रसों का रोमांस

वे नौ थे. सबके सब रसीले. खट्टे, मीठे, चटपटे. जी हां, वे नवरस थे. सबके गुण अलग. स्वभाव अलग. चरित्र अलग. लेकिन पक्के दोस्त. जब भी मूड में आते और साथ मिल जाते, तो साहित्य का स्तर ऊपर उठा देते. ज़ाहिर था, अच्छे दोस्तों का मन करता है कि जीवन की व्यस्तताओं के बीच भी समय निकाल कर साथ मिल-बैठ लिया करें. इन सारे नौ रसों की बैठक जमाने की प्रिय जगह थी, मधुशाला. क्योंकि वहां उन्हें एक और रस मिलता था- अंगूर का रस. दो जाम अंगूर का रस अंदर जाने के बाद सारे रस खुल जाते थे. फिर, खूब हंसी मज़ाक होता. सुना है, एक बार सारे रस, अंगूर के रस की खुमारी में, गले में हाथ डाले हंसते-खिलखिलाते मधुशाला से बाहर निकले और सामने से जाते बच्चन जी से टकरा गये. कहा जाता है कि रसों से उस टक्कर के बाद ही बच्चन जी ने ‘मधुशाला’ लिखी थी. वैसे यह नशे में उड़ायी गप भी हो सकती है, क्योंकि बच्चन जी खुद मधुशाला में नहीं जाते थे. लेकिन, रसों से टकराये बिना ऐसी कविता की रचना सम्भव नहीं है.

वे नौ थे. सभी अपने आप में सम्पूर्ण. लेकिन इस संसार में ऐसा कौन है, जो वास्तव में सम्पूर्ण हो ? रसों में सबसे प्रखर, रौद्र रस के जीवन में एक बड़ी कमी थी– रोमांस की. रौद्र को भारी शिकायत थी, “जिस लड़की को देखो वह शृंगार के प्रति आकर्षित हो जाती है. मेरी ओर कोई ससुरी देखती तक नहीं.” मधुशाला के मुक्त माहौल में, इस बात को लेकर रौद्र की खूब खिंचाई की जाती. एक दिन हास्य ने तरस खा कर रौद्र को कारण समझाया, “कोई लड़की तुम्हारी ओर कैसे आकर्षित होगी? तुम्हारी नाक पर तो हमेशा गुस्सा रखा रहता है. कोई डांट खाने के लिए तुम्हारे नज़दीक थोड़े ही आएगी !” पर रौद्र बेचारा क्या करे ? क्रोध तो उसका स्थायी भाव है ! उसे कैसे छोड़ दे ? क्रोध को छोड़ देगा तो वह रौद्र नहीं रहेगा. रस नहीं रहेगा. रौद्र के सामने अस्तित्व का संकट था. रोमांस करे या अस्तित्व बचाये. अगर वह रस नहीं रहेगा तो साहित्य में अधूरापन आ जाएगा. ज़िंदगी में रोमांस ज्यादा ज़रूरी है या साहित्य ? बड़ी मुश्किल से मन मार कर, रौद्र ने रोमांस के बारे में सोचना बंद कर दिया. आप भले ही सोचना बंद कर दें, आपके दोस्त मज़ाक करना थोड़े ही बंद कर देंगे ! जब भी रोमांस को ले कर रौद्र का मज़ाक उड़ाया जाता तो सबसे ज्यादा ठहाके हास्य नहीं, शृंगार लगाता था. एक दिन रौद्र से बरदाश्त नहीं हुआ, “अबे, कमर मचकाऊ, ज्यादा मत हंस. अगर किसी दिन, किसी मुस्टंडे ने तेरी प्रेमिका को छेड़ दिया या उसे उठा कर ले गया तो मैं ही काम आऊंगा. तू तो बस रिरियाती आवाज़ में ‘बचाओ, बचाओ’ चिल्लाता रह जाएगा.” शृंगार के गुलाबी गालों का रंग उड़ गया.

रोमांस के मामले में वीर रस की किस्मत रौद्र से अच्छी थी. पर बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती. प्रेमिका मिलने में उसे बड़ी मुश्किल होती थी. उसके दो कारण थे- एक उसका चरित्र, दूसरा उसका नाम. उसके चरित्र के साथ दिक्कत यह थी कि वह छिछोरा नहीं हो सकता था. और, नाम के साथ परेशानी यह थी कि कई इलाकों में वीर का अर्थ भाई होता है. इसलिए लड़कियां दुविधा में पड़ जातीं– उससे नैन लड़ाएं या राखी बांधें. दुविधा की मारी लड़कियां अकसर उसे राखी बांध देतीं.

भयानक रस को रोमांस में कोई रुचि नहीं थी. दूसरे रस उसे उकसाते, “अरे, रोमांस में बड़ा आनंद है. सुंदर लड़की मोहित हो कर तुम्हें देखे, तो उस नज़र में अवर्णनीय आनंद होता है. सुंदरियों की कद्र करना सीखो.”  ऐसा नहीं था कि भयानक सुंदरियों के नज़दीक नहीं जाना चाहता था. बिलकुल जाना चाहता था. लेकिन उन्हें फुसलाने नहीं, उन्हें डराने. सुंदर लड़की की भय से फटी आंखें देख कर भयानक को जो आनंद मिलता था, वह इतिहास में किसी प्रेमी को अपनी प्रेमिका की आखों में झांक कर नहीं मिला होगा.

रोमांस में सबसे असफल शायद शांत रस रहा है. वह हर स्थिति में शांत बैठा रहता है. सुंदर लड़की आसपास मंडराये तो भी नज़र उठा कर नहीं देखता. अगर लड़की खुद पहल करे और पास बैठ जाए, तो वह अनुलोम-विलोम करने लगता है. दूसरे रसों को चिंता हुई कि शायद कुछ गड़बड़ है. उन्होंने शांत को सलाह दी कि उसे किसी मुच्छड़ हकीम से मिलना चाहिए. दिल्ली के कई हकीमों के पते भी उसे दिये गये. लेकिन शांत रस, शांत बैठा रहा. वह अपनी जगह से खिसका तक नहीं. इसीलिए, अगर कोई लड़की उसके पास आती भी है, तो थोड़ी देर में खुद ही खिसक जाती है.

रोमांस में, अद्भुत रस की असफलता तो अद्भुत ही कही जाएगी. वह रोमांस करना तो चाहता है, लेकिन एक शर्त पर. रोमांस करने के लिए उसे अद्भुत लड़की चाहिए. संसार में अद्भुत लड़कियां आसानी से नहीं मिलतीं. जो अद्भुत लड़कियां मिलती भी हैं, उनकी प्राथमिकताएं अद्भुत होती हैं. अकसर रोमांस उनकी प्राथमिकता नहीं होती. वे जीवन में कुछ अद्भुत करना चाहती हैं. अद्भुत लड़कियों के विचार में, रोमांस तो कोई भी कर सकता है.

शृंगार के बाद, रोमांस में जिसका सिक्का सबसे ज्यादा चलता है, वह है करुण रस. करुणा सबको प्रभावित करती है. लड़कियां पिघल जाती हैं. द्रवित हो जाती हैं. लेकिन, करुण रस के रोमांस में एक विचित्र समस्या है. जो भी लड़की उसके नज़दीक आती है, वह दुखी होती है. उसका दुख देख कर करुण रोता है. बार-बार रोता है. लगातार रोता है. अब, दुनिया में ऐसी कौन-सी लड़की होगी, जो लगातार रोने वाले से प्रेम करेगी ? इसलिए प्रेम शुरू तो होता है, पर जल्दी ही आंसुओं में बह जाता है. दूसरे रसों का खयाल है कि करुण उर्दू से हिंदी में आया है. क्योंकि उर्दू के रोमांस में रोना-तड़पना बहुत होता है.

हास्य के साथ रोमांस का बड़ा आशावादी सम्बंध है. तभी तो वह अत्यंत लोकप्रिय कहावत बनी- हंसी सो फंसी ! इससे लोग अंदाज़ा लगाते हैं कि हास्य रोमांस में बहुत सफल होता है. ऐसा होता भी है. लेकिन, उस रोमांस का बौद्धिक स्तर बहुत ऊंचा नहीं होता. क्योंकि, ‘हंसी सो फंसी’ किस्म की लड़कियों की रुचि का स्तर, मंचीय चुटकुलों पर ठहाके लगाने वाले श्रोताओं जैसा होता है. ऐसी लड़की किसीसे भी रोमांस कर सकती है.

रोमांस के मामले में, रसों में सबसे दुखी है – वीभत्स. कोई उसे घास नहीं डालता. उसका चक्कर तो चलना शुरू होने से पहले ही बंद हो जाता है. नवरस क्लब का सदस्य होने के बावजूद, बाकी आठ रस उससे इस बारे में बात नहीं करते. कई बार घोर निराशा के पलों में वह सोचता है, “यह जीना भी कोई जीना है, लल्लू!” उसने आत्महत्या करने के बारे में भी सोचा. पर तभी उसे साहित्य का खयाल आ गया- नौ में से आठ रस रह जाएंगे, तो साहित्य का क्या होगा ? एक दिन करुण रस से उसका दुख देखा नहीं गया. उसने बड़ी सहानुभूति से वीभत्स को सलाह दी, “कभी-कभी नहा लिया करो. तो, शायद कुछ काम बन जाए.” वीभत्स को इतना बुरा लगा कि बहुत दिन तक उसने करुण से बात नहीं की. अंगूर के रस के कई जाम पीने के बाद भी नहीं.

शृंगार को रसों का राजा माना गया है. उसका एक ही कारण है – रोमांस में उसकी सफलता ! उसके पास सफलता के कई साधन हैं. जबान पर मीठे बोल हैं. होठों पर मधुर मुस्कान है. एक हाथ में गुलाब का फूल है. दूसरे हाथ में हीरे की अंगूठी है. जेब में पहले बिहारी के दोहे होते थे, अब उर्दू के शेर हैं. ये सारी चीज़ें सुंदरियों को आकर्षित करती हैं. तो, शृंगार की ओर सुंदरियां आकर्षित होती हैं और सुंदरियों की ओर सारा संसार. ऐसे में रसों का राजा शृंगार नहीं तो और कौन होता!

तो मित्रो, यह है रसों की रोमांस कथा. रस जो साहित्य का आधार हैं. और, साहित्य क्या है ? रसों का रोमांस ही तो है !

– यज्ञ शर्मा

(January 13)

1 comment for “रसों का रोमांस

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