सौ साल पहले एक यज्ञ शुरू हुआ था- एक सपने को पूरा करने के लिए. सपना, अपने देश को अपनी शिक्षा देने का; यज्ञ भारतीय अस्मिता की पहचान को सुरक्षित रखने के लिए. यह सपना महामना मदनमोहन मालवीय का था जो आज बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के रूप में हमारे सामने है. इस सपने को पूरा करने की प्रेरणा उन्हें नालंदा और तक्षशिला जैसे शिक्षा केंद्रों से मिली थी, जहां शिक्षा भी दी जाती थी और चरित्र-निर्माण भी होता था. यही चरित्र-निर्माण मालवीयजी का एक सपना था. वे कहते थे, ‘चरित्र मानव-स्वभाव का सर्वश्रेष्ठ रुप है. किसी भी देश की ताकत, उद्योग और सभ्यता… सब व्यक्तिगत चरित्र पर निर्भर करते हैं… प्रकृति के न्यायपूर्ण संतुलन में व्यक्तियों, राष्ट्रों और जातियों को उतना ही मिलता है जितने के वे योग्य होते हैं.’ मालवीयजी देश की युवा पीढ़ी को उस योग्य बनाना चाहते थे कि उसे अधिकतम मिल सके. यह सही है कि तब उनकी कल्पना में राष्ट्र के हिंदुओं को प्राथमिकता देने की बात भी थी, पर सही यह भी है कि कल्पना जब साकार हुई तो उसमें विश्वविद्यालय के नाम के साथ ‘हिंदू’ एक शब्द मात्र बन कर रह गया था- मूल उद्देश्य देश को शिक्षित और चरित्रवान बनाना ही था.
कुलपति उवाच
के.एम. मुनशी
अध्यक्षीय
सुरेंद्रलाल जी. मेहता
पहली सीढ़ी
रेजिनो पेट्रोसो
आवरण-कथा
सम्पादकीय
अच्युतानंद मिश्र
मेरे विश्वविद्यालय के वे दिन… वे लोग
डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी
रामबहादुर राय
रमेश ओझा
‘स्वराज अपने पुरुषार्थ से ही मिलेगा’
महात्मा गांधी
कृष्ण कुमार
सवाल सोचने की क्षमता और आज़ादी का
प्रदीप भार्गव
सुखदेव थोराट
व्यंग्य
शरद जोशी
दद्दू मोरे, मैं नहीं पुरुस्कार ठुकरायो
लक्ष्मेंद्र चोपड़ा
सूर्यबाला
शंकर पुणतांबेकर
नोबेल कथा
इवान बुनिन
धारावाहिक उपन्यास – 2
नरेंद्र कोहली
शब्द-सम्पदा
विद्यानिवास मिश्र
आलेख
समष्टि कामना की सामूहिक अभिव्यक्ति
लक्ष्मीकांत वर्मा
सुदर्शना द्विवेदी
उड़ीसा की राजकीय मछली – महानदी महासीर
डॉ. परशुराम शुक्ल
अमृता प्रीतम
‘मधुशाला’ का पहला सार्वजनिक पाठ बीएचयू में हुआ था
नरेंद्र शर्मा
डॉ. उषा मंत्री
सुरेंद्रलाल जी. मेहता
कथा
दामोदर खड़से
ज्ञानदेव मुकेश
कविताएं
चकबस्त
काशी हिंदू विश्वविद्यालय का कुलगीत
डॉ. शांति स्वरूप भटनागर
उद्भ्रांत
सुदाम राठोड़
निदा फाज़ली
केशव शरण
समाचार
संस्कृति समाचार