शब्द-यात्रा ‘कुर्बान’ से बलिदान तक आनंद गहलोत पहली सीढ़ी एक अकेली एक चेतना हरीश भादानी आवरण-कथा अंधे-अंधेरे समय में नैतिक प्रतिज्ञाओं को बचाना है नंद चतुर्वेदी सज्जनों का मौन गज्यादा खतरनाक है न्यायमूर्ति चंद्रशेखर धर्माधिकारी उन्मादी नहीं जानते वे क्या कर…
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अगस्त 2008
शब्द-यात्रा ‘ऊपर’ और ‘अंतर’ में अंतर आनंद गहलोत पहली सीढ़ी हे प्रभु! रवींद्रनाथ ठाकुर आवरण-कथा आओ, आकाश को ऊंचा करें हमारे आसपास दिखनेवाली ऊंचाइयां सूर्यबाला जंगल की आग बुझानी है… ए.पी.जे. अब्दुल कलाम शब्द ही आकाश को ऊंचा उठाते हैं…
जून 2008
शब्द-यात्रा क्या खीर पक रही है ? आनंद गहलोत पहली सीढ़ी अमिय-रस आवरण-कथा पानी बिच मीन पियासी नंद चतुर्वेदी ऐसे चलता था समाज का खेल अनुपम मिश्र देश की जल-कुंडली पानी बचाय के ना रखब्या, तब ना हम लेबै सराध में…
अक्टूबर 2014
उजाले के प्रति आस्था और विश्वास का यह स्वर वस्तुतः जीवन के प्रति उस लगाव की प्रतिध्वनि है, जो सांसों को परिभाषित भी करता है, और परिमार्जित भी. रात जब बहुत लम्बी हो जाती है तो भोर के उजाले के…
अगस्त 2012
आज़ादी की लड़ाई के दौरान भारतमाता की जय का नारा लगाने वाले युवाओं से जवाहरलाल नेहरू ने एक बार पूछा था, यह भारतमाता है क्या? फिर स्वयं ही इसका उत्तर भी दिया था उन्होंने- इस देश की करोड़ों-करोड़ें जनता ही…