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मनुष्य के बौद्धिक विकास का शंखनाद

♦  प्रेम जनमेजय   > भा रतीय समाज में बाज़ारवाद ने चाहे पिछले दस-पंद्रह वर्ष में अपनी ‘सशक्त’ उपस्थिति दर्ज करायी हो परंतु हिंदी साहित्य में तभी से उपस्थित है जब यह देश परतंत्र था. तब हम अंग्रेज़ी राज्य के तंत्र…