मैं टिप नहीं लेता

   ♦    ग्रिगरी गोरिन     

      मैंने हाथ ऊंचा किया. टैक्सी थम गयी.

     ‘गुडमार्निंग,’ मैंने ड्राइवर से कहा- ‘माफ करना, मुझे ज्यदा दूर नहीं जाना है, यहीं सैमोटेक्नाया चौक तक… मगर मैं ज़रा जल्दी में हूं…’

     ‘चाहे कहीं भी चलिए. तशरीफ रखिए अंदर.’ वह बोला.

     पांच मिनिट बाद हम रुके. मीटर उनचास कोपेक दिखा रहा था. मैंने पचास कोपेक का सिक्का जेब से निकालर उसकी ओर बढ़ाया.

     ‘मुझे अफसोस है, मेरे पास एक कोपेक नहीं है.’ ड्राइवर ने माफी-सी मांगते हुए कहा.

  ‘कोई बात नहीं.’ मैं मुस्कराया.

     ‘ना-ना,’ ड्राइवर ने प्रतिवाद किया- ‘यह कैसे हो सकता है. मैं कभी टिप नहीं लेता जी!’ ‘बड़ी खुशी हुई यह सुनकर. मगर अब क्या किया जाए?’ मैं मुस्कराया. ‘यहीं नुक्कड़ के उस ओर सिगरेट वाले की दुकान है. वहां रेजगारी मिल जायेगी.’ ड्राइवर बोला.

     मगर मेरी किस्मत देखिए कि वहां बायीं ओर ‘टर्न’ लेना मना था और हम दायें मुड़ गये. तब हमें पता चला कि उस पर तो ‘वन-वे’ है. सो जब हम अंततः सिगरेट वाले की दुकान पर पहुंचे, तो दुकान खाने की छुट्टी के लिए बंद हो चुकी थी. मीटर अभ सत्तान्बे कोपेक दिखा रहा था.

     ‘रेजगारी नहीं है,’ ड्राइवर लजाते हुए कह रहा था- ‘और मैं टिप लेता नहीं.’‘ठीक है तो मुझे इतनी दूर ले चलो कि पूरा एक रूबल हो जाये.’

     हम तीस गज और आगे गये और मीटर ठीक एक रूबल दिखाने लगा.‘रोको! मैं यहां उतर जाऊंगा.’ मैं चिल्लाया.

     ‘माफ कीजिये, यहां टैक्सी नहीं रोकी जा सकती. देखते नहीं, वह साइन बोर्ड.’ ड्राइवर कह रहा था.

     ‘तो मीटर बंद कर दो.’ ‘वह तो नियम के विरुद्ध है,’ ड्राइवर ने बताया- ‘जब सवारी भीतर हो, तो मीटर चालू ही रखना पड़ता है.’

     जब हम ऐसी जगह पहुंचे, जहां टैक्सी रोकी जा सकती थी, तो मीटर में एक रूबल और बीस कोपेक चढ़ गये थे.

     मेरे मुंह से आह निकल गयी.

     ‘परेशान मत होइये,’ ड्राइवर ने मुझे ढाढ़स बंधाया- ‘कोई रास्ता हम निकाल ही लेंगे. कीव रेल्वे स्टेशन के पास एक डाकखाने का सेविंग बैंक है. वहां मेरी एक दोस्त काम करती है. वह हमें रेजगारी दे देगी.’

     कार आगे चल पड़ी. मगर किस्मत से कीव रेल्वे स्टेशन का सेविंग बैंक बंद था- खाने की छुट्टी थी. हम कर्स्क स्टेशन की ओर दौड़े. मेरी संगत के लिए ड्राइवर ने दो सवारियां और बैठा लीं. कर्स्क स्टेशन में किस्मत ने साथ दिया. वहां का सेविंग बैंक तो बंद था, मगर मीटर में ठीक तीन रूबल दिख रहे थे. मैंने ड्राइवर के हाथ में तीन रूबल का नोट थमाया. उसने उसे अपने बुटुए में ठूसा और मीटर नीचे कर दिया.

     ‘मुझे बड़ा अफसोस है कि आज आपके साथ ऐसा हुआ.’ वह बोला- ‘मगर मैं सवारियों से कभी एक भी कोपेक टिप नहीं लेता हूं जी.’

     ‘यह तो बड़ी अच्छी बात है,’ मैंने कहा- ‘मगर मैं सैमोटोक्नाया चौक कैसे पहुंचूंगा अब?’

     ‘मैं आपको वहां पहुंचा देता हूं जी,’ टैक्सी वाला मीटर फिर चालू करता हुआ बोला. पांच मिनिट में हम सैमोटोक्नाया चौक पहुंच गये. मीटर ठीक उनचास कोपेक दिखा रहा था.

(मार्च 1971)

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