Category: स्तंभ

सुनो खदीजा! सुनो द्रौपदी!  – अमृता प्रीतम

नारी-विमर्श एक सफेद कागज़ है, जिस पर कुछ काले अक्षर खामोश से पड़े हैं. और फिर मेरे देखते-देखते उनमें कुछ हरकत आती है, कुछ कंपन-सा आता है. देखती हूं- वे अक्षर फिर आहिस्ता-आहिस्ता रेंगते हुए मेरी उन उंगलियों पर सरकने…

ताकि सोच के जाले स़ाफ हों  –  सुखदेव थोराट

आवरण-कथा केंद्र सरकार नयी शैक्षणिक नीति बना रही है. यह अच्छी बात है, लेकिन ज़रूरी है कि इससे पहले शिक्षा को लेकर जो कदम उठाये गये थे, उनकी विवेचना हो. 11वीं पंचवर्षीय योजना में 2006 से लेकर 2011 तक उच्च…

सवाल सोचने की क्षमता और आज़ादी का – प्रदीप भार्गव

उच्च-शिक्षा हम गांव-गांव फिरते हैं, किसी शोध की समस्या लेकर. फिर लिखते हैं. यही हमारी रोज़ी-रोटी है. उस दिन शाम होने को थी. लोटा उठा के पानी पी ही रहे थे, कि कागज़ों का एक बंडल विशाल पीपल से नीचे…

उच्च शिक्षा का बीहड़  –  कृष्ण कुमार

आवरण-कथा हमारे देश के कई विश्वविद्यालय अपनी जन्मशती मना चुके हैं और तीन विश्वविद्यालयों की उम्र डेढ़ सौ वर्ष से अधिक हो चुकी है. आयु बढ़ने के साथ संस्थाएं मज़बूत होंगी, यह मान्यता इन विश्वविद्यालयों के उदाहरण से पुष्ट नहीं…

यह देश अलग माटी का है  –  रमेश ओझा

आवरण-कथा काशी हिंदू विश्वविद्यालय अर्थात बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) अपनी शताब्दी मना रहा है. फरवरी 1916 में भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड हार्डिंग ने इसका उद्घाटन किया था. उद्घाटन-समारोह में गांधीजी के ऐतिहासिक भाषण ने समारम्भ को ऐतिहासिक बना दिया…