आवरण–कथा राष्ट्र, राष्ट्रीयता और राष्ट्रवाद–वर्तमान में विमर्श का एक प्रमुख विषय है. ‘राज्’ धातु में ‘ष्ट्रन्’ प्रत्यय के योग से ‘राष्ट्र’ शब्द की निष्पत्ति हुई है, जिसका अर्थ है– राज्य, देश, साम्राज्य, जनपद, प्रदेश, मंडल आदि. भारतीय संविधान की ‘उद्देशिका’…
Category: स्तंभ
एक राष्ट्र, एक संस्कृति – एम.जी. वैद्य
आवरण–कथा कभी–कभी कुछ बुरी लगने वाली बातों से कुछ अच्छा निकल आता है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय काण्ड भले ही दुर्भाग्यपूर्ण था, पर उससे एक बहस तो शुरू हुई कि राष्ट्र क्या होता है. भ्रम की जो स्थिति बनी है, उसका…
आइए, हम राष्ट्रवाद को त्यागें – ओशो
आवरण–कथा मनुष्यता की अस्सी प्रतिशत योग्यता युद्ध–कार्य में व्यय होती है. यदि यह योग्यता कृषि कार्य में लगती, बगीचों पर खर्च होती, फैक्टरियों में इसका उपयोग होता तो यह धरती स्वर्ग बन जाती. तुम्हारे पुरखे–गुरु आकाश में स्वर्ग के…
खुद ही को जलाती एक गर्म हवा… – रवीश कुमार
आवरण–कथा हमारा टीवी बीमार हो गया है. पूरी दुनिया में टीवी को टीबी हो गया है. हम सब बीमार हैं. मैं किसी दूसरे को बीमार बताकर खुद को डॉक्टर नहीं कह रहा. बीमार मैं भी हूं्. पहले हम बीमार हुए…
मानवनिष्ठ भारतीयता के पक्ष में – दादा धर्माधिकारी
आवरण–कथा इस देश में राष्ट्रीयता के मार्ग में तीन रुकावटें हैं. ये तीन बटमार, राहजन हैं. पहला है– सप्रदाय, दूसरा है– जाति, और तीसरी भाषा. सप्रदाय का जनक, उसका आद्य प्रवर्तक इस देश का मुसलमान है. हिंदू ने उसकी नकल…