आस्था – हरमन हेस्से (पहली सीढ़ी)

।।  नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः।।

कूड़ाकर्कट, अस्थियों, कंकालों, ताकतों और नयी खुदी

कब्रों की मिट्टी के ढेरदूर तक फैले हुए

इस तरह यह सृष्टि समाप्त हो रही
और समाप्त हो रहा है मेरा यह जीवन भी!

और मैं चाहता हूं जी खोलकर रो लूं और

तटस्थ होकर बैठ जाऊं

किंतु यह जो भीतर एक अदम्य दृढ़ता है

वह बैठने नहीं देती

तन कर खड़े हो जाने और जूझ पड़ने की दृढ़ता

हृदय की गहरी, बहुत गहरी पर्तों में छिपा विद्रोह

और फिर मेरी यह आस्था; जो मुझे

आज इस तरह बेचैन बना रही है

वह एक दिन, एक ज्योति में रूपांतरित

होकर रहेगी

(जर्मन कवि)

मई 2016

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