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हम क्यों त्योहार विमुख हैं 

♦   गोपाल चतुर्वेदी    > किसी उत्सव प्रिय देश में त्योहार विमुख होना, बिना किसी कानूनी हिफाजत के कट्टर धार्मिक मुल्क में अल्पसंख्यक रहने जैसा है. लोग आपको इंसानी चेहरे-मोहरे के बावजूद कोई अजूबा समझें. हमें आश्चर्य है. कुछ पढ़े-लिखे…

मार्च 2014

  जब हम कोई व्यंग्य पढ़ते हैं या सुनते हैं तो अनायास चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. हो सकता है इसीलिए व्यंग्य को हास्य से जोड़ दिया गया हो, और इसीलिए यह मान लिया गया हो कि व्यंग्य हास्य…