कविता
मेरी दीवार पर फैली बेल
उगती दूब का हरापन
आंगन में फैली
हरसिंगार की खुशबू
सब मिलकर
मेरे घर में
वसंत होने का दावा करने लगते हैं.
पर-
फैली खुशबू
उगती घास
और सरसों के पीले फूल
मेरे वसंत की सार्थकता नहीं हैं.
जिस दिन सुबह-
मेरी मुंड़ेर पर बैठी गौरैया
चहकती है
जिस दोपहर
मेरे आंगन में धूप बिखरती है
और जिस शाम-
मुझे तुम्हारी हथेलियों का
दबाव महसूस होता है
वही दिन मेरा वसंत होता है.
फरवरी 2016