Category: व्यंग्य

या इलाही ये माजरा क्या है?  –  सूर्यबाला

व्यंग्य बाहर कार का हॉर्न बजा और कुछ भद्र महिलाएं उतरकर अंदर आती दिखीं. मैंने स्वागत में हाथ जोड़े और पूछा- कहिये कैसे आयीं? उन्होंने लगभग एक साथ उत्तर दिया- हम अपना स्त्राr-विमर्श करवाने आयी हैं. मैं बुरी तरह चकरायी-…

दद्दू मोरे, मैं नहीं पुरुस्कार ठुकरायो  –  लक्ष्मेंद्र चोपड़ा

व्यंग्य अगड़ों की दौड़ में शामिल होने के लिए लालायित उस प्रदेश के पिछड़े कस्बे के आसमान पर सूरज चढ़े देर हो चुकी थी. कविता की भाषा में कहें तो ढेरों काली-भूरी चिड़ियां चहचहा कर थक चुकीं थीं. रही रामदुलारी…

कितना विश्व, कैसा विद्यालय  –  शरद जोशी

व्यंग्य वर्ष 2016 स्वर्गीय शरद जोशी की 85वीं सालगिरह का वर्ष है. वे आज होते तो मुस्कराते हुए अवश्य कहते, देखो, मैं अभी भी सार्थक लिख रहा हूं. यह अपने आप में कम महत्त्वपूर्ण नहीं है कि अर्सा पहले जो…

ड्राइंगरूम में मनीप्लांट – शरद जोशी

व्यंग्य   आज मनीप्लांट की डाल गमले में बोयी है. बहुत दिन से कह रही थी कि ड्राइंगरूम में मनीप्लांट लगाना है. आज लग गया है. वह खुश है. हम अपने अगले कमरे को ड्राइंगरूम कहते हैं. एक तखत बिछा…

क्या-क्या गुम नहीं हो रहा है? – गोपाल चतुर्वेदी

व्यंग्य   हमारी मानसिकता भी अजीब है. छोटी चीज़ें खोयें तो हम आसमान सिर पर उठा लेते हैं. वहीं कुछ बड़ा खो जाये तो अहसास तक नहीं होता है. कल ही हमने उसका त्रासद नज़ारा देखा. हमारे पड़ोसी वर्मा जी…