Category: धारावाहिक

पुरोगामिनी (उपन्यास) भाग – 4

‘संसार के लोग दुख भुलाना जानते हैं. ‘समय’ उनके दुख को व्यतीत करा देता है; उनके पास दुख से ध्यान बंटाने के अनेक साधन हैं. मृत्यु का शोक सामयिक होता है.’ ‘मेरा मन किसी वस्तु से सुख नहीं पा सकेगा.…

पुरोगामिनी (उपन्यास) भाग – 3

आवास परिसर से बाहर होते ही सावित्री ने सत्यवान का हाथ पकड़ लिया, तब सत्यवान ने उसके कोमल हाथ को अपनी सुरक्षा में लेते हुए स्नेहिल स्वर में पूछा- ‘भयभीत हो रही हो?’ ‘हां.’ ‘मेरे रहते तुम्हें किस बात का…

पुरोगामिनी (उपन्यास) भाग – 2

सामने आये कठिन मोड़ पर उसके सम्मुख आ खड़ी हुईं एक सौम्य वृद्धा; लगा जैसे वे उसी की प्रतीक्षा में बैठी हों. संसार के दुखों, कष्टों और अवसादों को मिटाने के प्रयास में लगी इस करुणामयी ने अपना परिचय देते…

पुरोगामिनी (उपन्यास) – सुधा

  सावित्री की कथा मैंने सबसे पहले अपनी मातामही से सुनी थी; संयोगवश उनका अपना नाम भी था- सावित्री देवी! उस समय मेरी उम्र वही रही होगी जिसमें बच्चे दादी-नानी से कहानियां सुनते-सुनते सो जाते हैं. ऊंघती आंखों के सामने…

हेलन की आत्मकथा (भाग – 4)

  दैनिक नियम के अनुसार मैंने भोजनोपरांत यूनानी वनदेवता सटीरोस को जल अर्पित किया. महाराज मेरी श्रद्धा से परिचित थे. अतः उन्होंने कोई प्रश्न नहीं किया. वन विभागाध्यक्ष, आटविक को आदेश दिया गया कि सभी सहचरों तथा सैनिकों के भोजन…