Tag: फागुन की धूप सरीखे धर्मवीर इलाहाबादी

फागुन की धूप सरीखे धर्मवीर इलाहाबादी

♦  पुष्पा भारती    > होली शब्द के उच्चारण मात्र से मन बचपन की यादों से जुड़ जाता है तब घर-घर में होली जलाई जाती, ढेर सारे पकवान बनते. सालभर की दुश्मनियां होली में होम करके दूसरे दिन सुबह से सारे…

मार्च 2014

  जब हम कोई व्यंग्य पढ़ते हैं या सुनते हैं तो अनायास चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. हो सकता है इसीलिए व्यंग्य को हास्य से जोड़ दिया गया हो, और इसीलिए यह मान लिया गया हो कि व्यंग्य हास्य…