहरी निराशा होगी.

     स्कैंडिनेवियाई बड़े रहमदिल व अतिथिपरायण होते हैं. बात-बात पर वे हाथ मिलाते है- मिलते समय, कुशल-क्षेम पूछते समय, नमस्ते या अलविदा कहते समय, भोजन के बाद. पार्टियों के अंत में, सौदा निपटाने के बाद. ‘धन्यवाद’ स्कैंडिनेविया में सर्वाधिक प्रयोग किया जाने वाला शब्द है. अगर दिन में पांच सौ बार भी आप ‘धन्यावाद’ कहें तो भी कोई नहीं कहेगा कि आपने अति कर दी.

     आपको और कहीं इतने झंडे देखने को नहीं मिलेंगे, जितने कि स्कैंडिनेविया में. कोई बहाना काफी है झंडा चढ़ाने के लिए परिवार में कोई जन्मदिन है तो झंडा चढ़ाया जाता है. अगर पड़ोसी के घर किसी का जन्मदिन है तो झंडा चढ़ाया जाता है. अगर घर पर मेहमान आने वाले हों तो झंडा चढ़ाया जाता है. जब मेहमान जाने लगें, तो झंडा चढ़ाया जाता है. छुट्टियों में झंडा चढ़ाया जाता है, रविवार को झंडा चढ़ाया जाता है, या सिर्फ इसलिए भी चढ़ाया जाता है कि बाकी सबने चढ़ाया हैं.

     शादी आदि बड़े उत्सवों पर एक झंडा काफी नहीं होता. सारा घर झंडों से सजा दिया जाता है, देरवाजे के बाहर झंडा लटकाया जाता है, खिड़कियों में लटकाया जाता है, दीवारों पर लटकाया जाता है, मेजों पर और केक पर लटकाया जाता है. राजा के जन्मदिन या राजपरिवार के उत्सवों के दिन लोग हाथ में झंडा लिये घूमेंगे, बटन-होल में और टोप पर झंडा लगाये घूमेंगे. ट्रालियों और टैक्सियों पर भी प्रसन्न हैं. अगर आपको झंडा चढ़ाने का और कोई कारण न मिले तो इसी बात पर झंडा चढ़ा दीजिये कि आप स्कैंडिनेवियाई हैं और इसकी आपको खुशी है.

(मार्च 1971)

 

1 comment for “हम और हमारा स्कैंडिनेविया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *