चिट्ठी नाम की ‘चीज़’ हमारे हाथों से फिसलती जा रही है- ठीक वैसे ही जैसे रेत हाथों की उंगलियों से फिसल जाती है. पता ही नहीं चलता कब मुट्ठी खाली हो जाती है. संचार-क्रांति के इस युग में चिट्ठियां बीते…
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सम्पादकों का गीत
महान लेखक से लेख न प्राप्त होने पर ऐसा नहीं है कि सिर्फ सम्पादक ही लेखकों को तरसाते रहते हैं. सम्पादक भी बड़े बेचारे होते हैं. तरसते रहते हैं अच्छी रचनाओं के लिए. चिरौरी भी करते हैं लेखकों की. फिर…
कुछ वर्गवाद
♦ कुट्टिचातन > वैज्ञानिकों, दार्शनिकों, मनीषियों और वी. पी. से माल भेजने वालों सभी ने अपने-अपने ढंग से मानव-जाति का वर्गीकरण किया और अपने-अपने स्थान पर, अपनी-अपनी सीमाओं के अंदर, उनके बनाये हुए वर्ग सार्थक भी हो सकते हैं. विज्ञान…