♦ विश्वप्रकाश
अनादि काल से गेहूं मानव-जाति के बहुत बड़े भाग के भोजन का आधार रहा है. प्रमाण मिलते हैं कि प्रागैतिहासिक युग में भी उबले हुए गेंहू का प्रयोग खाने के लिए होता था. बाद में मोटे पिसे हुए गेंहू को पानी में धोलकर गाढ़े द्रव्य के रूप में खाये जाने का प्रमाण भी मिलता है.
ईसा पूर्व 15,000-10,000 में पश्चिम एशिया के देशों में गेहूं के जले हुए दाने भी प्राप्त हुए हैं. तुर्की, ईराक और मिश्र में खुदाई में प्राप्त गेहूं के दानों की आयु पुरातत्त्ववेत्ताओं ने लगभग 6,000 वर्ष ई. पूर्व की आंकी है. रूप के दक्षिणी भाग यूक्रेन में लगभग 4,000 वर्ष ई. पूर्व के गेहुं के दाने मिले हैं. मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त लगभग 3,000 वर्ष ई.पूर्व के जले हुए दाने कलकत्ता के भारतीय संग्रहालय में रखे हुए हैं.
परंतु हमारा प्रमुख अन्न गेहूं- ट्रिटीकरम एस्टीवम- प्रकृति की सीधी देन नहीं है और न ही इस रूप में यह अति प्राचीन काल में पाया जाता था. प्राकृतिक संस्करण की क्रिया से यह पाषाण युग में पैदा हुआ और इसे तीन रूप में पाने में सहयोग दिया इसके तीन निकट सम्बंधी पौधों ने.
इनमें सबसे पहला था प्राचीन गेंहू का पौधा ट्रिटीकम मोनोकोकम, जो अब भी एक घास के रूप में कहीं-कहीं पाया जाता है. प्रकृति में इस पौधे का ‘एजीलोप्म स्पेलटाइड’ नामक घास से संकरण हुआ. उस संकरण से पैदा पौधे में एजीलोप्स और ट्रिटीकम दोनों के गुण थे. इसी बीच एक तीसरे निकट सम्बंधी ने भी संकरण में भाग लिया जो ‘एजीलोप्स स्क्वेरोसा’ कहलाता है. इन दोनों के मेल से बने ट्रिटिकम एस्टीवम और उससे सम्बंधित अन्य गेहूं. प्रकृति के इस क्रम में लगभग 2,000 से 2,500 वर्ष लगे.
ट्रिटीकम मोनोकोकम और एजीलोप्स स्पेलटाइड नामक घास का संकरण पुराने पाषाण-युग के अंतिम तथा नवपाषाण-युग के प्रारम्भिक चरणों में लगभग 11,000 वर्ष ई.पूर्व में आदि मानव ने देखा होगा. इस संकरण से प्राप्त पौधे का दो-ढाई हजार वर्ष बाद लगभग 9,000-8,500 वर्ष ई. पूर्व प्रकृति-द्वारा एजीलोप्स स्क्वेरोसा से संकरण हुआ होगा. वह नवपाषाण युग का मध्यकाल था, तब आदि मानव घिसकर नुकीले बनाये गये पत्थरों से जंगली जानवरों का शिकार किया करता था. इसी युग के अंतिम चरन में प्राकृतिक पौधों के प्रति मानव में आकर्षण जागा और खेती में उसकी रुचि उत्पन्न हुई. तभी लगभग 7,500 वर्ष ई. पूर्व ट्रिटीकम एस्टीवम का जन्म हुआ होगा.
वैज्ञानिकों ने कृत्रिम संकरण की विधि द्वारा ट्रिटीकम एस्टीवम के एक निकट सम्बंधी ट्रिटीकम स्पेल्टा की सृष्टि करके सिद्ध कर दिया है कि उढपर बताये गये अनुमान निराधार नहीं, बल्कि सत्य हैं.
लगभग 3,000 वर्ष ई. पूर्व, जब मिश्र के शासक शक्ति बटोर रहे थे, नील नदी के किनारे पिरामिडों का निर्माण हो गया था और सिंधु-घाटी की सभ्यता अपने चरम-बिंदु को छूकर अंतिम चरण में थी, तभी हिंदूकुश में ट्रिटीकम एस्टीवम के एक निकट सम्बंधी ट्रिटीकम स्फैरोकोकम का जन्म हुआ. हड़प्पा और मोहनजोदड़ों में यही गेहूं बोया और खाया जाता था.
अनुमान है कि ट्रिटीकम और मोनोकोकम या इसके अन्य जंगली सम्बंधियों का जन्म एशिया माइनर और सीरिया में हुआ. भूमध्यसागर के समीपवर्ती प्रदेश तथा इथियोपिया के निकटवर्ती भाग में एजीलोप्स स्पेलटाइड और ट्रिटीकम मोनोकोकम का संकरण हुआ और वहीं पर वह गेहूं पैदा हुआ, जो आजकल अधिकतर खाये जाने वाले गेहूं और आदि गेहूं के बीच की कड़ी बना. यह गेहूं और इसके निकट सम्बंधी (जैसे, ट्रिटीकम ड्यूरम) आजकल भी भारत के मध्यवर्ती प्रांतों में उगाया जाता है. ट्रिटीकम एस्टीवम या अफगानिस्तान के समीपवर्ती भाग में लगभग 7,500 वर्ष ई. पूर्व हुआ. लगभग सम्पूर्ण उत्तर तथा मध्य भारत में इसकी खेती होती है और दुनिया में यही गेहूं सबसे अधिक उगाया और खाया जाता है.
गेहूं का पौधा वनस्पति-जगत का सबसे अधिक सहनशक्ति-सम्पन्न पौधा है. संसार के अधिक गेहूं पैदा करने वाले क्षेत्र समशीतोष्ण जलवायु वाले हैं. किंतु यह उष्ण जलवायु वाले भूमध्य रेखावर्ती प्रदेशों और प्रायः बर्फ से आच्छादित रहने वाले ध्रुव के समीप अंटार्कटिक क्षेत्र में भी उगाया जाता है. मृत्युसागर के समीप समुद्रतल से निचले भागों में तथा केलिफोर्निया की इंपीरियल घाटी में और तिब्बत में पर्वतों की 14000-15000 फुट की ऊंचाई पर भी इसकी खेती होती है. उत्तरी रूस और कनाडा जैसे ठंडे प्रदेशों में जमीन में बोये जाने के बाद गेहूं बर्फ के नीचे लगभग दो माह तक दबा रहता है और बर्फ पिघलने के बाद वसंत के आगमन पर उसमें बालियां निकलती हैं. इन देशों में अक्सर गेहूं की दो फस्लें उगायी जाती हैं- एक शीतकाल में और दूसरी ग्रीष्म में.
उत्तर भारत में उगाया जाने वाला गेहूं ट्रिटीकम-एस्टीवम है. मध्य भारत तथा तटवर्ती कुछ भागों में एस्टीवम के साथ लगभग 10 प्रतिशत ट्रिटीकम ड्यूरम भी उगाया जाता है. दक्षिणी तटवर्ती भाग और नीलगिरि की चोटी पर ट्रिटीकम डाइकोकम नामक गेहूं उगाया जाता है. यहां पर भी गेहूं की दो फस्लें उगायी जाती हैं.
दुनिया की 35 प्रतिशत जनसंख्या का मुख्य भोजन गेहूं ही है. संसार को भोजन पदार्थों से मिलने वाली कुछ कैलोरी शक्ति का 20 प्रतिशत गेहूं से प्राप्त होता है. इसके मुख्य पोषक तत्त्व हैं- प्रोटीन, विटामिन तथा खनिज पदार्थ. विभिन्न गेहूंओं में 12 से 20 प्रतिशत तक प्रोटीन होता है.
गेहूं के विकास के साथ जुड़ी हैं पुरातन युग से अब तक की विभिन्न सभ्यताएं. बैबीलोनिया, रोम और मिस्र के साम्राज्यों में गेहूं के प्रमुख खाद्यान्न होने के प्रमाण मिलते हैं. आजकल भी संयुक्त राज्य अमरीका, कनाडा और आस्टेलिया का गेहूं आधी दुनिया का पेट भरता है.
(मई 2071)