जीवन रसमय बना रहे

भरत मुनि के रस-सिद्धांत अथवा मम्मट द्वारा की गयी रसों की व्यवस्था-व्याख्या को हम जीवन के लिए बोझिल मानकर भले ही नकार दें, पर रस को जीवन से निष्कासित करके जीवन को पूरी तरह समझा नहीं जा सकता. रस और जीवन के सम्बंधों को समझने के लिए यह कतई आवश्यक नहीं है कि हम रसों की सैद्धांतिक व्याख्या से परिचित हों. रस वस्तुतः अनुभव करने की चीज़ है. उसकी अनुभूति ही हमें जीवन को, स्थितियों को, भावों को समझने के काबिल बनाती है. इस नववर्षांक में हम इस समझ को जीने की एक कोशिश कर रहे हैं.

कहानियों के माध्यम से रसों को समझने-समझाने की बात जब विद्वानों से की गयी तो अधिकांश ने थोड़ा आश्चर्य व्यक्त किया था– पर सुखद आश्चर्य था. फिर सबने लिखा भी. फल जो सामने आया उसका सार यह निकला कि कहानियों के माध्यम से रसों को समझने की इस प्रक्रिया में कहानियों को समझने की एक और दृष्टि मिल गयी है. आशा है, नवनीत के पाठकों को भी इस दृष्टि का अहसास होगा.

लगभग सभी कहानियां जानी-पहचानी हैं. ये और ऐसी कहानियां जब-जब पढ़ी जाती हैं, कुछ नया सुख दे जाती हैं. नववर्ष के उपलक्ष्य में हम अपने पाठकों को यही सुख भेंट करना चाहते हैं. जीवन रसमय बना रहे; सुख की जो भी परिभाषा हमारे मन में हो उसे हम महसूसें; जीने की एक नयी उमंग हमारे भीतर जागे, यही कामना है.

January 2013

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